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कलाई पर राखी, गोसंवर्धन की झांकी

कलाई पर राखी गोसंवर्धन की झांकी

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Aug 2022 11:45 PM (IST)Updated: Sat, 06 Aug 2022 11:45 PM (IST)
कलाई पर राखी, गोसंवर्धन की झांकी
कलाई पर राखी, गोसंवर्धन की झांकी

कलाई पर राखी, गोसंवर्धन की झांकी

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नरेंद् यादव शाहजहापुर : भारतीय त्योहारों की बदौलत आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने वाले ड्रैगन (चीन) को गोपालकों ने नवाचार से कड़ी चुनौती दी है। पिपरौला स्थित गोशाला में रक्षाबंधन पर पर्यावरण रक्षा के लिए गोबर की राखी तैयार की गई है। पैकिंग समेत करीब 20 रुपये में तैयार यह राखी बाजार में 25 से 30 रुपये में बिक रही है। खास बात यह है कि गोबर की राखी के आगे चाइनीज राखी की चमक फीकी पड़ गई है। पर्यावरण संरक्षण के साथ स्वावलंबन व गोसंवर्धन को बढ़ावा देने का यह अनुकरणीय कार्य किया है पारिस्थिकीय संतुलन को समर्पित शाहजहांपुर के पिपरौला स्थित कामधेनु अवतरण अभियान गोशाला ने। गोबर के दीपक, कंपोस्ट खाद के साथ अगरबत्ती, धूपबत्ती व पंचगव्य उत्पाद बनाने वाली इस गोशाला के संस्थापक इंजीनियर संजय उपाध्याय ने गोपालक व उनके स्वजन की मदद से गोबर की राखियां तैयारी की। इससे गोपालकों को घर बैठे रोजगार भी मिला। हरियाली से खुशहाली भी बांटेगी यह राखी गोबर की राखी को सजाने में सलमा सितारों के साथ बरगद, पाकड़, गूलर, नींबू, मौसमी, अनार, अमरूद, करौंदा, टमाटर आदि के बीजों का भी प्रयोग किया गया है। हाथ से उतरने के बाद जब यह राखी विलीन होगी तो मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के साथ पौधा का उपहार देगी। गोबर में मौजूद बीजों से पौधे तैयार पर्यावरण की रक्षा करेंगे। जबकि चाइनीज राखी कचरा का पर्याय बनी हुई है। इस तरह तैयार होती राखी संजय उपाध्याय व अनिल ने राखी बनाने का तरीका बताया। बोले, गोबर को सुखाकर बारीक पीस लिया जाता है। दस किलो गोबर में एक किलो ग्वारगम के अनुपात में अच्छी तरह गूंथ लिया जाता। तैयार प्राकृतिक मिश्रण में बरगद, पाकड़, गूलर, नींबू आदि के बीच मिला दिए जाते। सांचे अथवा हाथों से तैयार राखी को सूखने के बाद प्राकृतिक रंगों से रंग दिया जाता। ग्वारगम से ही धागे पर राखी को चिपकाकर आकर्षक पैकिंग में बिक्री के लिए बाजार में उतार दिया जाता। प्रति राखी पांच रुपये कमा रहे गोपालक गोबर की राखी से गोपालकों को पांच रुपये पारिश्रमिक मिल रहा है। ग्वारगम, पैकिंग सामान व प्राकृतिक रंगों में करीब 15 रुपये प्रति राखी खर्च आ रहा है। इस तरह बीस से 22 रुपये में तैयार राखी 25 से 30 रुपये में बिक रही है। बाजार में भी गोबर की राखी का क्रेज पहली बार बाजार में आयी गोबर की राखी का खरीदारों में क्रेज है। बहने इसे खरीदना पसंद कर रही है। सभी प्रमुख बिक्री केंद्रों पर राखी उपलब्ध कराई गई है। ई बाजार में भी गोबर की राखी की धूम अमेजान, फिलिप कार्ड समेत ई मार्केट प्लेटफार्म पर भी गोबर की राखी की खरीद हो रही है। तीन दिन के भीतर 200 गोबर की राखी के आर्डर मिल चुके है। गोबर की राखी के बारे में पहली बार सुना। देखने में बहुत ही सुंदर व आकर्षक है। स्वदेशी होने के साथ यह राखियां पर्यावरण के अनुकूल है। प्रयोग करने के साथ इन्हें मिट्टी दबाकर पौधे भी तैयार कर सकते हैं। ग्राहक राखियों को खूब पंसद कर रहे हैं। सपना गुप्ता, राखी विक्रेता गोशाला को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गोबर, गोमूत्र समेत पंचगव्य के उत्पाद तैयार किए। दीपावली पर गोबर के दीये बनाए। जिनकी अमेजान, फिलिप कार्ड पर काफी डिमांड आयी। इस बार फलदार, छायादार पौधों के बीजयुक्त गोबर की राखी उतारी गई। ई मार्केट से भी काफी डिमांड आ रही है। इस नवाचार से 16 लोगों को प्रत्यक्ष रोजागर मिला है। संजय उपाध्याय, संचालक कामधेनु अवतरण अभियान गोशाला, पिपरौला, शाहजहांपुर


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