पुल निर्माण के नाम पर हर चुनाव में छले जाते दोआबवासी
ककराघाट पर पुल निर्माण हर चुनाव में बनता रहा है मुद्दा वादों का बताशा खिलाकर भूल जाते हैं आम आदमी की परेशानी
श्रावस्ती : राप्ती नदी के ककराघाट पर पुल निर्माण देश की आजादी के बाद से हर चुनाव में मुद्दा बनता रहा है, लेकिन नेता वादों का बताशा खिलाकर चुनाव जीतने के बाद जनता की जरूरत से जुड़े इस विषय को भूल जाते हैं। विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बजने के साथ एक बार फिर लोगों में उम्मीद जगी है। पुल बने या न बने कम से कम लोगों ने पुल की जरूरत पर बात तो शुरू कर दी है।
इकौना व सिरसिया ब्लाक क्षेत्र के लगभग 30 गांवों के लोग ककराघाट पुल निर्माण न होने से दुश्वारियां झेल रहे हैं। दोआब क्षेत्र का मुख्य व्यवसाय पशुपालन व कृषि है। भूमिहीन लोग इकौना नगर में व आसपास मजदूरी कर गुजर-बसर करते हैं। पुल के अभाव में दोआब वासियों को जून से दिसंबर तक नाव से ब्लाक मुख्यालय आना पड़ता है। इससे पशुपालक व सब्जी उत्पादक अपना उत्पाद समय से बाजार नहीं पहुंचा पाते हैं। देरी होने पर सब्जी व दूध तथा दूध से निर्मित अन्य उत्पाद की गुणवत्ता खराब होने से आर्थिक क्षति हो जाती है। श्रमिक समय पर काम पर पहुंच पाते हैं न छात्र स्कूल।
राप्ती नदी के इस तट पर कई नाव दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं। इसमें दर्जनों छात्रों समेत कई लोग कालकवलित हो चुके हैं। नेताओं के वादाखिलाफी से आजिज ग्रामीण नदी में पानी घटने पर जनसहयोग से बांस-बल्ली व खर-फूस का पुल बनाकर जनवरी से मई तक आवागमन आसान बनाते हैं, लेकिन फिर बरसात व बाढ़ की विभीषिका के साथ वर्ष के सात माह नाव ही आवागमन का सहारा बनती है। केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान इस क्षेत्र की लोकसभा में नुमाइंदगी कर चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एमएलसी चुनाव में ग्राम प्रधानों की मांग पर ककराघाट पुल निर्माण का वायदा किया था। उनके उम्मीदवार को जीत भी मिली थी, लेकिन पुल का निर्माण नहीं हो पाया। कांग्रेस, सपा, बसपा, भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों को इस क्षेत्र से चुनाव जीतने का मौका मिल चुका है, लेकिन पुल की याद किसी को नहीं आई।