बशीर के घर अटल ने खोला था नवरात्र व्रत, आला हजरत पर कराई फूलों की बारिश
कैराना के लोगों के दिलों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यादें बसी हैं। बशीर अहमद के घर नवरात्र का व्रत खोलकर वह सौहाद्र्र का संदेश दे गए थे।
शामली (अनुज सैनी)। कैराना के लोगों के दिलों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यादें बसी हैं। कैराना की धरती पर नवरात्र का व्रत खोलने के लिए पूर्व चेयरमैन बशीर अहमद के घर खाना खाकर अटल दशकों पहले सौहाद्र्र का संदेश दे गए थे। अटलजी के काफी नजदीक रह चुके बशीर ने उनके निधन की खबर टीवी पर सुनी तो बड़ा झटका लगा। अश्रुधारा बह निकली। कैराना की राजनीति में वयोवृद्ध पूर्व चेयरमैन बशीर का वर्चस्व रहा।
अब ऐसे नेता कहा मिलते
छह बार कैराना के चेयरमैन रहे वयोवृद्ध बशीर ने रूंधे गले से पुरानी यादें ताजा करते हुए बताया कि साल 1988 में कैराना में मेले का आयोजन हुआ। यहां मैदान में अटलजी ने संबोधन किया। खाने का समय हुआ तो मेरे आवास पर पहुंचे। उस दौरान नवरात्र चल रहे थे। मुस्लिम होने के नाते नवरात्र में खानपान को लेकर मैं थोड़ा असहज महसूस कर रहा था। अटलजी एकदम भांप गए। उन्होंने कहा कि बशीर नवरात्र में हमारे खाने-पीने की व्यवस्था तुम्हारे ही हाथ से होगी। फिर क्या था, मैंने फटाफट उनके लिए व्रत के सामान की व्यवस्था की। उन्होंने मुझे बगल में बिठाकर चाव से खाना खाया। बकौल बशीर, अब ऐसे नेता कहा मिलते हैं। अटलजी ने सदा हिंदू-मुस्लिम एकता की बात की। उन्होंने कभी समाज में कटुता फैलाने वाली सोच तक नहीं रखी।
आला हजरत के उर्स में हेलीकॉप्टर से कराई थी फूलों की बारिश
प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ही एक मात्र ऐसी शख्सीयत हैं, जिन्होंने आला हजरत के उर्स में हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश कराई थी। चादर के साथ उर्स की मुबारकबाद का एक पत्र भी भेजा था। गुरुवार को जब उनके देहांत की खबर आम हुई, तो दरगाह से जुड़े लोगों के जहन में वर्ष 1999 का वो खूबसूरत नजारा ताजा हो गया। अटल जी ने अपने मंत्रिमंडल के सहयोगी तत्कालीन पेट्रोलियम राज्यमंत्री संतोष गंगवार, ज्ञानेंद्र शर्मा को दिल्ली से हेलीकॉप्टर लेकर भेजा था। हेलीकॉप्टर से इस्लामिया इंटर कॉलेज, मुहल्ला सौदागरान तक फूल बरसाए गए थे।
निधन से हर अमन पसंद की आंखें नम
केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने भेजी गई चादर दरगाह पर चढ़ाई। सज्जादानशीन को खत सौंपा। उनकी इस पहल का उर्स में शामिल हर जायरीन ने दिल खोलकर स्वागत किया था। उनके निधन की खबर हर अमन और तरक्की पसंद शख्स की आंखें नम कर गई। तंजीम उलमा-ए-इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बताते हैं कि वर्ष 1998 में उर्दू को सरकारी भाषा घोषित किए जाने की मांग लेकर उनसे पीएमओ में मुलाकात की थी। वह लेखक, शिक्षाविद और सूफियों को बेहद पसंद करते थे। उन्होंने उर्दू के संबंध में कहा भी था कि इस पर विचार करेंगे।