देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करता श्रावस्ती का सौंदर्य
श्रावस्ती : ऐतिहासिक विरासत, प्राकृतिक सौंदर्य, और विभिन्न संस्कृतियों के चलते यह जिला हमेशा से देश-
श्रावस्ती : ऐतिहासिक विरासत, प्राकृतिक सौंदर्य, और विभिन्न संस्कृतियों के चलते यह जिला हमेशा से देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। सूबे की राजधानी लखनऊ से करीब 175 किमी दूर यह जिला ¨हदू, मुस्लिम, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों के लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। यातायात के साधनों के अभाव के बावजूद भी हर साल यहां पर हजारों की तादात में पर्यटक आते हैं। प्रदेश सरकार द्वारा 'एक जिला, एक पर्यटन केंद्र' बनाने की योजना को मंजूरी मिलने के बाद जिले में पर्यटकों की संख्या बढ़ने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं। पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालय की तलहटी में बसे इस जिले में प्राकृतिक दृश्यों के साथ ही वन क्षेत्र और पुरानी हवेलियां भी हैं। वन क्षेत्र में तमाम वेटलैंड हैं, जिन्हें पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित किया जा सकता है।
बौद्ध, जैन तीर्थ स्थली व बोध वृक्ष : बौद्ध तीर्थ स्थली पर भगवान बुद्ध ने 24 वर्षावास व्यतीत किए थे। जिस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने तप किया था, वह बोध वृक्ष आज भी यहा पर संरक्षित है। यहा पर चीन, कंबोडिया, कोरिया सहित विभिन्न देशों के मंदिर हैं। इसके अलावा यहा पर जेतवन, अंगुलिमाल गुफा, गंधकुटी, कच्ची कुटी, पक्की कुटी जैसे कई दर्शनीय स्थल हैं।
सीताद्वार मंदिर : श्रावस्ती तीर्थ क्षेत्र से लगभग 10 किमी दूरी पर स्थित है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार वनवास के समय लक्ष्मण ने मा सीता को इसी स्थान पर छोड़ा था। इसे लव-कुश की राजधानी भी कहते हैं। यहा पर स्थित विशाल झील हर किसी का बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है।
विभूतिनाथ शिव मंदिर : नेपाल सीमा पर स्थित पांडवकालीन विभूतिनाथ मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि यहां पर साक्षात अघोरी शिव वास करते हैं। पांडव काल में अज्ञातवास के दौरान महाबली भीम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। बताया जाता है कि शिवलिंग को नष्ट करने के उद्देश्य से जब मुगल शासक औरंगजेब के सैनिकों ने इस पर आरी चलाई तो शिवलिंग से रक्तश्राव होने लगा था। इस चमत्कार से औरंगजेब डर गया था। उसने मंदिर में पहुंच कर क्षमा याचना भी की थी। आरी चलाने का निशान अभी भी शिवलिंग पर विद्यमान हैं।
सोनपथरी आश्रम : नेपाल सीमा पर स्थित अगस्त्य मुनि की तपस्थली के रूप में विख्यात सोनपथरी आश्रम धर्म और प्रकृति का अद्भुत संगम है। आदि शक्ति मां दुर्गा का मंदिर और प्राकृतिक झरना आपको धर्म और प्रकृति का अद्भुत आनंद देगा। सोहेलवा जंगल के बीच हिमालय पर्वत श्रंखला से सटे इस आश्रम तक पहुंचने के लिए जंगल के बीच रोमांचकारी सफर का भी आनंद आता है। यहां पर पूरे वर्ष भंडारा चलता रहता है। जहां जंगली पेड़ों के पत्तों पर भंडारा परोसा जाता है।
कोट
जिले को इन सुविधाओं की दरकार
पर्यटन के दृष्टिकोण से यह जिला बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन आवागमन के संसाधनों की भारी कमी के चलते यहां लोगों की आमद कम होती है। आसपास के जनपदों और तीर्थ स्थलों से यदि परिवहन निगम की बसों का संचालन शुरू हो जाए तो पर्यटन उद्योग को पंख लग जाएंगे।
-अयोध्या प्रसाद मिश्र, सेवानिवृत्त शिक्षक
कोट
बौद्ध तीर्थ स्थल के अलावा भी इस जिले में पर्यटन को लेकर बहुत कुछ है। लेकिन इन जगहों पर रात्रि विश्राम की कोई व्यवस्था नहीं है। विभूतिनाथ, सोनपथरी और सीताद्वार में यदि रात्रि विश्राम की कोई व्यवस्था हो जाए तो इन जगहों पर पर्यटकों की संख्या बढ़ जाएगी।
-डॉ. सिम्मी तिवारी, प्राचार्या, चौधरी श्यामता प्रसाद महिला महाविद्यालय, श्रावस्ती