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विचारों की 'बंदूक' से प्रदूषण के खिलाफ 'जंग'

ईश्वरपाल सिंह चौहान ने सेवानिवृत्ति के बाद जज्बा तो वही रहा लेकिन मोर्चा तब्दील हो गया। पहले बंदूक उनका हथियार था और अब विचार। पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित 70 वर्षीय ईश्वरपाल का कारवां लगातार बढ़ रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 10:23 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 10:23 PM (IST)
विचारों की 'बंदूक' से प्रदूषण के खिलाफ 'जंग'
विचारों की 'बंदूक' से प्रदूषण के खिलाफ 'जंग'

अनुज सैनी, शामली: देशसेवा के लिए न तो कोई स्थान नियत है और न दायरा। बस, जरूरत है जज्बा और जुनून की। ईश्वरपाल सिंह चौहान इसकी बानगी हैं। फौज में रहते हुए मातृभूमि की सेवा की। सेवानिवृत्ति के बाद जज्बा तो वही रहा लेकिन मोर्चा तब्दील हो गया। पहले बंदूक उनका हथियार था और अब विचार। पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित 70 वर्षीय ईश्वरपाल का कारवां लगातार बढ़ रहा है।

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सेवा के दौरान ही लिया संकल्प

गांव खंद्रावली निवासी ईश्वरपाल सिंह चौहान 27 अक्टूबर 1965 को सेना की सिग्नल कोर में भर्ती हुए थे। 1971 के भारत-पाक युद्ध में लड़ने के लिए उन्हें ईस्टर्न व वेस्टर्न दो मेडल मिले। युद्ध के दौरान पशु-पक्षी और पेड़ पौधों के नष्ट होने से पर्यावरण का बड़ा नुकसान होते देखा। इससे दुखी होकर प्रदूषण, भ्रष्टाचार, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जंग छेड़ने की शपथ ली।

फिर खुला दूसरा मोर्चा

1983 में रिटायरमेट के बाद साइकिल से डोर-टू-डोर लोगों को पर्यावरण संरक्षण का ककहरा पढ़ाना शुरू किया। चौपाल, बैठकों और गोष्ठियों में पौधारोपण के लिए प्रेरित किया। गांवों और शहरों में वृक्ष मित्र बनाकर उन्हें पौधे रोपने और उनकी देखभाल करने का संकल्प दिलाया। शुरू में लोगों ने इसे फिजूल का काम बताया, लेकिन बाद में पर्यावरण का महत्व समझने लगे। प्रतिदिन औसतन 30 किलोमीटर साइकिल चलाकर वह जगह-जगह पहुंचते हैं। साइकिल का प्रयोग इसलिए, ताकि प्रदूषणमुक्त माहौल बने। नशाखोरी, व अन्य सामाजिक कुप्रथाओं को लेकर भी लोगों को जागरूक करते हैं।

बना दिए हजारों वृक्षमित्र

साल 2012 से वह सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, शामली, बुलंदशहर, बिजनौर, बागपत, बड़ौत, हरिद्वार, दिल्ली, हरियाणा में पर्यावरण व जल बचाओ अभियान के तहत भ्रमण कर रहे हैं। स्कूल-कालेज, श्मशान घाट, कब्रिस्तान, चौपाल और विभिन्न स्थलों पर पौधे लगाने को प्रेरित करते हैं। करीब पांच हजार वृक्षमित्र बनाए। सबमर्सिबल पर रोक और जल बचाने के लिए भी प्रेरित किया। राजनीति से नहीं वास्ता

ईश्वरपाल कहते हैं, उनका मकसद राजनीति में आना नहीं है। वह देश सेवा करके ही खुश हैं। बताते हैं कि पूर्व में कई राजनीतिक दलों ने उन्हें आफर दिया, लेकिन उन्होंने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।


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