..तो बच्चे सिर्फ किताबों में देखेंगे कुआं
मांगलिक संस्कारों में कुआं का है महत्वपूर्ण स्थान विलुप्त होने की कगार पर है पूर्वजों का जलस्त्रोत
संत कबीरनगर : पूर्वजों के जलस्त्रोत का संसाधन कुआं विलुप्त होने की कगार पर है। कुछ दशक पूर्व हर गांव में बहुतायत में पाया जाने वाला कुआं अब कहीं-कहीं पर ही दिख रहा है। हिदुओं के मांगलिक संस्कारों की धूरी रहा कुआं अब अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। यदि शासन-प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो हमारी आने वाली पीढ़ी कुआं को किताबों में ही देख पाएगी।
जिले के सेमरियावां ब्लाक में 113 ग्राम पंचायत के तहत 190 राजस्व गांव आबाद हैं। कभी इन गांवों में कुओं की संख्या हजारों में भी। लोग उसी से पानी पीने के साथ ही खेती में भी पानी की कमी दूर करते थे। कितु जैसे-जैसे संसाधन बढ़ता गया वैसे-वैसे कुओं का अस्तित्व मिटता रहा। अगर कहीं बचे भी हैं तो लोग इसे कूड़ा करकट के उपयोग में तो कहीं नाली के गंदे पानी गिरा रहे हैं।
क्षेत्र के डा. रामनरायन सिंह, राजकुमार गुप्ता, सैदा हुसैन, शफीक मोहम्मद ने बताया कि जब गांव तथा खेत-खलिहान के कुओं में पानी रहा तो गांव के लोगों के घरों में लगे हैंडपंप कभी सूखते नहीं थे। अब तो मार्च-अप्रैल लगते ही जलस्तर गिरकर नीचे चला जाता है। सरकार हर वर्ष लाखों रुपये सिर्फ तालाब-पोखरा के मरम्मत और खोदाई पर खर्च कर रही है, यदि थोड़ा पैसा व ध्यान विलुप्त हो रहे कुओं पर दिया जाय तो इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजा जा सकता है।