पहले दिन रंग, दूसरे दिन कीचड़ की होली
राजीव गुप्ता श्रावस्ती तमाम सामाजिक बदलावों और आधुनिकता के बाद भी थारू समाज की रीति-रिवाजो
राजीव गुप्ता, श्रावस्ती : तमाम सामाजिक बदलावों और आधुनिकता के बाद भी थारू समाज की रीति-रिवाजों और परंपराओं में कोई खास बदलाव नहीं आया है। इस समाज के पर्वों का अनूठा स्वरूप हर किसी को रोमांचित करता है। ऐसा ही एक पर्व है होली। बसंत पंचमी को होलिका रोपण के साथ ही थारू समाज में होली की मस्ती घुल जाती है, जोकि होली के बाद तक रहती है। इस दौरान थारू समाज के पुरुषों और महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले फाग बरबस ही लोगों को आर्किषत करते हैं। होली के पहले दिन थारू समाज के लोग अपने घरों के पालतू जानवर गाय, भैंस, बकरी, कुत्ता, मुर्गा-मुर्गी आदि को रंगों से नहलाकर इस पर्व का शुभारंभ करते हैं। इसके बाद लोग मस्ती करते हुए एक-दूसरे पर रंग और गुलाल डालते हैं। दूसरे दिन यह लोग रंगों के बजाए कीचड़ से होली खेलते हैं। मोतीपुर गांव के पूर्व प्रधान रामजी बताते हैं कि बेहद पुरानी यह परंपरा आज भी जारी है।
फागुन में ही होती शादियां -
थारू समाज में फाल्गुन (फागुन) माह का अपना विशेष महत्व है। इस पूरे माह यह समाज जश्न में डूबा रहता है। थारू समाज में शादियां सिर्फ फागुन माह में ही होती हैं। इस समाज में दहेज रहित और सामूहिक विवाह की प्रथा आज भी जारी है। शादी की रस्म तीन दिनों तक चलती है। पहले दिन तेल, दूसरे दिन विवाह और तीसरे दिन सामूहिक भोज और बहुओं की विदाई होती है। इन तीन दिनों में पूरा गांव एक परिवार बन जाता है।
---------
आधुनिकता के दौर में आया बदलाव
बेसिक शिक्षा अधिकारी ओमकार राणा का कहना है कि आधुनिकता के चलते अब हमारे थारू समाज की परंपराओं में भी बदलाव आया है। पहले पांच-छह दिनों तक होली खेली जाती थी, लेकिन अब मात्र दो दिनों तक ही खेलते हैं। युवा पीढ़ी का रूझान भी पारंपरिक गीतों के बजाए फिल्मी गीतों की ओर बढ़ गया है।