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पशुचरान भूमि मुक्त कराने को चला प्रशासन का डंडा

संवाद सूत्र, ¨झझाना : गांव नोनंगली में प्रशासनिक अधिकारियों ने पशुचरान की दो सौ बीघा मुक्त क

By JagranEdited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 10:24 PM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2019 10:24 PM (IST)
पशुचरान भूमि मुक्त कराने को चला प्रशासन का डंडा
पशुचरान भूमि मुक्त कराने को चला प्रशासन का डंडा

संवाद सूत्र, ¨झझाना : गांव नोनंगली में प्रशासनिक अधिकारियों ने पशुचरान की दो सौ बीघा मुक्त कराई। इस दौरान भूमि पर खड़ी गन्ने व गेहूं की फसल को ट्रैक्टर से जोतकर खुर्द-बुर्द कर दिया गया।

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पशुचरान की भूमि पर काफी समय से कब्जा था। इसकी शिकायत ग्रामीणों ने डीएम से की थी। डीएम ने एसडीएम ऊन को तहसील की उक्त भूमि से कब्जा हटाने का आदेश दिया था। डीएम के आदेश पर शनिवार को प्रशासनिक अमला गांव नोनंगली पहुंचा व 65 बीघा भूमि को मुक्त कराया। तहसीलदार ऊन व राजस्व टीम ने पुलिस बल की मदद से 26 पट्टाधारकों की फसल जोतकर शुक्रवार को मुक्त कराई थी। शनिवार को भी अभियान जारी रहा। प्रशासनिक अमला व पुलिस मौके पर पहुंची व बची फसल को नष्ट कर जमीन पर फिर से कब्जा किया। प्रशासनिक कार्रवाई देर शाम तक जारी थी। तहसीलदार चंद्रकांता ने बताया की इस भूमि पर आवारा पशुओं के लिए कांजी हाउस बनाया जाएगा। कब्जा हटाने का क्रम तीन दिन तक चलेगा। पशुचरान की लगभग तीन सौ बीघा जमीन पर कब्जा किया गया था, इसमें से काफी जमीन से कब्जा हटा दिया गया है। उन्होंने बताया कि पूरी जमीन से कब्जा हटाया जाएगा। प्रशासनिक अधिकारियों की कार्रवाई से पट्टा धारकों में रोष है। उन्होंने इसे अन्याय बताया है। उनका कहना है कि पहले पट्टा दिया गया और अब उनकी तैयार फसल को उजाड़ा जा रहा है। कब्जा मुक्त कराई गई जमीन ग्राम प्रधान की सुपुर्दगी में दी गयी।

पट्टाधारकों का विरोध

पुलिस ने भगाया

शनिवार को नोनांगली गांव में प्रशासनिक कार्रवाई पर सतीश, बहादुर, सुखपाल, सतपाल, रिशीपाल ने नाराजगी जताई। उन्होंने बताया कि वर्ष 1978 में ग्राम प्रधान सुखबीर ¨सह ने सभी को लगभग डेढ़ बीघा का पट्टा किया था। इसी से सभी की रोजी रोटी चल रही थी। प्रशासन ने इस भूमि से अब कब्जा हटा दिया है। वर्ष 1984 में हुई चकबंदी में भी पट्टे उनके नाम है। रजवाहे की आपासी भी उनके नाम से आ रही है। तहसीलदार चंद्रकांता का कहना है कि यह भूमि पशुचर की है। जिसमें तत्कालीन ग्राम प्रधान ने आसामी पट्टे किए थे। इनकी समय सीमा पांच साल होती है, लेकिन ग्रामीण उस पर आज तक अपना कब्जा जमाए हुए हैं। अब इस भूमि पर आवारा पशुओं के लिए कांजी हाउस बनाने की बात कही।


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