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चुनावी चौपाल : वादे हैं वादों का क्या...आखिर कब शुरू होगी महोली चीनी मिल

दैनिक जागरण ने धौरहरा संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले चीनी मिल परिसर में एक चुनावी चौपाल का आयोजन किया।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 05:19 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 05:19 PM (IST)
चुनावी चौपाल : वादे हैं वादों का क्या...आखिर कब शुरू होगी महोली चीनी मिल
चुनावी चौपाल : वादे हैं वादों का क्या...आखिर कब शुरू होगी महोली चीनी मिल

सीतापुर, जेेेेएनएन। बड़े और चमकदार दानों वाली अपनी उत्कृष्ट क्वालिटी की चीनी के लिए कभी संपूर्ण एशिया में विख्यात दि लक्ष्मी जी शुगर इंडस्ट्रीज (महोली चीनी मिल) बीते दो दशकों ठप है। सेठ किशोरी लाल द्वारा वर्ष 1932 में दि लक्ष्मी जी शुगर इंडस्ट्रीज (महोली चीनी मिल) की स्थापना की गई थी। वर्ष 2000 में मिल के 950 सीजनल व 350 नियमित कर्मचारियों में से अधिकांश को वीआरएस दे दिया गया। जिससे 1,300 परिवार बेरोजगार हो गए। मिल के बंद होने से क्षेत्र के तमाम छोटे दुकानदार बेरोजगार हो गए, किसानों की मुश्किलें बढ़ गई और क्षेत्र का आर्थिक विकास थम गया।

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लोकसभा और विधान सभा के चुनावों में यह चीनी मिल सियासी मुद्दा बनती रही है। नेता इसको दोबारा चलवाने का वादा कर, वोट पाकर संसद और विधान सभा तक जाते रहे हैं, लेकिन चीनी मिल को दोबारा चालू कराने को लेकर हमारे जन प्रतिनिधि कभी संजीदा नहीं दिखे। जन प्रतिनिधियों की संवेदनशीलता की कमी के चलते ही क्षेत्र में लघु उद्योग की श्रेणी में आने वाले तमाम क्रेशर भी आज दम ताेड़ चुके हैं। 

व्यापारी मनोज कुमार सिंह का कहना है कि चुनाव में नेता सिर्फ लालीपॉप देते हैं। मिल चालू हो जाएगा, डिग्री कॉलेज बन जाएगा, लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं हो सका है। जिसके चलते क्षेत्र के लोग खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। किसान अजय शुक्ला का कहना है कि समूचा क्षेत्र उद्योग-धंधों से शून्य है। रोजगार के संसाधन न होने से बेरोजगारी बढ़ रही है। हमारे जन प्रतिनिधियों ने चीनी मिल चलवाने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया। समाजसेवी बबलू यादव कहते हैं चुनाव लोक सभा का हो या फिर विधान सभा का चीनी मिल हमेशा मुद्दा रही है। लेकिन चुनाव निपटते ही यह मुद्दा भी हवा में उड़ जाता है।

जन प्रतिनिधियों की अनदेखी से यहां के लोग खुद को ठगा महसूस करते हैं। परास्नातक छात्र नितिन पांडेय कहते हैं कि हर बार की तरह इस बार के चुनाव में भी नेताओं ने वादे करने शुरू कर दिए हैं। इस बार भी मिल को दोबारा चलाने का सब्जबाग हम लोगों को दिखाया जाएगा। लेकिन होगा कुछ नहीं, क्योकि अगली बार नेताओं को फिर इसी को मुद्दा बनाना है। 

अधिवक्ता अभय मिश्रा का कहना है कि आज के परिवेश में राजनैतिक दल धनाढ्यों के पाले में खड़े हैं। आमजन की समस्याओं और उनके मुद्दों की वो बात नहीं करते हैं। वह जाति और धर्म का जोड़-तोड़ कर चुनाव जीतने की कोशिश करते हैं। अधिवक्ता यदुवीर सिंह कहते हैं कि गुड़ बेल और चीनी क्रेशर रोजगार का अच्छा साधन हैं। सरकारी उपेक्षा के चलते क्षेत्र के दर्जनों क्रेशर बंद हो गए हैं। इन्हें दोबार चालू कराया जाए। क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी है कि इस मिल को चलाया जाए, यदि यहां पर जगह कम हो तो इसे कहीं दूसरी जगह शिफ्ट किया जाए।

युवा माेनू दीक्षित कहते हैं कि इस मिल के विस्तार के लिए तमाम किसानों की जमीन का अधिग्रहण भी सरकार ने कई साल पहले किया था। लेकिन आज न तो उस जमीन का कोई पुरसाहाल है और न ही किसानों का। व्यापारी नेता महेश गुप्ता कहते हैं कि चीनी और क्षेत्र के पिछड़ेपन को लेकर किसी भी राजनेता ने संजीदगी नहीं दिखाई। बेरोजगारी का दंश झेल रहा यह क्षेत्र शिक्षा और स्वास्थ के मामले में भी बेहद पिछड़ा है। 

चुनाव चौपाल में ब्यूटी पार्लर संचालिका लक्ष्मी गुप्ता, व्यापारी विभू गुप्ता, किसान प्रदीप कुमार, अनिल मिश्रा, शिक्षक कौस्तुभ बाजपेयी, शैलेंद्र मिश्रा, छात्र श्रीश बाजपेयी, हरिओम शुक्ला व हिमांशु मिश्रा ने भी अपने-अपने विचार रखे। इन सभी ने चीनी मिल को दोबार चालू किए जाने की मांग करते हुए इस दिशा में जन प्रतिनिधियों के ढीले रवैये पर भी नाराजगी जतायी। 


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