महंगी बिजली को लेकर व्यापारियों का धरना-प्रदर्शन
बिजली दरों में बढ़ोत्तरी के खिलाफ व्यापारियों ने धरना-प्रदर्शन किया। प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर दरें बढ़ाने का फैसला वापस लेने की मांग की। मांग पूरी न होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी।
शामली, जेएनएन। बिजली दरों में बढ़ोत्तरी के खिलाफ व्यापारियों ने धरना-प्रदर्शन किया। प्रशासन के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर दरें बढ़ाने का फैसला वापस लेने की मांग की। मांग पूरी न होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी भी दी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश संयुक्त उद्योग व्यापार मंडल के आह्वान पर गुरुवार को व्यापारी सुभाष चौक पर एकत्र हुए। इसके बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के आगे धरना शुरू कर सरकार के खिलाफ नारेबाजी। व्यापार मंडल के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम दास गर्ग ने कहा कि सरकार ने किसानों और व्यापारियों के लिए बिजली दरों में 15 फीसद की बढ़ोत्तरी कर दी है। व्यापारी मंदी से परेशान हैं और किसानों को भी गन्ने का भुगतान नहीं मिल रहा। सरकार ने पहले से परेशान व्यापारियों की कमर तोड़ने का काम किया है। वर्तमान में घरेलू कनेक्शन पर बिजली की दर छह रुपये प्रति यूनिट है और कॉमर्शियल के लिए दर 11 रुपये प्रति यूनिट है। लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि कॉमर्शियल दर भी घरेलू के बराबर की जाए, लेकिन सरकार ने हमारी बात को नहीं सुना। 22 सितंबर को मुरादाबाद में व्यापारी महासम्मेलन का आयोजन हुआ था और इसमें महंगी बिजली के विरोध में प्रदेशव्यापी धरना-प्रदर्शन करने का निर्णय हुआ था। गुरुवार को प्रदेश के तमाम जिलों में व्यापारियों ने धरना देकर सरकार को ज्ञापन दिया। अगर सरकार ने मांग को नहीं माना तो अगले माह बड़ा आंदोलन किया जाएगा। धरने पर नरेंद्र अग्रवाल, बृजभूषण संगल पवन कंसल, सचिन गोयल, मनोज मित्तल, ओमवीर सिंह, महेश धीमान, जयपाल सिंह, गौरव बंसल, रामदयाल गुप्ता, अजय बंसल, पंकज वालिया, प्रदीप विश्वकर्मा, सूर्यवीर सिंह, रवि संगल, रामकुमार राय, धनराज बंसल, विनोद संगल आदि मौजूद रहे।
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किसान यूनियन का रहा समर्थन
किसान यूनियन के अध्यक्ष सवित मलिक ने भी सुभाष चौक पहुंचकर धरने का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि सरकार को न व्यापारियों की चिता है और न ही किसानों की। बढ़ी बिजली की दरों से किसान और व्यापारी ही सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। अगर सरकार ने दरें कम नहीं की तो भविष्य में व्यापारी और किसान संयुक्त रूप से आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे। ऊर्जा निगम किसानों का उत्पीड़न भी कर रहा है। किसानों को गन्ना भुगतान नहीं मिला है और वह बिल जमा नहीं कर पा रहा है। दूसरी ओर निगम कनेक्शन काट रहा है।