जेल में कैद 'लोकतंत्र'
सलाखों के पीछे नहीं पहुंच पाता मतदान का संदेश।
अनिल विश्वकर्मा, सीतापुर: लोकतंत्र का महापर्व आ गया है, शहर से लेकर गांव की गलियों तक बढ़ चढ़कर मतदान करने की अपील की जा रही है। हर तरफ लोकसभा चुनाव का शोर सुनाई दे रहा है। लेकिन जिला मुख्यालय पर मौजूद तकरीबन 1600 वोटरों तक लोकतंत्र की बयार नहीं पहुंच पा रही है। यही वजह है कि मतदाता सूची में नाम होने के बावजूद वे मतदान नहीं कर सकते। यह सच्चाई उन वोटरों की है, जो किसी न किसी आरोप में जेल की सलाखों के पीछे मौजूद हैं।
45 लाख की आबादी वाले इस शहर में अपराधियों के सुधार के लिए जिला कारागार मौजूद है। जिसमें 970 बंदियों को रखने की क्षमता है। लेकिन सलाखों व ऊंची दीवारों के बीच तकरीबन 1550 से 1600 बंदी हर वक्त मौजूद रहते हैं। इन्हीं बंदियों में 400 कैदी हैं, जो विभिन्न अपराधों में सजायाफ्ता हैं। जबकि 50 से 60 की संख्या महिला बंदियों की है। सलाखों के पीछे मौजूद हर बंदी का अपनी ग्रामसभा, विधानसभा, लोकसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट में नाम है। बावजूद इसके वे मतदान नहीं कर पाते। ऐसा नहीं है, कि मतदान कराने का प्रावधान नहीं है। नियम तो हैं, लेकिन जिम्मेदार उन नियमों को गंभीरता से लेना नहीं चाहते हैं। जिम्मेदारों के अपने-अपने तर्क हैं, जिसके बीच इन मतदाताओं को सिर्फ मायूसी ही हाथ लगती है। यही वजह है कि हर चुनाव में जेल में
निरुद्ध वोटर लोकतंत्र की बयार से दूर रह जाते हैं। दागी चुनाव तो लड़ सकते हैं पर दागदार वोटरों की परवाह नहीं
अक्सर देखने में आता है, कि तमाम आरोपों के बावजूद तमाम लोग सांसद व विधायक का चुनाव लड़ने के लिए मैदान में आ जाते हैं। कई तो ऐसे भी प्रत्याशी सामने आए जिन्होंने जेल में रहने बाद भी चुनाव लड़ा। लेकिन जब बात आम बंदी के मतदान की आती है। तब नतीजा सिफर ही रहता है। बंदी चुनाव तो लड़ सकता है, लेकिन मतदान से वंचित रह जाता है।
पोस्टल बैलेट से डाल सकते हैं वोट
जेल में निरुद्ध बंदी पोस्टल बैलेट से मतदान कर सकते हैं। इसको लेकर पत्र भी भेजा जा चुका है।
विनय कुमार पाठक, उप जिला निर्वाचन अधिकारी नहीं मिले निर्देश
बंदियों की वोटिग के लिए न तो कोई निर्देश आए हैं और न ही ऐसी कोई व्यवस्था की गई है। जिससे जेल में निरुद्ध बंदी अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
दिनेश चंद्र मिश्र, जेल अधीक्षक