हम गऊ गऊ कहि रोई, वहु हंसि हंसि कोड़ा मारइ
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संजीव गुप्ता, महोली (सीतापुर) :
88 वर्षीय सेवानिवृत्त अध्यापक विश्वनाथ ने जब अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिता जमुनादीन मिश्रा पर हुए अंग्रेजों के जुल्म की कहानी बयां की तो उनकी आंखे भर आई। कस्बे से करीब 17 किलोमीटर दूर बगचन गांव में बना बागेश्वर नाथ मंदिर खुद में इतिहास समेटे है। इसके पड़ोस चतुरैया गांव है। यहां 1900 में जमुनादीन मिश्रा का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम बलदेव था। विश्वनाथ बताते हैं ये मंदिर आजादी के दीवानों के लिए ज्यादा पूजनीय था। इसी मंदिर पर बागियों की जनसभाएं हुआ करती थीं। 1932 में जब निमचेना के चंद्रभाल त्रिपाठी जेल में बंद हुए तो जमुनादीन ने इसी मंदिर पर एक जनसभा कर क्रांति की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जिसे फांसी चढ़नी हो, यातनाएं झेलनी हो, काले पानी की सैर करनी हो, वो मेरे साथ आए। जनसभा में सन्नाटा छा गया। धीरे-धीरे करीब एक दर्जन लोग सीना ठोक कर खड़े हुए। इसी दौरान महोली का थानेदार कौल घोड़े पर सवार होकर आ धमका। कांग्रेसी नेता पं. राम नारायण बंदी बना लिए गए, लेकिन जमुनादीन बच निकले। 22 फरवरी 1941 को पुलिस गिरफ्तार कर थाने लाई। यहां महमूदपुर के चार लोग बंद थे। इन लोगों ने उन्हें थाने से भगा दिया। 1942 में इनके नाम वारंट जारी हुआ। फरार रहने पर घर की कुर्की हो गई। एक दिन ये पुलिस के हत्थे चढ़ गए। पुलिस ने जमुनादीन पर खूब कोड़े बरसाए। 12 वर्षीय विश्वनाथ भावुक अपील करते रहे लेकिन किसी ने एक न सुनी। इन्हें 30 रुपये (चांदी) अर्थदंड के साथ एक साल सश्रम कारावास हुआ। जेल से छूट कर आने के बाद आंदोलन तेज कर दिया। पुलिस से बचने को अपने खेत में गड्ढा खोदा। ऊपर से पुआल के ढेर लगा दिए और भूमिगत रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत करते रहे। जनवरी 1968 में चतुरैया का लाल हमेशा के लिए सो गया।
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