घर लौटे परदेसी- कर्ज लेकर प्रवासी कर रहे कारोबार, चला रहे परिवार
पीएम नरेंन्द्र मोदी के आत्म निर्भर भारत के सपने को आकार दे रहे प्रवासी
विजय द्विवेदी, श्रावस्ती : जिदगी की हर तपिश को मुस्करा कर झेलिए, धूप जितनी भी तेज हो समंदर सूखा नहीं करते। जी हां। यह लाइनें परदेस से आए प्रवासियों पर सटीक बैठती है। कोई कर्ज लेकर सब्जी का कारोबार कर रहा है तो कोई गांवों में ही दुकान खोलकर घर-परिवार चला रहा है। गिलौला ब्लॉक के चरपुरवा के शहजाद को ही लें, मुंबई में मजदूरी कर रहे थे। लॉकडाउन में कामकाज ठप हो गया।रोटी का जुगाड़ नहीं हो पाया तो वह किसी तरह ट्रक से घर पहुंचे। होम क्वारंटाइन का समय बीतने के बाद उन्होंने अपने मित्र इसरार से एक हजार रुपये उधार लेकर सब्जी और तरबूज बेचने लगे। इससे इनका घर-परिवार ही नही चल रहा है बल्कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्म निर्भर भारत के सपने को भी साकार कर रहे हैं। शहजाद ही नहीं तमाम ऐसे प्रवासी हैं जो परदेस से आकर गांव में कर्ज लेकर कारोबार कर रहे हैं।
गिलौला ब्लॉक के चरपुरवा के रहने वाले शहजाद की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। जब यहां काम धाम नही मिला तो इन्होने अपना परिवार चलाने के लिए परदेस की राह थाम ली। मुंबई में जाकर मजदूरी करने लगे। चार-पांच सौ रुपये रोज कमा लेते थे। लॉकडाउन में काम-धंधा जब चौपट हो गया और घर आने के लिए साधन भी बंद हो गए। किराया चुकता न कर पाने की वजह से मकान मालिक ने कमरा खाली करने को कह दिया। किसी तरह जुगाड़ करके पांच हजार रूपये किराया देकर ट्रक से घर पहुंचे। होम क्वारंटाइन के बाद यहां वैसा काम मिलने की उम्मीद नही दिखी तो उन्होने अपने मित्र से एक हजार रूपये उधार लिए और सब्जी के साथ तरबूज बेचने का काम शुरू कर दिया। वे कहते हैं कि इतना झेलकर वहां से आया हूं। कम से कम तीन साल तक वापस नही जाऊंगा। यहीं रहकर काम-धंधा करके परिवार चलाऊंगा। जमुनहा बाजार के संतोष, बबलू जैसे तमाम प्रवासी श्रमिक हैं जो किसी तरह गांव पहुंचकर यहीं पर कर्ज लेकर अपना-अपना कारोबार करने लगे हैं। इन प्रवासियों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर ही कारोबार पर जीवन को आकार दूंगा।