फिर कटा केबल, खेल कुछ और तो नहीं
जिले में सर्वप्रथम मोबाइल सेवा की सुविधा लेकर आने वाली बीएसएनएल की स्थिति अत्यंत दयनीय है। लगातार केबिल कटना किसी साजिश का हिस्सा प्रतीत होने लगा है। हालांकि विभाग मानता है कि यह कुछ निजी कंपनियों की साजिश है। यह निजी कंपनियों की साजिश है तो अब तक विभाग ने किसी भी निजी कंपनी के कर्मचारी पर अब तक कोई मुकदमा क्यों नहीं पंजीकृत कराया। खेल कुछ और तो नहीं है
सिद्धार्थनगर : जिले में सर्वप्रथम मोबाइल सेवा की सुविधा लेकर आने वाली बीएसएनएल की स्थिति अत्यंत दयनीय है। लगातार केबिल कटना किसी साजिश का हिस्सा प्रतीत होने लगा है। हालांकि विभाग मानता है कि यह कुछ निजी कंपनियों की साजिश है। यह निजी कंपनियों की साजिश है तो अब तक विभाग ने किसी भी निजी कंपनी के कर्मचारी पर अब तक कोई मुकदमा क्यों नहीं पंजीकृत कराया। खेल कुछ और तो नहीं है। रविवार रात करीब नौ बजे भी केबिल कटने से जिला मुख्यालय समेत शोहरतगढ़ तहसील के सभी बीएसएनएल सेवाएं ठप हो गईं। लगातार केबिल कटने से विभाग की भूमिका पर एक बार फिर सवाल खड़ा हुआ है।
एक माह में चार बार बीएसएनएल का बैकबोन, 14 बार ओएफसी केबिल कटी। इसे रिपेयर करने में विभाग को पांच लाख रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े। कर्मचारियों को श्रम करना पड़ा। साथ ही उपभोक्ता ओएफसी व बैक बोन कटने से 72 घंटे सेवा से वंचित रहे। विभाग का कहना है कि एक निजी कंपनी अपना केबिल बिछा रही है। इससे बीएसएनएल की लाइन आए दिन डिस्टर्ब हो रही है। बीएसएनएल के स्थानीय अधिकारियों ने इसके लिए एजीएम को पत्र लिखकर मामले की जानकारी भी दी है। ओएफसी कटने और व्यवस्था डिस्टर्ब होने के बावजूद अभी बीएसएनल द्वारा अभी तक किसी भी निजी कंपनी के विरुद्ध मुकदमा नहीं दर्ज कराया है। ऐसे में विभाग की भूमिका पर सवाल तो खड़ा होगा ही।
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ओएफसी कटने पर यह आता है खर्च
एक बार ओएफसी कटने पर आता है कम से कम 50 हजार रुपये का खर्च आता है। माह भीतर 14 बार ओएफसी कटने का आशय यह है कि करीब सात लाख रुपये इसी पर व्यय किए। लगातार केबिल कटने से लोग दबी जुबान से यह भी कहते हैं कि कहीं इसके पीछे खेल चढ़ावे का तो नहीं है। हालांकि विभाग इससे इंकार करता है।
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मुख्यालय से सीमा तक बीएसएनएल फेल
भारत संचार निगम द्वारा जिले में सर्वप्रथम थ्री जी सेवा का शुभारंभ किया गया। सेवा शुरू होने के बाद आज मोबाइल इंटरनेट के सबसे कम उपभोक्ता उसी के पास हैं। निजी कंपनियों के पास मोबाइल इंटरनेट उपभोक्ता भी अधिक हैं। उनका नेटवर्क भी बीएसएनएल से बेहतर है। जिले में मोबाइल इंटनेट यूजर के सर्वाधिक उपभोक्ता निजी कंपनियों के ही पास हैं। यहां तक कि बढ़नी, कोटिया, खुनुवा, अलीगढ़वा, ककरहवा आदि स्थानों पर भी बीएसएनएल का नेटवर्क बेहद कमजोर हैं। ऐसे में बीएसएनएल धारक भी मोबाइल का¨लग व इंटरनेट का प्रयोग के लिए अन्य कंपनियों का ही सहारा लेते हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि निजी कंपनियों द्वारा बीएसएनएल की केबिल क्यों डिस्टर्ब की जाएगी।
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अफसोस में उपभोक्ता व व्यापारी
बीएसएनएल की लचार सेवा से उपभोक्ता व्यापारी त्रस्त हैं। उपभोक्ताओं की समस्या यह है कि उन्हें सुविधा नहीं बेहतर मिल रही है। साथ ही व्यापारियों को कठिनाई यह है कि वह तमाम रुपये लगाकर यहां एजेंसी ले रखी है। विभाग की खराब सेवा के चलते उन्हें भारी नुकसान हो रहा है।
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आठ माह बाद भी न बहाल हुई सेवा
- अगस्त 2017 में बाढ़ के दौरान जोगिया बीटीएस फेल हुआ। अब तक नहीं ठीक हो सका।
- बढ़नी बीटीएस टू सिर्फ बिजली रहने पर चलता है। बिजली न होने पर वह सेवा नहीं रहता।
- कोटिया व खुनियांव में भी बीटीएस की सेवा दयनीय है।
- ठोठरी बाजार हरिबंशपुर स्थित बीटीएस पिछले पांच वर्षों से सेवा में नहीं है।
- ककरहवा बीटीएस दो दिन सही रहकर पांच दिन खराब रहता है।
- मुख्यालय समेत सीमाई क्षेत्रों में जियो, एयरटेल, वोडाफोन फोर जी सेवा दे रहे हैं।
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जियो कंपनी द्वारा केबिल डाली जा रही है। इससे इस माह केबिल कटने की घटनाएं कुछ ज्यादा हुई हैं। केबिल कटने को लेकर चार बार एजीएम बीएसएनएल को पत्र भेजा जा चुका है। इधर विभाग यह मानकर चल रहा है कि नगरों को 24 घंटे बिजली की सप्लाई दी जा रही है। ऐसे में कहीं पर 18 व बीस घंटे भी बिजली की सप्लाई है तो अन्य समय बैट्री से सेवा दी जा रही है। ऐसे में बीटीएस पर डीजल नहीं भेजा जा रहा है। इधर कुछ संसाधनों की दिक्कत है। फिर भी सीमित संसाधनों में बेहतर करने की कोशिश की जा रही है।
दुर्गेश ¨सह
एसडीओ, दूरसंचार