नारी सशक्तिकरण : सम्भल का भारत ट्रांसपोर्ट अब तो 'भाभी ट्रांसपोर्ट'
सम्भल जिले के चंदौसी में भारत ट्रांसपोर्ट को तो अब लोग भाभी ट्रांसपोर्ट के नाम से ही जानते हैं। पति के निधन के बाद मंजुला शर्मा को पति का ट्रांसपोर्ट व्यवसाय संभालना पड़ा।
सम्भल [कपिलकांत शर्मा]। देश में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पुरुष प्रधान माना जाता है। इसको झुठलाने की मुहिम छेड़ दी है, मंजुला शर्मा ने। उन्होंने इस व्यवसाय में अपने संघर्ष के बूते सुनिश्चित की भागीदारी की है। आज संभल में उनका पूरा दबदबा कायम है।
सम्भल जिले के चंदौसी में 'भारत ट्रांसपोर्ट' को तो अब लोग 'भाभी ट्रांसपोर्ट' के नाम से ही जानते हैं। पति के निधन के बाद मंजुला शर्मा को पति का ट्रांसपोर्ट व्यवसाय संभालना पड़ा। पुरुषप्रधान इस व्यवसाय में संघर्ष के बूते उन्होंने न केवल बेहतर प्रदर्शन कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की बल्कि कारोबार को दोगुना कर एक मिसाल भी पेश की। उन्होंने भारत ट्रांसपोर्ट को सम्भल जिले में शीर्ष के ट्रासपोर्ट में ला खड़ा किया है।
सम्भल के चंदौसी के फडय़ाई बाजार में मंजुला शर्मा की मिसाल हर कोई देता है। उनकी इस सफलता के पीछे संघर्ष की लंबी दास्तान भी है। बात 30 सितंबर, 2007 की है। मंजुला के पति महेंद्र कुमार का निधन हो गया। महेंद्र भारत ट्रांसपोर्ट नाम से कंपनी चलाते थे। उनके निधन के बाद अब परिवार और व्यवसाय को संभालने की जिम्मेदारी मंजुला पर थी। उनका एक बेटा और दो बेटियां हैं। बच्चे तब इतने परिपक्व नहीं थे। इस स्थिति में मंजुला ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने भारत ट्रांसपोर्ट कंपनी संभालने का निर्णय किया।
पुराने कर्मचारी उन्हें भाभी कहकर पुकारते थे। कर्मचारियों के सहयोग से धीरे-धीरे व्यवसाय को समझा और संभालना शुरू किया। ग्राहक भी उन्हें अब तो भाभी कहकर ही बुलाने लगे। जैसे-जैसे काम रफ्तार पकड़ता गया, भारत ट्रांसपोर्ट को लोग भाभी ट्रांसपोर्ट के नाम से पहचाने लगे। ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में एक महिला संचालिका का होना लोगों के लिए अचरज भरा था।धीरे-धीरे मंजुला शर्मा का ट्रांसपोर्ट व्यवसाय बुलंदियां छूने लगा। आर्थिक संकट को दूर करने के साथ ही दोनों बेटियों को ससुराल भी विदा किया।
शुरुआत में आई दिक्कत तो दिया करारा जवाब
मंजुला शर्मा बताती हैं कि पति के निधन के समय ट्रांसपोर्ट पर सिर्फ मुंशी राजेंद्र गुप्ता थे। पति के निधन के कुछ माह बाद उनका भी निधन हो गया, जिससे काम की बागडोर पूरी तरह से उन्हें ही संभालनी पड़ी। फिर उन्होंने कोई मुंशी या अन्य कर्मचारी नहीं रखा। खुद ही काम संभाला। वह कहती हैं, शुरुआत में काफी दिक्कत आई। ड्राइवर, मैकैनिक, लेबर से लेकर बुकिंग एजेंट और आरटीओ तक, इस कारोबार में ज्यादातर पुरुष ही हैं। इनका रवैया कैसा होता है, सभी जानते हैं। इन्हीं से रोज वास्ता पड़ता। उनकी अमर्यादित भाषा और हरकतों से दो चार होना पड़ता। भाभी के संबोधन में कई बार वे मेरा उपहास भी उड़ाते। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। बस काम और परिवार पर ध्यान दिया। काम को बुलंदियों पर पहुंचाकर इन लोगों को करारा जवाब भी दिया। इन गाडिय़ों के परमिट, मेंटनेंस आदि का काम भी खुद ही देखती हूं। यह सब कुछ समझने में भी काफी कठिनाई का सामना किया। अब सब समझ चुकी हूं।
दोगुनी से ज्यादा कर दीं गाडिय़ां
पहले भारत ट्रांसपोर्ट कंपनी में आयशर, महिंद्रा, माजदा, जोगा, टाटा 407 समेत 20 गाडिय़ां अटैच थीं। जब मंजुला ने कंपनी को संभाला तो उसके बाद आज की तारीख में वाहनों की संख्या 40 से अधिक हो गई है। पहले उत्तर प्रदेश और दिल्ली के लिए ही बुकिंग होती थी। मेहनत कर उन्होंने गजरौला, हापुड़, सम्भल व मुरादाबाद के ट्रांसपोर्टरों से मुलाकात की और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तक कारोबार को आगे बढ़ाया।
शिक्षिका भी रही हैं मंजुला
मंजुला शर्मा को अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए कई बार सम्मानित किया जा चुका है। मंजुला ने 1975 में हाई स्कूल और 1976 में इंटर किया था। इंटर की पढ़ाई के दौरान ही बुलंदशहर के सैदपुर में मिलिट्री हीरोज मैमोरियल इंटर कॉलेज की ब्रांच आदर्श सैनिक विद्यालय में चार साल तक शिक्षिका रहीं। इसी दौरान बीए भी कर लिया। बुलंदशहर के बीबी नगर में खुद का पब्लिक मांटेसरी स्कूल भी चलाया। दो वर्ष तक उनका स्कूल चला फिर शादी हो गई।