पराली को खाद बनाने में मददगार आर्गेनोडीकम्पोजर
फसल अवशेष प्रबंधन में आधुनिक उपकरणों के साथ यूपीसीएसआर से तैयार आर्गेनोड
शाहजहांपुर : फसल अवशेष प्रबंधन में आधुनिक उपकरणों के साथ यूपीसीएसआर से तैयार आर्गेनोडीकम्पोजर कारगर साबित हो रहा है। कल्चर डालने के बाद फसल अवशेष जैविक खाद का रूप ले लेते हैं। गन्ना शोध परिषद ने इसके लिए जागरूकता अभियान शुरू कर दिया है।
कृषि विभाग की ओर से पराली जलाने पर की जा रही कार्रवाई के बाद गन्ना शोध परिषद के निदेशक डा. जे. ¨सह ने परिषद के उत्पादों का महत्व बताने के लिए टीम को उतार दिया। फसल अवशेष प्रबंधन को पहले से तैयार जीवाणु कल्चर 'आर्गेनोडीकम्पोजर' की महत्ता का किसानों के बीच प्रदर्शन भी शुरू कर दिया गया है।
आर्गेनोडीकम्पोजर से इस तरह फसल फसल अवशेष से बनाए खांद
निदेशक डा. जे ¨सह ने बताया कि 10 किग्रा आर्गेनोडीकम्पोजर को 100 किग्रा कम्पोस्ट खाद अथवा प्रेसमड मे मिलाकर प्रति हेक्टेअर की दर से पूरे खेत में डाल दे। अगले दिन ¨सचाई करें। इसके बाद 40 किग्रा यूरिया तथा 50 किग्रा ¨सगल सुपर फास्फेट/है0 की दर से टाप ड्रे¨सग करें। पर्याप्त नमी की दशा में ट्रैक्टर चालित डिस्क हैरो से पूरे खेत की जुताई कर दें। जरूरत पर ¨सचाई 2-3 जुताई/पल्टाई के बाद तीन सप्ताह में पराली व 30 से 40 दिन में नरई अथवा गन्ने की पताई कम्पोस्ट खाद बन जाती है।
शुरू की हेल्पलाइन : निदेशक डा. जे ¨सह ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 05842-222509 तथा 6389025313 नंबर पर हेल्पलाइन सेवा शुरू की है। प्रसार अधिकारी संजीव पाठक को प्रभारी बनाया गया।
पराली जलाने पर फसल की बुवाई जल्दी हो जाती है । पराली को न जलाने से जुताई में डीजल व गलाने के लए खाद लगानी पड़ती है। इससे पांच हजार प्रति एकड़ का खर्च आता। सरकार या तो पांच हजार की मदद दें, अन्यथा आदेश वापस ले। अनिल ¨सह यादव गांव लल्वापुर पुवायां
सर्वाधिक प्रदूषण उद्यमी फैलाते, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं। चीनी मिल, ईंट भट्ठा की राख सरकार को दिखाई नहीं देती। यह किसानों के साथ सौतेला व्यवहार है। सरकार पराली के प्रबंधन को आर्थिक मदद दें, अन्यथा सड़कों पर उतरेंगे।
रसपाल ¨सह, ग्राम सिरखड़ी पुवायां
फसल अवशेष प्रबंधन से यह होंगे प्रमुख लाभ
- वायु प्रदूषण रुकेगा। अस्थमा, आंखों में जलन व फेफड़े रोग नियंत्रण में मदद मिलेगी।
- आगजनी घटनाएं रुकेगी, जीवांश पदार्थ बढ़ेंगे। किसान का मित्र कैचुआ का कुनबा बढ़ेगा।
- मृदा की ऊपरी उपजाऊ परत संरक्षित होगी। जल धारण क्षमता बढ़ेगी।
- खाद का प्रयोग घटेगा, पैदावार में इजाफा होगा। फसल गुणवत्ता में सुधार होगा।
- भूमि में रंध्रावकाश से वायु का संचार बढ़ेगा। इससे पौधों की जड़ो का विकास आसानी
से होगा