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जल संरक्षण का संदेश दे रहा गोबरहा का पोखरा

खुनियांव विकास खंड अन्तर्गत ग्राम बलिभद्रपुर उर्फ गोबरहा का पोखरा जल संरक्षण की दिशा में मिसाल बना है। वर्ष 2009 में इसका निर्माण हुआ तभी से इसमें सदैव पानी भरा रहता है। शीतल हवाएं जहां आसपास के वातावरण को शुद्ध बनाती हैं तो मवेशियों के लिए हर समय पेयजल की सुविधा उपलब्ध रहती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 May 2021 11:27 PM (IST)Updated: Tue, 04 May 2021 11:27 PM (IST)
जल संरक्षण का संदेश दे रहा गोबरहा का पोखरा
जल संरक्षण का संदेश दे रहा गोबरहा का पोखरा

इटवा, सिद्धार्थनगर : खुनियांव विकास खंड अन्तर्गत ग्राम बलिभद्रपुर उर्फ गोबरहा का पोखरा जल संरक्षण की दिशा में मिसाल बना है। वर्ष 2009 में इसका निर्माण हुआ, तभी से इसमें सदैव पानी भरा रहता है। शीतल हवाएं जहां आसपास के वातावरण को शुद्ध बनाती हैं तो मवेशियों के लिए हर समय पेयजल की सुविधा उपलब्ध रहती है।

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करीब डेढ़ दशक पूर्व इस गांव और अगल-बगल के क्षेत्र में गर्मी के मौसम में भूगर्भ जल का तल अचानक नीचे खिसक गया। 80-90 फिट वाले हैंडपंपों की गहराई और नीचे हो गई। जल संकट मंडराने लगा। समय से पहले तालाब-पोखरे का पानी सूखने लगा। समस्या को देखते हुए दिनेश सिंह व रमेंद्र सिंह ने गोबरहा में अपने 20 बीघा कृषि भूमि पर दो पोखरे की खोदाई करवाई। यहां हर मौसम में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित कराई। अपने निजी पैसे से एक ट्यूबेल की व्यवस्था। जिससे जब आवश्यकता हो, ट्यूबेल के पानी से पोखरे को भरा जा सके। 13 वर्षों से यह पोखरा आइना बना हुआ है।

वर्तमान में आसपास के सभी तालाब व पोखरे जहां सूख गए हैं, पशु-पक्षी पानी के लिए बेहाल नजर आते हैं। वहीं इस दिनों यहां का पोखरा लबालब पानी से भरा है। सायं के समय लोग पोखरे के पास शुद्ध हवा लेने के लिए बैठे दिखाई देते हैं। गांव ही नहीं, आसपास इलाके के मवेशी जब प्यास से व्याकुल रहते हैं, तो भटकते-भटकते इसी पोखरे में आकर अपनी प्यास बुझाते हैं। पोखरे की बाकायदा निगरानी की जाती है। पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित है तो जब भी पानी घटता है तो यहां इसमें ट्यूबेल के जरिये भरपूर पानी भरा जाता है।


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