नाले में तब्दील हो रही गर्रा नदी
शाहजहांपुर : आमतौर पर नदी किसी शहर के सभ्यता-संस्कृति व विकास की महत्वपूर्ण घटक होती है। लेकिन इसे इ
शाहजहांपुर : आमतौर पर नदी किसी शहर के सभ्यता-संस्कृति व विकास की महत्वपूर्ण घटक होती है। लेकिन इसे इस शहर की विडंबना ही कहेंगे कि गर्रा नदी इस शहर में राजा के विनाश का कारण बन गई। इस दर्द को इस शहरी की जीवनदायिनी गर्रा नद से बेहतर कौन जानता है। गर्रा ने साक्षी बनकर एक बड़ा परिवर्तन देखा है।
इनसेट
पूर्व इतिहास-
नदी न शाहजहांपुर का कर दिया शिलान्यास
शाहजहांपुर गजेटियर के अनुसार मुगल बादशाह के सिपहसालार बहादुर खां दिल्ली से बिहार प्रांत हाथी खरीदने के लिए जा रहे थे। इधर से गुजरने पर बहादुर खां ने मल्लाह से नदी पार कराने का हुक्म दिया। इस पर मल्लाह ने साफ इंकार करते हुए कहा हम तो एक ही राजा दयाराम ¨सह यादव को ही जानते हैं। अगर इतने ही बड़े राजा हो तो पुल बनवा लो। इस तरह बात-बात में नाविक के मुंह से निकली बात ने इस शहर का इतिहास ही बदल दिया। यह बात सन्1600 के आसपास की है। राजा दयाराम राजा भोला ¨सह महीपत यादव के सामंत थे। भोला ¨सह का राज्य बदायूं, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, फर्रुखाबाद तक फैला हुआ था। पुल निर्माण बाद दयाराम व बहादुर खां के मध्य कई संग्राम बाद मुगल साम्राज्य स्थापित हो गया। इस तरह नदी ने इस शहर के इतिहास को ही पलट दिया था। गर्रा का वास्तविक नाम देवहूति है, जो कपिल मुनि की मां हैं। मां देवहूति की अत्यधिक तपस्या के कारण शरीर गल-गल कर पानी बन गया। वहीं कालांतर में गर्रा नदी नाम से चर्चित हो गया। गर्रा नदी जनपद पीलीभीत की एक झील से निकली हैं। रौसर कोठी के पीछे गर्रा व खन्नौत नदियों का मिलन होता है।
गर्रा की प्रदूषण से घुटती सांसें
नदी का विकृत रूप शहर के उपनगर रोजा में कृभको श्याम फर्टीलाइजर, रिलायंस थर्मल पॉवर प्लांट के पीछे दिखाई देता है। इन प्लांट की सारी घातक गंदगी गर्रा नदी में ही गिरती है। प्लांट से पहले और प्लांट के पीछे बह रही नदी के जल में काला और सफेद रंग का अंतर साफ नजर आता है। इनमें लगे वाटर क्लीनर प्लांट विधिवत कार्य न करने से दुष्प्रभाव आसपास के कृषक झेल रहे हैं। क्योंकि इसके घातक रसायनों से भूमि की उवर्रा शक्ति व फसल को नुकसान पहुंच रहा है। इन खेतों के खाद्यान्न को खाकर व्यक्ति कई रोगों का शिकार हो रहा है।
कंक्रीट के जाल ने नदी को घेरा
नदी की लहराती मस्ती को शहर की बढ़ती आबादी ने सीमाओं में बांध दिया है। इंसानीे आबादी के ज्वार की वजह से रेलवे स्टेशन के आगे, सुभाष नगर, ईदगाह, हद्दफ चौकी, ककरां मुहल्ला के पीछे बहने वाली गर्रा नदी अब सकुचा कर चलने लगी है।
कूड़ा-करकट ने प्रदूषित कर दी जल-वायु
शहर का सारा कूड़ा-निस्तारण दोनों नदियों के मुहाने पर ही झोंका जाता है। इससे नदी का जल तो प्रदूषित होता ही है साथ ही आसपास का वातावरण भी दूषित हो गया है। नदी में आवारा मृत पशु, लावारिस लाशें, पॉलीथिन में बंधा कूड़ा ढेर ने नदियों के जल को विषैला बना दिया है। शासन-प्रशासन प्रयास करने पर भी अब तक टं¨चग ग्राउंड की तलाश नहीं कर सका। शहर में अब तक सीवर लाइन सिस्टम को दुरस्त न करने से नालों का पानी नदियों में गिरने से नदियों की बेवजह मौत हो रही है। जिसके लिए काफी हद तक दोषी शासन भी है।
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फैक्ट्रियों से निकलने वाले हानिकारक तत्वों को फिल्टर करने की बात कागजों पर ही होती हैं, अमल में ऐसा कुछ नहीं है। नदी के जलीय जीव-जंतु का जीवन प्रभावित हो गया है। शहर के सभी नालों का गंदा पानी नदी में गिरने से भी नदी प्रदूषित हो गई हैं। सीवरेज प्लांट की इस शहर को बेहद जरूरत है। नदियों के विकास के लिए पालिका प्रशासन नदियों के किनारे-किनारे टूरिस्ट प्लेस, पार्क, म्यूजियम बनाए। इसमें जल प्रबंधन, इतिहास, विज्ञान, पर्यावरण संबंधी जानकारी को उपलब्ध कराकर जनता को नदियों के प्रति जागरुक किया जाए। नदियों में सल्फर, नाइट्रोजन, आक्साइड्स, कोमाइट्स, आर्गेनिक तत्व मिलने से बॉयोलिजिक ऑक्सीजन डिमांड बहुत तेजी से बढ़ रही है। पानी में फ्लोरा व फ्रॉना का तंत्र प्रभावित हो रहा है। क्योंकि फ्लोरा व फ्रॉना सूक्ष्मजीवी ही पानी को शुद्ध करते हैं, जो उनके प्रभावित होने से पानी की शुद्धता संभव नहीं हो पा रही है।
-प्राचार्य जीएफ डिग्री कॉलेज, वनस्पति विज्ञानी, डॉ. अकील अहमद।
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मरे जानवर नदियों में छोड़ने पर प्रतिबंध लगना चाहिए। इससे नदी पानी अत्यंत विषैला हो जाता है। वहीं पॉलीथिन के प्रयोग पर पूरी तरह से उपयोग हो जाना चाहिए। क्योंकि इससे नदी की सांस घुटती है। नालों का रुख नदी में न मोड़ा जाए। स्कूल-कॉलेज में अभियान चलाकर बच्चों को नदियों के प्रति जागरुक किया जाए। संस्था के माध्यम से वह नदियों के किनारे को साफ करने का अभियान इसी माह चलाने वाली हैं। ताकि नदियों के प्रति अपने दायित्वों को निभा सकें।
-सामाजिक संस्था जनजाग्रति अध्यक्ष अंशू राजानी।
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गर्रा नदी का वजूद खतरे में है। नदी आबादी बढ़ने से संकीर्ण हो गई है। नदी में भारी तत्व नदी में बरसात, कृषि आदि के माध्यम से मिल रहे हैं। इससे सबसे बड़ा नुकसान पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक तत्व भूमि की गहराई में समा रहे हैं। यह भूमि की उवर्रा शक्ति को नष्ट कर रहा है।
-डॉ. इरफान ह्यूमन, विज्ञानवेत्ता।