पूरे देश में हुए कार्यक्रम, जिले में अशफाक को भूला प्रशासन
कमजोर याददाश्त कमजोर लोकतंत्र और कमजोर प्रशासन की पहचान होती है।
शाहजहांपुर : कमजोर याददाश्त कमजोर लोकतंत्र और कमजोर प्रशासन की पहचान होती है। जिस जिले के नेता और प्रशासनिक अफसर जब शहीदों को ही भूल गए हों तो औरों को क्या याद रखेंगे। जिन अशफाक उल्ला खां ने देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी और देश को आजाद कराने के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। वे शाहजहांपुर के ही रहने वाले थे, लेकिन अफसोस यहां के नेता और प्रशासनिक अफसर उन्हें ही भूल बैठे।
इस महान क्रांतिकारी की जयंती पर देश में विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम हुये, लेकिन यहां उनकी मजार पर कोई दो फूल तक चढ़ाने नहीं पहुंचा। न तो प्रशासन को सुध रही और न ही सामाजिक संगठनों को समय मिला। सोशल मीडिया पर देशभक्ति दिखाने वाले कथित देशभक्तों, राजनीतिक दलों के नेताओं व स्कूल-कालेजों ने भी अशफाक उल्ला को याद करने की जरूरत नहीं समझी। शहीद के परिवार के सदस्यों ने जरूर मजार पर चादर चढ़ाई। गोष्ठी की, पूरा दिन बीत जाने के बाद भी अधिकारियों को सुध नहीं आयी। किसी को नहीं मिली फुर्सत
जिले में कभी कोई नेता आता है। कोई राष्ट्रीय पर्व होता है। कोई बड़ा सम्मेलन होता है। तो शहीदों की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करने की होड़ रहती है, पर उन्हें इतना महत्वपूर्ण दिन याद नहीं रहा। होली, ईद, दीपावली जैसे त्योहारों को समय से पहले मनाने वाले स्कूल कालेजों ने भी हद कर दी। अशफाक उल्ला खां की जयंती पर उनका स्मरण करने की फुर्सत तक नहीं मिली। हो रही वादाखिलाफी
अशफाक उल्ला खां की मजार की दशा सुधारने के लिए भी प्रयास नहीं हुये। गत वर्ष उनकी जयंती पर हुए कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने 60 लाख रुपये देने की बात कही थी। गृहमंत्री राजनाथ ¨सह ने भी मजार का जीर्णोद्वार कराने की बात कही थी। समय-समय पर अन्य नेताओं ने भी वादे किये, लेकिन कोई पूरा नहीं हुआ। मैं मीटिंग में था : डीएम
डीएम अमृत त्रिपाठी ने बताया कि मैं बरेली में मी¨टग में गया था। अपनी जगह एडीएम वित्त को कार्यक्रम में जाने के लिये कहा था। उन्हें वहां पर जाना चाहिए था। वह नहीं गये तो यह गंभीर मामला है। उनसे जवाब तलब किया जाएगा। .. जबाव तलब करने से क्या होगा ?
डीएम अमृत त्रिपाठी ने बताया कि एडीएम से जबाव तलब किया जाए। जब शहीद को भूल बैठे तो अब जबाव तलब करने से क्या फायदा। कहते हैं शहीद मरते नहीं उन्हें जब भूला दिया जाता तभी मरते हैं। इस क्रांतिकारी के साथ जो नाइंसाफी खुद के गृह जनपद के नेताओं सामाजिक संगठनों और प्रशासनिक अफसरों ने की है वह शर्मनाक है। बड़े अफसोस की बात है कि प्रशासन की ओर से चादरपोशी नहीं हुई। मध्य प्रदेश के खजुराहो में उनकी जयंती पर कार्यक्रम था। वहीं से वापस आ रहा हूं। देश में कई जगह कार्यक्रम हुये, पर अपने ही शहर में कार्यक्रम न होना अफसोसजनक है।
अशफाक उल्ला खां, प्रपौत्र