भंग हो रहा मनरेगा से मजदूरों का मोह
भूपेंद्र पांडेय, श्रावस्ती : घर के निकट रोजगार देकर श्रमिकों के जीवन में बदलाव लाने के लिए शुरू हुई
भूपेंद्र पांडेय, श्रावस्ती : घर के निकट रोजगार देकर श्रमिकों के जीवन में बदलाव लाने के लिए शुरू हुई मनरेगा से अब मजदूरों का मोह भंग हो रहा है। रोजगार के लिए श्रमिक अन्य विकल्पों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
मनरेगा की शुरुआत के बाद स्थिति में थोड़ा ठहराव आया था, लेकिन यह अब श्रमिकों को नहीं भा रही है। जिले में मनरेगा के कुल एक लाख 22 हजार 622 जॉबकार्ड धारक हैं। इनमें 45 हजार 351 महिला जॉबकार्ड धारक हैं। इन जॉबकार्डों पर एक लाख 80 हजार 267 श्रमिक पंजीकृत हैं। इनमें से मात्र 70 हजार 177 क्रियाशील श्रमिक हैं। महिलाओं की संख्या 31 हजार 620 है। यह संख्या कुल पंजीकृत श्रमिकों के आधे से भी कम है। आवासीय योजना का लाभ पाने वाले जिन श्रमिकों ने अपने आवास निर्माण में काम किया है, उन्हें भी क्रियाशील श्रमिक माना जाता है। सौ दिन के रोजगार की गारंटी तो है, लेकिन बीते तीन वर्षों में सिर्फ 1206 श्रमिकों ने ही सौ दिन काम किया है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में मनरेगा के तहत 16 लाख 58 हजार मानव दिवस सृजित करने का लक्ष्य मिला था। इसके सापेक्ष अब तक 16 लाख 45 हजार मानव दिवस सृजित हो चुके हैं। इसके बावजूद सिर्फ 786 मनरेगा मजदूरों ने ही सौ दिन काम किया है।
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इनसेट
दो करोड़ 80 लाख मजदूरी बकाया-
मनरेगा मजदूरों को भुगतान के लिए दिसंबर माह से बजट नहीं मिला है। इस दौरान काम तो होता रहा, लेकिन मजदूरी के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं मिली। 20 हजार 81 श्रमिकों को दो करोड़ 80 लाख रुपया मजदूरी बकाया है।
इनसेट
कौन है क्रियाशील श्रमिक-
डीडीओ विनय कुमार तिवारी ने बताया कि जॉबकार्ड धारकों में से किसी श्रमिक ने लगातार तीन वित्तीय वर्षों में एक दिन भी मनरेगा के तहत मजदूरी की है तो उसे क्रियाशील श्रमिक माना जाता है।
इनसेट
तीन साल में बढ़ी सिर्फ एक रुपये मजदूरी -
मनरेगा से श्रमिकों का मोह भंग होने का एक कारण कम मजदूरी बताया जाता है। वर्ष 2016-17 में 174 रुपये प्रतिदिन की दर से मजदूरी दी जाती थी। वर्ष 2017-18 में यह बढ़कर 175 रुपये हो गई। वर्तमान वित्तीय वर्ष में भी इसी दर पर भुगतान हो रहा है।
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सौ दिन काम करने वाले श्रमिक
वर्ष श्रमिक
2016-17 90
2017-18 330
2018-19 786
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