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इलाज को नहीं बची पूंजी, पंजाब में पति की गई जान

लॉकडाउन ने जलालाबाद तहसील के गांव हरेवा निवासी रेखा की खुशियां छीन ली। पंजाब के गुरुदासपुर में इलाज के अभाव में उनके पति संतोष की मौत हो गई।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 11:49 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 07:37 AM (IST)
इलाज को नहीं बची पूंजी, पंजाब में पति की गई जान
इलाज को नहीं बची पूंजी, पंजाब में पति की गई जान

नरेंद्र यादव, शाहजहांपुर : लॉकडाउन ने जलालाबाद तहसील के गांव हरेवा निवासी रेखा की खुशियां छीन ली। पंजाब के गुरुदासपुर में इलाज के अभाव में उनके पति संतोष की मौत हो गई। ग्रामीणों ने चंदा करके किसी तरह संतोष का अंतिम संस्कार किया और रेखा को बच्चों समेत घर भेज दिया। तीन दिन पूर्व वह जैसे-तैसे गांव पहुंच गई, लेकिन अब वह बेसहारा है। मांग का सिदूर उजड़ चुका है, लेकिन वह बच्चों की परवरिश की चिता में परेशान है।

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सात माह पूर्व पत्नी रेखा व तीन बच्चों के साथ संतोष पंजाब के गुरुदासपुर में काम करने गए थे। वहां के गांव भूतनपुरा में रेखा का भाई मुकेश चीनी मिल में मजदूरी करता था। मुकेश ने संतोष को बुलाकर चीनी मिल में ठेकेदार के अधीन ट्रैक्टर चालक की नौकरी दिलवा दी। संतोष किराए का मकान लेकर परिवार को पाल रहा था। घर की रेलगाड़ी पटरी पर आने से पूर्व ही लॉकडाउन लग गया। संतोष पत्नी व बच्चों समेत भूतनपुरा में ही फंस गए। चार पांच माह की बचत लॉकडाउन में खत्म हो गई। इसी बीच संतोष बीमार हो गए। दवा के लिए पास में फूटी कौड़ी न बची थी। रेखा ने गांव फोन करके 30 हजार रुपये इलाज के लिए खाते में मंगवाए। निजी अस्पताल में डॉक्टर ने टायफायड बताया। करीब एक माह तक चले इलाज में सारा पैसा खत्म हो गया। लेकिन संतोष को तबीयत न सुधरी। तब रेखा पति को लेकर गुरुदासपुर के सरकारी अस्पताल गई। वहां डॉक्टरों ने दवाई देकर घर भेज दिया। तकरीबन एक माह के संघर्ष के बाद 16 मई को किराए के मकान में संतोष जिदगी की जंग हार गए। रेखा, पति के शव को गांव लाने के लिए छटपटाती रही। लेकिन एंबुलेंस वाले 30 हजार रुपये मांग रहे थे। एक दिन तक संतोष का शव अंतिम संस्कार के लिए रखा रहा। अगले दिन ग्रामीणों ने चंदा करके अंतिम संस्कार किया। ग्रामीणों ने ही 23 मई को किराए की गाड़ी से रेखा व उसके बच्चों को भूतनपुरा से लुधियाना भिजवाया। वहां 22 घंटे तक कोई सवारी नहीं मिली तो रोड पर ही रात गुजारनी पड़ी। 25 मई को प्राइवेट बस से किसी तरह गांव पहुंची। क्वारंटाइन सेंटर पर जो राशन मिला, उसी से चूल्हा जला। राशन कार्ड है, लेकिन तीन बच्चों की परवरिश का कोई साधन नहीं।

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