पापा जैसा कोई नहीं
सिद्धार्थनगर: जब मैं छोटा था, पिताजी पढ़ाई के लिए डांटते-फटकारते थे। टीवी देखने और घूमने पर पाबंदी
सिद्धार्थनगर: जब मैं छोटा था, पिताजी पढ़ाई के लिए डांटते-फटकारते थे। टीवी देखने और घूमने पर पाबंदी थी। स्कूल से घर आने पर पहले भोजन कराते थे। इसके पश्चात पढ़ाई पर चर्चा करते। स्कूल से मिले कामों को पूरा कराते। मेरी हर मांग को पूरा करने के लिए जो भी करना होता था, वह करते थे। पिताजी मां से अधिक दुलार एवं प्यार देते थे। हां अनुशासन तोड़ने पर सजा देने में देरी भी नहीं करते। एक बार मैंने उनसे बाजार ले जाने की जिद की। उन्होंने मुझे समझाया। बोले पहले पढ़ लिखकर बड़ा पद हासिल करो। इसके पश्चात यहां की बाजार नहीं किसी बड़े शहर में जाकर घूमना, तुम्हे हम नहीं रोकेंगे। उनकी यह बात मेरे जीवन की सफलता का मंत्र बन गया। वह अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर उनके दिखाए रास्ते पर चलकर आज मैंने बेहतर मुकाम हासिल किया है। उनके बताए बातों से आज भी मुझे प्रेरणा मिलती है।
नवीन श्रीवास्तव, अनूप नगर सिद्धार्थनगर