कोर्ट के नतीजे से नहीं हुए संतुष्ट तो खुद कर दिया फैसला
शाहजहांपुर : करीब 15 वर्ष तक कोर्ट में चले बंटवारे के दौरान दो बार ओमकार के विपक्ष में
शाहजहांपुर : करीब 15 वर्ष तक कोर्ट में चले बंटवारे के दौरान दो बार ओमकार के विपक्ष में फैसला आया, पर वह इससे संतुष्ट नहीं था। उसने मंडलायुक्त की कोर्ट में अपील तो की ही साथ ही खेत पर भी कब्जा कर लिया। जब भूपराम ने हक जताना चाहा तो घटना को अंजाम देकर अपना फैसला सुना दिया।
भूपराम व ओमकार के बीच विवाद की जड़ बनी तीन एकड़ जमीन भूपराम के पिता मोतीलाल ने देवकली गांव के शिवदर्शन से 1972 में खरीदी थी। कुछ समय बाद मोतीलाल का निधन हो गया, जिस कारण जमीन का दाखिल खारिज नहीं हो पाया। 1992 में शिवदर्शन ने भूपराम के नाम पर जमीन का बैनामा कर दिया, जिसका मोतीलाल के भाई ओमकार व रेवती ने विरोध किया। उनका कहना था कि जमीन भाई ने खरीदी थी। उसके हिसाब वे दोनों भी बराबर के हिस्सेदार हैं। जबकि भूपराम का कहना था कि जमीन उसके पिता ने खरीदी थी इसलिए हक उसका है। इसको लेकर 2002 में ओमकार ने कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। फैसला भी उसके पक्ष में आया। जिसके विरोध में भूपराम ने अपील दायर कर दी। 2007 में भूपराम के पक्ष में आदेश आया, जिस पर आपत्ति करते हुए ओमकार ने फिर से अपील की। 2017 में फैसला आया, लेकिन भूपराम के पक्ष में। भूपराम ने खेत की जोताई कर फसल बोई, लेकिन ओमकार ने उसे जोतवा दिया और मंडलायुक्त की कोर्ट में अपील कर दी। इस बीच ओमकार ने अपना कब्जा बरकरार रखते हुए खेत में सरसों की फसल लगवा दी। दो दिन पहले ही उसने फसल कटवाई थी। जिस पर भूपराम ने अपने पक्ष में दो-दो बार फैसला होने का हवाला देते हुए खेत पर कब्जा करने की बात कही। बुधवार को वह उसी के आधार पर खेत की जोताई कराने गये थे, जहां यह घटना हो गई।
बराबर हिस्सा मांग रहा था ओमकार
भूपराम के पिता मोतीलाल, ओमकार व रेवती तीन भाई थे। रेवती की शादी नहीं हुई है वह ओमकार के पास ही रहता है। ओमकार का कहना था कि तीन एकड़ खेत के तीन हिस्से यानी एक-एक एकड़ जमीन बराबर बंटनी चाहिए, जबकि भूपराम बंटवारे की दशा में डेढ़-डेढ़ एकड़ की बात कह रहा था।