जर्जर आवासों में रहने को मजबूर स्वास्थ्य कर्मी
आजादी से पूर्व वर्ष 1920 में डुमरियागंज कस्बे को इलाज की सुविधा देने के लिए बना अस्पताल सुविधाओं का मोहताज है। यहां तैनाती चिकित्सक सहित कुल 12 कर्मचारी कार्यरत हैं लेकिन इन्हें आश्रय देने के लिए बने आवास खस्ताहाल हो चुके हैं।
सिद्धार्थनगर : आजादी से पूर्व वर्ष 1920 में डुमरियागंज कस्बे को इलाज की सुविधा देने के लिए बना अस्पताल सुविधाओं का मोहताज है। यहां तैनाती चिकित्सक सहित कुल 12 कर्मचारी कार्यरत हैं, लेकिन इन्हें आश्रय देने के लिए बने आवास खस्ताहाल हो चुके हैं। यह कब गिर जाएं यह कोई नहीं जानता। संख्या के सापेक्ष आवास भी नहीं हैं, जो हैं उसमें इक्का दुक्का कर्मी जान जोखिम में डाल कर रहने को मजबूर हैं।
अस्पताल परिसर को सुरक्षित रखने के लिए बनी चाहरदीवारी जगह- जगह से टूट कर गिर रही है। परिसर के मुख्य रास्ते का गेट वर्षों पहले टूट चुका है, लेकिन दोबारा नहीं लगा। सर्वाधिक खराब स्थिति में चिकित्सकों व कर्मचारियों के आवास हैं। लेकिन जो आवास पांच दशक पहले बनाए गए वह सिर्फ पांच हैं। वह भी इस कदर जर्जर हैं कि इनमें रहना जान जोखिम में डालने के बराबर है। यहां सिर्फ एएनएम ऊषा श्रीवास्तव व स्टाफ नर्स का परिवार ही रहता है। छत का प्लास्टर टूटकर हर रोज गिरता है। बारिश में टपकती छत का पानी कमरों में भर जाता है। बाकी 10 कर्मचारी ड्यूटी बजाने के लिए किराए के घर में रहते हैं। मसला सिर्फ अस्पताल में अव्यवस्था व जर्जर आवासों का नहीं है परिसर के पूर्वी भाग में लोग अतिक्रमण किए हुए हैं, लेकिन विभाग अपनी जमीन कब्जे में नहीं ले पा रहा है। पीएचसी प्रभारी डा. मुस्तकीम अंसारी ने कहा कि समस्या के निदान के लिए कई बार सक्षम अधिकारियों को अवगत कराया गया, निरीक्षण भी हुआ, लेकिन आज भी हालत जस की तस है।