माता सती त्याग, भगवान शिव हैं मर्यादा के प्रतीक
कथा को विस्तार देते हुए कहा कि सती ने भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप धारण कर उन्हें भ्रमित करना चाहा लेकिन भगवान राम ने उन्हें पहचान लिया और माता कहकर संबोधित किया। राम जान गए थे ये तो मेरे गुरु भगवान शिव की पत्नी और मेरी मां सती जी हैं।
सिद्धार्थनगर : गालापुर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में पं. जनार्दन शास्त्री ने सीता की खोज में भटक रहे राम की परीक्षा लेने गई सती का प्रसंग सुनाया। कहा कि माता सती त्याग तथा शिव मर्यादा के प्रतीक हैं।
कथा को विस्तार देते हुए कहा कि सती ने भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप धारण कर उन्हें भ्रमित करना चाहा, लेकिन भगवान राम ने उन्हें पहचान लिया और माता कहकर संबोधित किया। राम जान गए थे, ये तो मेरे गुरु भगवान शिव की पत्नी और मेरी मां सती जी हैं। लेकिन ये तो अपने को सीता कह रही हैं। पूरा मर्म जानकर प्रभु श्रीराम ने कहा - मां, आप अकेली जंगल में, गुरु जी कहा हैं? मैं दशरथ पुत्र राम आपके चरणों में प्रणाम करता हूं। सती जी जान गईं कि ये ब्रह्म हैं, न की कोई राजकुमार। सतीजी वहां से चलकर जब शिवजी के पास आई तो भगवान त्रिपुरारी ने पूछा- सती! परीक्षा ले ली तो सतीजी ने मना कर दिया कि मैंने कोई परीक्षा नहीं ली। बाबा भोलेनाथ तीनों लोकों के स्वामी हैं, उनसे कुछ भी छुपा नहीं है, वो सब कुछ जान गए थे कि सती भगवान राम का परीक्षा लेकर आ रही हैं, यह जानने के बाद शिव शंभु ने सती का मन ही मन त्याग कर दिया। सती जी बिना आदेश के पिता के घर गई यज्ञ में कूदकर देह त्याग दिया। बाद में उन्हीं का जन्म पुन: पार्वती के रूप में राजा हिमाचल के यहां हुआ। कथा के दौरान तमेश्वर मिश्र, उमाकान्त मिश्र, अभिषेक मिश्र, अमरेश पांडेय,शिवशंकर पाण्डेय ,दिनेश,अमरमणि दूबे आदि मौजूद रहे।