Domariyaganj Lok Sabha Seat: यूपी के डुमरियागंज पर रहा है दिग्गजों का भरोसा, यहां से संसद का दूरी हो जाती है बहुत कम
Domariyaganj Lok Sabha Seat यूपी की डुमरियागंज लोकसभा सीट शुरू से ही दिग्गजों की पसंदीदा रही है। इसी सीट से संसद का मार्ग प्रशस्त करने के लिए बड़े नेताओं ने यहां से भाग्य आजमाया था। पहले यह सीट गोंडा पूर्व एवं बस्ती पश्चिम के रूप में जानी जाती थी। देश की कद्दावर महिलाओं ने भी यहां से चुनाव लड़ा है।
जितेंद्र पांडेय, जागरण सिद्धार्थनगर। Domariyaganj Lok Sabha Seat डुमरियागंज लोकसभा सीट शुरू से ही दिग्गजों की पसंदीदा रही है। संसद का मार्ग प्रशस्त करने के लिए बड़े नेताओं ने यहां से भाग्य आजमाया था। यहां से कांग्रेस के केडी मालवीय ने आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। तब यह सीट गोंडा पूर्व एवं बस्ती पश्चिम के रूप में जानी जाती थी।
वह बाद में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हुए। उन्हें भारतीय पेट्रोलियम उद्योग के जनक के रूप में जाना जाता है। देश की कद्दावर महिला नेता मोहसिना किदवई यहां से दो बार भाग्य आजमा चुकी हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी थी। वह यहां से जीती भले नहीं लेकिन केंद्र सरकार में लंबे समय तक मंत्री रही थीं।
कांग्रेस के काजी जलील अब्बासी यहां से दो बार सांसद रहे। समाजवादी पार्टी के बृजभूषण तिवारी दो बार सांसद चुने गए। वह समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे हैं। डुमरियागंज के नाम से लोकसभा सीट का गठन दूसरी लोकसभा यानी 1957 में हुआ। केडी मालवीय यहां से दो बार सांसद हुए।
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पहला चुनाव उन्होंने 1952 में तो दूसरा चुनाव उन्होंने 1971 में जीता था। केडी मालवीय ने एचबीटीआई कानपुर (अब एचबीटीयू) से तेल प्रौद्योगिकी में अपनी डिग्री प्राप्त की। 1970 के दशक में वह भारत के पेट्रोलियम मंत्री रहे। उनके सम्मान में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय असम ने 1991 में आयल इंडिया लिमिटेड दुलियाजान के सहयोग से एप्लाइड जियोलाजी विभाग में अनुसंधान उद्देश्य के लिए एक ‘कुर्सी’ (चेयर) स्थापित की गई है।
नारायण स्वरूप शर्मा
यह भारतीय जनसंघ के पहले नेता थे, जिन्होंने वर्ष 1967 में डुमरियागंज लोकसभा सीट पर कांग्रेस के जीत की राह रोकी थी। उन्हें एक लाख 28 हजार 569 मत मिले थे। उन्होंने कांग्रेस के केडी मालवीय को शिकस्त दी थी। नारायण स्वरूप शर्मा लंदन के आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सदस्य थे। लंदन में बैरिस्टर थे। वर्ष 1943 में भारतीय जनसंघ के सक्रिय सदस्य हुए और जनसंघ ने उन्हें 1967 में लोकसभा का चुनाव लड़ा दिया। उस चुनाव में वह सफल भी हुए। 1971 में वह कांग्रेस के केशव देव मालवीय से चुनाव हार गए थे।
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माधव प्रसाद त्रिपाठी
माधव प्रसाद त्रिपाठी 1977 में डुमरियागंज लोकसभा से भारतीय लोकदल के टिकट पर सांसद चुने गए। भारतीय जनता पार्टी के स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र जैसे कई वरिष्ठ नेताओं के वह गुरु रहे हैं। वह वर्ष 1937 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र थे और वर्ष 1942 से वह आरएसएस से जुड़ गए। 1977 के चुनाव में उन्होंने डुमरियागंज सीट से कांग्रेस के केशव देव मालवीय को चुनाव हरा दिया था। वर्ष 1980 में वह चुनाव हार गए थे।
सीमा मुस्तफा
एशियन एज की राजनीतिक संपादक रह चुकी पत्रकार सीमा मुस्तफा भी डुमरियागंज लोकसभा से चुनाव लड़ चुकी है। वर्ष 1991 के रामलहर में यहां उनकी जमानत जब्त हो गई थी। 1991 में सीमा मुस्तफा को सिर्फ 49 हजार 553 मत मिले थे। सीमा मुस्तफा यहां से वर्ष 1996 में भी चुनाव लड़ी। उस समय भी वह अपनी जमानत नहीं बचा सकी थीं।
काजी जलील अब्बासी
वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। डुमरियागंज लोकसभा सीट से वह वर्ष 1980 व वर्ष 1984 में सांसद चुने गए। राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण वर्ष 1937 में उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था। इनकी गणना देश के शीर्ष विद्वानों में होती थी।
बृज भूषण त्रिपाठी
बृज भूषण त्रिपाठी समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे हैं। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में इन्होंने कांग्रेस के जलील अब्बासी को हरा दिया था। उस समय वह जनता दल के उम्मीदवार थे। यह समाजवादी पार्टी से दो बार राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं। तीन बार यह लोकसभा सदस्य रहे हैं।
मोहसिना किदवई
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रही हैं। वह मेरठ से तीन बार सांसद रही हैं। वर्ष 1991 में वह डुमरियागंज लोकसभा से चुनाव लड़ी थीं और हार गई थीं। 1996 में भी मोहसिना किदवई इसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ीं और उनकी जमानत जब्त हो गई थी।
माता प्रसाद पांडेय
समाजवादी पार्टी की सरकार में दो बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके माता प्रसाद पांडेय भी यहां से समाजवादी पार्टी के टिकट से वर्ष 2009 व वर्ष 2014 का चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन दोनों ही चुनावों में उन्हें पराजय मिली थी।