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मामौर झील का कहर, सैकड़ों बीघा फसल व मकान जलमग्न

मामौर झील ने एक बार कहर बरपाया है। इस बार झील की मेड़ टूटने से जहां किसानों की सैकड़ों बीघा फसलें जलमग्न हो गई वहीं कई घरों में भी पानी घुस गया। एसडीएम व तहसीलदार ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 Jun 2021 10:51 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jun 2021 10:51 PM (IST)
मामौर झील का कहर, सैकड़ों बीघा फसल व मकान जलमग्न

शामली, जागरण टीम। मामौर झील ने एक बार कहर बरपाया है। इस बार झील की मेड़ टूटने से जहां किसानों की सैकड़ों बीघा फसलें जलमग्न हो गई, वहीं, कई घरों में भी पानी घुस गया। एसडीएम व तहसीलदार ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। प्रशासन ने जेसीबी मशीनों को लगाकर राहत-बचाव का कार्य शुरू करा दिया है।

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बुधवार को गांव मामौर स्थित झील में पानी का दबाव बढ़ने पर मेड़ टूट गई। इसके बाद किसानों व ग्रामीणों के सामने मुसीबत खड़ी हो गई। झील का गंदा पानी सैकड़ों बीघा फसलों में घुस गया, जिससे धान, बैंगन, पालक, शलजम आदि की फसल जलमग्न हो गई। किसान जाहिद 25 बीघा, नाजिम 15 बीघा, शाहबुद्दीन 10 बीघा, शेरा 30 बीघा, दिलशाद की 10 बीघा फसलों को नुकसान हुआ है।

इसके अलावा अन्य किसानों की भी करीब 400 बीघा फसलों में पानी घुसा है। यही नहीं, शराफत, शाहवेज, अय्यूब, नासिर, इलियास, दल्ली सिंह के मकान भी झील के पानी की जद में आ गए। मकानों में पानी घुस गया। इससे मकानों के गिरने का खतरा भी पैदा हो गया है। सूचना मिलने पर एसडीएम उद्भव त्रिपाठी व तहसीलदार प्रवीण कुमार टीम के साथ में मौके पर पहुंचे। उन्होंने स्थिति का जायजा लेते हुए किसानों से जानकारी ली।

ग्राम प्रधान पति मौलाना साजिद कासमी ने अधिकारियों को पूरे मामले से अवगत कराया। वहीं, प्रशासन की ओर से मौके पर नगरपालिका व एक अन्य दो जेसीबी मशीनों को लगाकर राहत-बचाव का कार्य शुरू कर दिया है। शाम तक मेड़ को दुरुस्त कराए जाने का कार्य जारी था। हालांकि, प्रशासन ने मेड़ को दुरुस्त करा दिए जाने का दावा किया है। एसडीएम उद्भव त्रिपाठी ने बताया कि उन्होंने मौके पर पहुंचकर निरीक्षण किया है। मेड़ को दुरुस्त करा दिया गया है।

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बर्बादी का सबब बनी झील

मामौर झील में कैराना कस्बे की निकासी का गंदा पानी जाता है। यह झील किसानों की बर्बादी का कारण बनी हुई है। बरसात के दिनों में अक्सर झील टूटती रही है, जिससे किसानों की हजारों बीघा फसलें बर्बाद होती रही। बिना बरसात के भी झील का कहर देखने को मिलता रहा है। दशकों से झील से उत्पन्न होने वाली इस समस्या का फिलहाल तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है।


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