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पूस की सर्द रात.. खेत में किसान.. कौन बने तारणहार!

विजय द्विवेदी श्रावस्ती भारत-नेपाल सीमा पर जंगलों से घिरे गांव हो या फिर मैदान। यहां के किस

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2021 10:56 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2021 10:56 PM (IST)
पूस की सर्द रात.. खेत में किसान.. कौन बने तारणहार!

विजय द्विवेदी, श्रावस्ती : भारत-नेपाल सीमा पर जंगलों से घिरे गांव हो या फिर मैदान। यहां के किसानों की मनोदशा व मौसम को देख कर मंशी प्रेमचंद्र की सुप्रसिद्ध कहानी 'पूस की रात' याद आ जाती है। कहानी में जिस प्रकार खेतों की रखवाली कथानक अपने कुत्ते के साथ रात भर अलाव जलाकर जागरण करता है, कमोवेश यही स्थिति से इन दिनों तराई के किसान गुजर रहे हैं। कोहरे और पालों के बीच पूस की रात में किसानों के सामने जंगली जानवरों व बेसहारा मवेशियों से अपनी फसलों को बचाने के लिए चुनौती खड़ी है।

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नेपाल सीमा पर तराई में 111568 हेक्टेअर क्षेत्रफल पर रबी की फसलें लहलहा रही हैं। इनमें 70898 हेक्टेअर में गेहूं, 44 हेक्टेअर क्षेत्रफल में रबी मक्का, 120 में चना, 538 हेक्टेअर पर मटर, 27709 हेक्टेअर क्षेत्रफल पर मसूर, 9142 पर तोरिया, 3046 पर राई-सरसो, 11 हेक्टेअर क्षेत्रफल पर जौ व 60 हेक्टेअर पर अलसी के अलावा तकरीबन 80 हजार हेक्टेअर क्षेत्रफल पर गन्ने की फसल खड़ी है। साथ ही हरी सब्जियों की फसलें भी लहलहा रही हैं। इनसेट बेसहारा मवेशी नहीं जंगली जानवर बने सिरदर्द प्रेमचंद की कहानी में तो बेसहारा पशुओं की रखवाली का प्रसंग है। बेसहारा मवेशी तो सिरदर्द बने ही हैं। साथ ही वनों से घिरे गांवों में किसान जंगली सुअर, चीतल, बंदर, नीलगायों की समस्या से परेशान हैं। किसान बताते हैं कि खेतों में खड़ी फसलों का 25 फीसद उपज ही घर पर पहुंच जाय तो बहुत ही सौभाग्य होता है। इनसेट जंगली जानवर से ये गांव हैं प्रभावित पूर्वी, पश्चिमी सोहेलवा के अलावा भिनगा जंगल से सटे घोलिया, बालू, पकड़यिा, जंगलीपुरवा, भगवानपुर, रनियापुर, हथमरवा, सोहेलवा, गब्बापुर, रामपुर, रनियापुर, मोतीपुर, धाधूपुरवा, मनिहारपुरवा, भदिला, तेंदुआ जैसे पचासों गांव होंगे जहां के किसानों को पूस की रात भयानक लगती है। इनसेट फसलों के नुकसान पर नहीं मिलता मुआवजा जिला कृषि अधिकारी आरपी राना की मानें तो जंगल किनारे के खेतों में यदि हाथी नुकसान पहुंचाता है तो मुआवजा देने का प्रावधान है। यदि जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं तो मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। भिनगा रेंजर आरके तिवारी बताते हैं कि वन्यजीवों से सावधान रहने के लिए जंगल से सटे गांवों में किसानों को जागरूक किया जा रहा है।


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