संचार सेवाओं से जुड़ेंगे आदिवासी गांव
गांव में शुरू हुआ टॉवर लगाने का काम नेटवर्क न होने से देश-दुनिया से कटे थे यहां के लोग
संसू, श्रावस्ती : नेपाल सीमा से सटे आदिवासी गांवों में संचार सेवाएं बहाल होने जा रही हैं। लंबे समय से नेटवर्क की समस्या से जूझ रहे यह गांव अब देश-दुनिया की सूचनाओं से जुड़ सकेंगे। घर बैठ कर इंटरनेट की मदद से पढ़ाई करने से लेकर शासकीय कार्य निपटाने तक का काम आसान होगा। नेटवर्क की समस्या से जूझ रहे इन गांवों के लोगों ने लोकसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करते हुए दोपहर बाद तक एक भी वोट नहीं डाला था। दैनिक जागरण ने भी यहां के लोगों की समस्या को प्रमुखता से उठाया था। गांव में टॉवर लगने का काम शुरू हुआ तो गांव के लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं।
विकास क्षेत्र सिरसिया में नेपाल सीमा से सटे ग्राम पंचायत भचकाही की कुल आबादी लगभग छह हजार है। आसपास एक दर्जन आदिवासी गांव हैं। इन गांवों में नेटवर्क की दुरूहता थी। कहीं मोबाइल फोन पूरी तरह खिलौना बने रहते थे तो कहीं सिर्फ मोबाइल फोन पर बात हो पाती थी। इंटरनेट की सुविधा के लिए गांव से 10 किमी दूर जाना पड़ता था। वर्ष 2015 में विधानसभा चुनाव के दौरान गांव में टॉवर लगवाने की आवाज उठी। इसके साथ ही थारू समाज के लोगों ने संघर्ष करना शुरू किया। तमाम शिकवा-शिकायत के बाद भी बात नहीं बनी तो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में टॉवर नहीं तो वोट नहीं का नारा देते हुए गांव में वॉलपेंटिग की गई। मतदान का बहिष्कार भी हुआ। मतदान दिवस पर कर्मियों के समझाने-बुझाने के बाद यहां सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए थोड़े- बहुत वोट डाले गए थे। चुनाव बीतने के बाद भी संघर्ष जारी रहा। आखिरकार आदिवासी गांव के लोगों की मांग पूरी हुई। ग्राम पंचायत भचकाही के बनकटी में टॉवर लगाने का काम शुरू हो गया है। इसकी ऊंचाई 300 फीट होगी। चार खंभे व 16 पिलर लगाए जाएंगे। 16 सितंबर तक इस टॉवर से सेवाएं शुरू होने की उम्मीद है।
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उत्साहित हैं गांव के लोग
भचकाही गांव निवासी शिक्षक ईश्वरदीन चौधरी कहते हैं कि कोरोना संकट में विभाग से संबंधित कई कार्य ऑनलाइन निपटाने हैं। नेटवर्क न होने से गांव से दूर जाना पड़ता है। अब यह समस्या हल होती दिख रही है। ग्राम प्रधान जानकी कहती हैं कि टॉवर लगने के बाद अब हमारे गांव के बच्चे भी वर्चुअल पढ़ाई कर सकेंगे। प्रधान शिक्षक प्रताप नरायण कहते हैं कि घर बैठे देश-दुनिया की सूचनाएं आसानी से मिलेंगी। आशा कार्यकर्ता सीता कहती हैं कि इंटरनेट सुविधा मिलने से आदिवासी गांवों में अब संचार क्रांति होने जा रही है। सभी खुश हैं।