छोड़ दो सेहत का ख्वाब, यहां प्रदूषण का भरपूर इंतजाम
खटारा वाहनों के धुएं से घबराया है शहर
सिद्धार्थनगर : है तो खुला इलाका पर निकाय क्षेत्रों में विविध प्रकार का प्रदूषण तेजी से पांव पसार रहा है। चौबीस घंटे विद्युत आपूर्ति का दावा करने वाले इस शहर में बिजली का निश्चित ठिकाना नहीं है। सर्वाधिक संकट रेलवे लाइन के उत्तरी तरफ के लोगों को है। दिन भर में 12 बार शहर ठहर जाता है। ट्रेनों के आवागमन के दौरान लंबा जाम लगता है। यहां करीब एक लाख से अधिक वाहन खटारा हैं। यह अचानक खराब न हो, ऐसे में लोग जाम में इन्हें स्टार्ट रखते हैं। इससे नगर के प्रदूषण की तस्वीर भयावह हो रही है। यहां से वृक्ष विलुप्त होने की दशा में है। ऐसे में लोग बीमार न होंगे तो और क्या होगा? बावजूद इसके जिम्मेदार सब कुछ ठीक बताते हैं।
जिला मुख्यालय की आबादी करीब सत्तर हजार की है। यहां करीब तीस हजार सरकारी, गैर सरकारी व अन्य लोग हैं। जिला मुख्यालय पर इसके अलावा भी अन्य लोगों का आना-जाना रहता है। ऐसे में रोजाना करीब दस से बारह हजार वाहनों का सामना यह शहर करता है। ऐसे में ही रेलवे संपार के पास लगातार जाम की स्थिति से नगरवासियों की स्थिति जटिल हो जाती हैं। वाहनों के धुएं से लोग उबलते रहते हैं। बिजली भी अक्सर गायब रहती है। ऐसे में अधिकांश दुकानों व घरों में लोग जनरेटर से ही अपना काम चलाते हैं। वाहन व जनरेटर का धुआं नगर का तापमान बढ़ा रहा है। ऐसे में शहर से सौ-सौ साल पुराने पीपल, नीम, पाकड़ जैसे वृक्षों का न होना कितना दुखदायी है। आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
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यहां कितने हैं वाहन
यहां 209000 प्राइवेट वाहन हैं। 8170 टैक्सी वाहन हैं। 257 सरकारी वाहन हैं। वाहनों के फिटनेस की यह स्थिति है कि करीब एक लाख से अधिक वाहन धुएं की शहर में सीधे जहर उगलते हैं। ऐसे में नगर को प्रदूषण से मुक्ति कैसे मिलेगी, आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
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ध्वनि प्रदूषण पर भी कोई अंकुश नहीं
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, नागरिकों को सभ्य वातावरण में रहने का अधिकार है और उन्हें शांति से रहने का अधिकार है। रात में सोने का अधिकार है। 14 फरवरी 2000 को केंद्र सरकार ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत दी गई शक्तियों का प्रयोग कर सार्वजनिक स्थलों में विभिन्न स्त्रोतों द्वारा होने वाले ध्वनि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के लिए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को अधिनियमित किया था। शोर नियम 2000 का नियम पांच लाउड स्पीकरों/ सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली के प्रयोग को प्रतिबंधित किया गया है। साल 2010 में नियम पांच में संशोधन किया गया और इसके तहत ध्वनि पैदा करने वाले उपकरणों के प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इन सभी मामलों में इन उपकरणों के इस्तेमाल करने के लिए लिखित अनुमति लेना आवश्यक है। शोर नियम, 200 के तहत जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक व पुलिस उपाधीक्षक स्तर या उससे ऊपर के अधिकारी अनुमति देने के अधिकारी हैं। बावजूद इसके यहां बेधड़क डीजे बजता है। इसके लिए किसी की अनुमति भी नहीं ली जाती। धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर आदि के लिए निर्देश दिए गए हैं, पर जिम्मेदार इसे गंभीरता से नहीं लेता है।
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विद्युत आपूर्ति बेहतर देने का प्रयास किया जाता है। नगर के सभी तार पुराने हैं। उसे बदलने का प्रयास किया जा रहा है। अन्य व्यवस्थाएं सुधारी जा रही हैं। धीरे-धीरे स्थिति बेहतर हो रही है। संपार के दक्षिणी तरफ तो विद्युत आपूर्ति की दशा ठीक रहती है।
पी.एन.प्रसाद
अधिशासी अभियंता विद्युत
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समय-समय पर वाहनों की चे¨कग की जाती है। दो साल से पुरानी गाड़ियों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। वाहन चे¨कग के दौरान इस पर भी ध्यान दिया जाता है। न होने पर संबंधित के विरुद्ध चालान किया जाता है।
प्रवेश कुमार सरोज
अधिशासी अभियंता विद्युत
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नगर में पुराने वृक्षों की कमी महसूस होती है। उसके स्थान पर नये पौधे लगाए जा रहे हैं। अभी अभियान के तहत सभी नगर निकायों को 14 हजार पौधरोपण का लक्ष्य दिया गया था और सभी ने अपना लक्ष्य पूरा भी किया है।
वी.के.मिश्र
प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी
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75 जिलों की अपेक्षा यहां ध्वनि प्रदूषण कुछ भी नहीं है। धार्मिक स्थलों पर जहां तक लाउडस्पीकर का सवाल है, वहां आम नागरिकों को भी थोड़ा जागरूक होने की जरूरत है। इसके अलावा वायु प्रदूषण सड़क की वजह से है, पर वर्तमान में बारिश के चलते वायु प्रदूषण का भी अधिक जोर नहीं है।
डा.धर्मवीर ¨सह
पुलिस अधीक्षक
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