अपने पसीने से अब जिले को ही बनाएंगे मुंबई-दिल्ली
खलीलाबाद रेलवे स्टेशन से अभी तक नहीं बिका टिकट जासं संत कबीर नगर लॉकडाउन में खलीलाबाद रेलवे स्टेशन से आरक्षित टिकटों की बुकिग के सप्ताहभर बीत गए। शुक्रवार तक बुकिग खिड़की से एक भी टिकट नहीं बिका। यहां से लोग अपना टिकट जरूर निरस्त करा रहे हैं। लॉकडाउन के बाद से अभी तक करीब चार लाख रुपये का टिकट निरस्त हुआ है। वाणिज्य अधीक्षक कमल चंद ने बताया कि आरक्षित खिड़की नियमित खुल रही है। पूर्व में स्टेशन पर प्रतिदिन 300 आरक्षित टिकटों के साथ 2400 अनारक्षित टिकट की बुकिग होती थी।
संत कबीरनगर : यहां के नौजवान निकले तो थे परिवार की खुशहाली के लिए अपने पसीने से हर जतन करके हर सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए। ऐसा नहीं था कि शहरों में उन्हें बिना पसीना बहाए धन मिलता था। कोई पेंट-पॉलिस तो कोई राजगीर मिस्त्री का कार्य करता रहा। ठेला लगाने के साथ ही दरवान की भूमिका भी निभाते रहे। हां कुछ लोग हैं जो आफिस में बैठकर अच्छा कमा लेते थे। कोरोना का संकट आया तो सभी सड़क पर आ गए।
कार्यस्थलों पर ताला लग गया। मकान मालिक भी बेगाने हो गए। रखा पैसा जब खत्म हुआ तो गांव की याद आई। अपार कष्ट सहकर प्रवासी अपने गांवों को वापस लौटे हैं। उन्हें अब अपना घर और जिला ही अच्छा लग रहा है। अधिकतर अब वापसी के बारे में नहीं सोच रहे। तमाम ऐसे भी हैं जो अब अपने पसीने से जिले को ही मुंबई-दिल्ली और गुजरात बनाने का सपना देख रहे हैं।
लॉकडाउन के पहले चक्र में तो प्रवासी मजदूर इंतजार करके महानगरों में ही बने रहे। दूसरे चक्र का आरंभ होने के साथ ही संक्रमण बढ़ने से इन मजदूरों के सामने दोतरफा संकट आ गया। एक तरफ गांव से फोन पर फोन, दूसरी तरफ किराए के छोटे से कमरे में बिना काम के समय नहीं कटने से उबन और आर्थिक संकट। नतीजा इनका धैर्य टूट गया और सधे कामगारों के पैर घर की तरफ बढ़ चले। रास्ते में कहीं रोके गए, कहीं उनको भोजन पानी देने वालों की कतार भी रही। चैन उन्हें घर पर ही पहुंचकर मिला। अब तक जिले में लगभग 85 हजार प्रवासी मजदूर वापस आ चुके हैं। अब इन लोगों का कहना है कि वहां भी मेहनत करते थे, यहां और भी करेंगे। जमया निवासी प्रेम यादव गुजरात में टाइल का कारोबार करते थे, धर्मसिंहवा के लालू दिल्ली से पांच वर्ष बाद लौटे, बखिरा के बूंदीपार निवासी उदय नरायन मुंबई के कांदेवली में कपड़ा प्रेस करते थे। दुधारा थानाक्षेत्र के समदा निवासी चंद्रशेखर और थवईपार के उमेश कुमार तथा दुधारा के हीरालाल मुंबई में रहकर कंपनी में करते थे। इन लोगों का कहना है कि अपना पसीना अब गांव और जिले की माटी पर ही बहाएंगे। यहां कम मजदूरी भले ही मिलेगी पर अपनों का प्यार तो मिलेगा। तमाम प्रवासी मजदूरों ने अब बाहर न जाने का संकल्प दुहाराया।
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खलीलाबाद रेलवे स्टेशन से अभी तक नहीं बिका टिकट जासं, संत कबीर नगर: लॉकडाउन में खलीलाबाद रेलवे स्टेशन से आरक्षित टिकटों की बुकिग के सप्ताहभर बीत गए। शुक्रवार तक बुकिग खिड़की से एक भी टिकट नहीं बिका। यहां से लोग अपना टिकट जरूर निरस्त करा रहे हैं। लॉकडाउन के बाद से अभी तक करीब चार लाख रुपये का टिकट निरस्त हुआ है। वाणिज्य अधीक्षक कमल चंद ने बताया कि आरक्षित खिड़की नियमित खुल रही है। पूर्व में स्टेशन पर प्रतिदिन 300 आरक्षित टिकटों के साथ 2,400 अनारक्षित टिकट की बुकिग होती थी।