बिस्मिल ने समझाई बात तो अशफाक ने तुरंत कर दी हां
किसी के लिए राम-कृष्ण थे तो कई लोगों के लिए दो जिस्म एक जान। तमाम विरोध थे बंदिशें भी कई। कोशिशें तमाम हुईं पर ब्रिटिश हुकूमत भी दोनों में दरार न डाल सकी। हालांकि एक वक्त ऐसा आया था जब अशफाक उल्ला खां कुछ पल के लिए पं. राम प्रसाद बिस्मिल के खिलाफ हो गए।
जेएनएन, शाहजहांपुर : किसी के लिए राम-कृष्ण थे तो कई लोगों के लिए दो जिस्म एक जान। तमाम विरोध थे, बंदिशें भी कई। कोशिशें तमाम हुईं, पर ब्रिटिश हुकूमत भी दोनों में दरार न डाल सकी। हालांकि एक वक्त ऐसा आया था जब अशफाक उल्ला खां कुछ पल के लिए पं. राम प्रसाद बिस्मिल के खिलाफ हो गए। दरअसल रुपयों की जरूरत के लिए क्रांतिकारी अंग्रेजों के मददगार धनाढ्य लोगों से बलपूर्वक धन एकत्र करते थे। नौ मार्च 1925 को पीलीभीत के बिचपुरी में चंद्रशेखर आजाद, मनमथ नाथ गुप्त आदि के साथ अशफाक व बिस्मिल ऐसे ही एक व्यक्ति से धन लेकर आए, पर वह नाकाफी था। बिस्मिल ने हिन्दुस्तान रिब्लपिकन एसोसिएशन की बैठक बुलाई। सरकारी खजाना लूटने की योजना बनी, पर अशफाक ने विरोध किया। इस कदम को जोखिमपूर्ण व सरकार पर सीधा प्रहार बताया, लेकिन बिस्मिल के उद्देश्य बताने पर उन्होंने तत्काल सहमति दे दी और काकोरी कांड हुआ।
अफगानिस्तान से आए थे पूर्वज
साहित्यकार डा. प्रशांत अग्निहोत्री बताते हैं कि करीब तीन सौ साल पहले अशफाक के पूर्वज अफगानिस्तान से भारत आए थे। जमींदार परिवार के पिता शफीक उल्ला खां व मां मजहूरुन्निशां बेगम के चार बेटों में अशफाक शफीउल्ला, रियासत उल्ला, शहंशाह उल्ला खां थे। रियासत उल्ला बिस्मिल के साथ पढ़ते थे, लेकिन उनकी दोस्ती अशफाक से हुई।
बैरंग हो गई थी भीड़
अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला खां बताते हैं 1924-25 में आर्य समाज में कुछ प्रचारक रुके थे। अंग्रेजों के भड़काने पर मुस्लिम समाज के कुछ लोग वहां पहुंच गए। बिस्मिल हवन कर रहे थे। अशफाक बाहर आ गए और रिवाल्वर लेकर वहां खड़े लोगों से कहा अंदर जाने के लिए उनकी लाश से गुजरना होगा, जिसके बाद भीड़ बैरंग हो गई।
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फांसी से करीब दस दिन पहले परिवार के लोग अशफाक उल्ला से फैजाबाद जेल में मिले। उन्होंने मां व भाई को बताया कि काल कोठरी में बंद दो लोगों को फांसी होनी है। एक पर कत्ल का आरोप है। दूसरे वह हैं जो वतन के लिए जान देने जा रहे हैं। इसलिए रोएं नहीं गर्व करें। फिर सभी के आंसू पोंछे।
अशफाक उल्ला खां, प्रपौत्र अशफाक ने हिदी, उर्दू व अंग्रेजी में कई कविताएं, गजल, पत्र लिखे। जेल में रहकर डायरी भी लिखी। अपने वकील कृपाशंकर हजेला को 16 सितंबर 1927 को लिखे पत्र में कौमी एकता को जरूरी बताया। बालकों व मित्रों के लिए लिखा निष्क्रिय व्यक्ति जीवन से गुजर जाता है और अपने अस्तित्व का कोई प्रभाव नहीं छोड़ता। जैसे पानी पर झाग, वायुमंडल में धुआं। नवयुवकों निराश न हो। असफल होकर कोने में बैठकर शिकायत मत करो। उत्साहपूर्वक अपने आपको कार्य के प्रति समर्पित करो। मां को आखिरी चिट्ठी में लिखा जब मैं पैदा हुआ तो आपने कहा था कि अल्लाह ने अपना बंदा दिया जो उसकी अमानत है। वही अल्लाह देश के लिए अपनी अमानत वापस मांग रहा है। तो गुरेज नहीं होना चाहिए।
डा. प्रशांत अग्निहोत्री, साहित्यकार -----------------
अशफाक की पंक्तियां :
हे मेरी मातृभूमि तेरी सेवा किया करूंगा, मुश्किल हजार आएं हर्गित नहीं डरूंगा। फांसी मिले या जनम कैद हो मेरी, बेड़ी बजा बजा कर तेरा भजन किया करूंगा..।