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कबीर की धरती पर पं.नेहरू ने किया था जार्ज पंचम को नीलाम

सेठ गब्बूलाल का करीब बीस वर्ष पहले देहांत हो चुका है। उनके पुत्र राधेश्याम गुप्त ने बताया कि पिता जी स्वाभिमान के साथ यह वृतांत सुनाते थे। उस नोट को उन्होंने संजोकर रखा था। हमने भी उसे धरोहर बनाकर रखा हुआ है। यह परिवार का गौरव है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Nov 2020 11:01 PM (IST)Updated: Fri, 13 Nov 2020 11:01 PM (IST)
कबीर की धरती पर पं.नेहरू ने किया था जार्ज पंचम को नीलाम
कबीर की धरती पर पं.नेहरू ने किया था जार्ज पंचम को नीलाम

संतकबीर नगर: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पं. जवाहर लाल नेहरू ने संतकबीर नगर में ब्रिटेन के राजा जार्ज पंचम को प्रतीकात्मक रूप से नीलाम किया था और मेंहदावल कस्बे के सेठ गब्बू लाल ने 2500 रुपये की बोली लगाकर उन्हें अपना सांकेतिक दास बनाया था।

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मेंहदावल तहसील का जहां मुख्यालय है, आजादी के पहले वहां बाग था। उसे पड़ाव बाग कहते थे। आजादी का आंदोलन चरम पर था। इस जज्बे को बनाए रखने के लिए नेता गोपनीय बैठकें करते थे। आंदोलन के लिए धन संग्रह भी जोरों पर हो रहा था। इसी सिलसिले में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. लालसा प्रसाद मिश्र, सुखदेव, सहदेव लहेरा, करिया बारी, वीरे निषाद, श्यामलाल मिश्र के बुलावे पर पूर्व प्रधनमंत्री पं. नेहरू 11 फरवरी 1946 को यहां आए। बाग में बैठक हो रही थी। पं. नेहरू ने सेनानियों को संबोधित करते हुए अपनी जेब से जार्ज पंचम के चित्र वाला पांच रुपये का नोट निकाला और हवा में लहराते हुए बोले, 'अब हमारी दासता के दिन खत्म होने वाले हैं। अंग्रेजी सरकार का जल्द पतन तय है। अब कोई राजा नहीं रहेगा। अपने बीच का कोई भी व्यक्ति महाशक्तिशाली ब्रिटेन के राजा जार्ज पंचम को अपना दास बना सकता है।' जार्ज पंचम की नीलामी के आह्वान पर आजादी के दीवानों में होड़ सी लग गई और सभी बढ़-चढ़कर बोली लगाने लगे। सबसे बड़ी बोली कस्बे के सेठ गब्बूलाल की रही। उन्होंने 2500 रुपये में जार्ज पंचम को प्रतीकात्मक रूप से खरीद लिया। पं. नेहरू ने नोट पर हस्ताक्षर किए कर सेठ गब्बूलाल को नोट सौंप दिया।

परिवार की धरोहर है नोट

सेठ गब्बूलाल का करीब बीस वर्ष पहले देहांत हो चुका है। उनके पुत्र राधेश्याम गुप्त ने बताया कि पिता जी स्वाभिमान के साथ यह वृतांत सुनाते थे। उस नोट को उन्होंने संजोकर रखा था। हमने भी उसे धरोहर बनाकर रखा हुआ है। यह परिवार का गौरव है। कुछ लोगों ने इसे खरीदने का प्रयास किया था, लेकिन मना कर दिया गया। नोट पर माला पहनाकर मनी थी दीपावली

बकौल राधेश्याम गुप्त, 'मां बताती थीं कि आजाद भारत की पहली दीवाली पर पिता जी को इसी नोट के साथ माला पहनाई गई थी। सभी ने धूम से दीवाली मनाई थी।


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