नानकमत्ता में हुआ बलिदानी सारज की अस्थियों का विसर्जन
जम्मू के पुंछ में बलिदान हुए सारज सिंह का अस्थि कलश लेकर उनकी पत्नी रंजीत कौर व अन्य स्वजन शुक्रवार को उत्तराखंड के नानकमत्ता गए। जहां अस्थियों का विसर्जन किया
जेएनएन, शाहजहांपुर : जम्मू के पुंछ में बलिदान हुए सारज सिंह का अस्थि कलश लेकर उनकी पत्नी रंजीत कौर व अन्य स्वजन शुक्रवार को उत्तराखंड के नानकमत्ता गए। जहां अस्थियों का विसर्जन किया।
11 अक्टूबर को आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सारज सिंह बलिदान हुए थे। उनकी पार्थिव देह गुरुवार को घर अख्तियारपुर धौकल गांव लाई गई थी। जहां सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ था। शुक्रवार को अस्थि कलश लेकर पत्नी रंजीत कौर परिवार के साथ नानकमत्ता पहुंचीं। जहां उन्होंने गुरुद्वारे के पास डैम में बने बौली साहिब में अस्थियां विसर्जित कीं। इस दौरान पूरा परिवार काफी भावुक दिखा। सारज के पिता विचित्र सिंह, मां परमजीत कौर व मामा गुरमीत सिंह अपने आंसू न रोक सके। उनके साथ गए अन्य स्वजन ने किसी तरह सभी को संभाला। रंजीत को भी काफी देर तक समझाते रहे। पूरी रात पति की फोटो देख रोती रहीं रंजीत
सारज को बलिदान हुए पांच दिन बीत चुके हैं। उनकी अस्थियां भी विसर्जित हो चुकी हैं, लेकिन रंजीत से वह एक पल भी दूर नहीं हुए हैं। आंखों से आंसू सूख चुके हैं, लेकिन वह अब भी पति की याद में बिलख रहीं हैं। गुरुवार को पूरी रात पति की फोटो देखकर रोती रहीं। मां व बहन उन्हें समझाने की कोशिश करते रहे, पर वह कुछ सुनने को तैयार नहीं।
सारज सिंह के जाने के बाद परिवार सदमे में है। सबसे ज्यादा उनकी पत्नी रंजीत कौर की हालत खराब है। रंजीत की मां कुलदीप कौर ने बताया कि बेटी पूरी रात सोई नहीं। वह अपनी दूसरी बेटी रजवंत कौर के साथ उसे संभालने की कोशिश करती रहीं, पर कोई फायदा न हुआ। पानी तक मुश्किल से पी रही हैं। यही हाल घर के अन्य सदस्यों का है। वे स्वयं को सामान्य दिखाने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन जो उन पर बीत रही है वे ही जानते हैं। पीलीभीत से हुई पढ़ाई
घर के बाहर अखबार में खबरें पढ़ रहे सुखवीर सिंह ने बताया कि सारज का जन्म 14 अप्रैल 1994 में हुआ था। सारज की पढ़ाई पीलीभीत के मरौरी स्थित गुरु गोविद सिंह इंटर कालेज में हुई। 12वीं पास करने के बाद सेना में भर्ती की तैयारी शुरू कर दी। 2015 में सेना में चयन होने के बाद रांची के रामगढ़ में प्रशिक्षण प्राप्त किया। सुखवीर ने बताया कि सारज की पहली पोस्टिग अरुणाचल प्रदेश में हुई। उसके बाद फरीदकोट और फिर राजौरी जिला में 16 आरआर में तैनात हुए। भर्ती के लिए छोड़ी पढ़ाई
सुखवीर सिंह ने बताया सारज सिंह को वे लोग आगे तक पढ़ाना चाहते थे ताकि वह कुछ और नौकरी या व्यावसाय करें, लेकिन उन्हें सेना में भर्ती होने का जुनून था। इसलिए इंटर के बाद पढ़ाई छोड़ भर्ती की तैयारी में जुट गए। जब वे लोग कुछ समझाते तो कहते उन्हें सेना की वर्दी पहननी है। रहेगी न मिल पाने की कसक
मायूस बैठे सुखवीर ने बताया कि नौकरी के कारण तीनों भाई एक साथ लंबे समय से नहीं मिले थे। सारज से उन लोगों का विशेष लगाव था। इसलिए लगातार प्रयास कर रहे थे कि किसी तरह एक साथ छुट्टी मिल जाए। कुपवाड़ा में नेटवर्क न होने के कारण बात भी कम हो पाती थी। बोले, सारज तो बलिदान हो गए। उनसे न मिल पाने की कसक ताउम्र रहेगी। अब उनसे पता नहीं कब मिल पाएंगे। यह कहकर उनकी आंखों में आंसू आ गए।