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दिव्यांगता को लाचारी नहीं बनाया, जिदगी में भर लिए कामयाबी के रंग

चलना ही जिदगी है.। इसके लिए पैर नहीं हौसला और जुनून चाहिए। दो पैर तथा एक हाथ से दिव्यांग शाहआलम की कहानी यही प्रेरणा देती है। पोलियो के कारण दो पैर तथा एक हाथ से दिव्यांग होने के बाद भी शाह आलम ने हार नहीं मानी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 11:04 PM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 11:04 PM (IST)
दिव्यांगता को लाचारी नहीं बनाया, जिदगी में भर लिए कामयाबी के रंग
दिव्यांगता को लाचारी नहीं बनाया, जिदगी में भर लिए कामयाबी के रंग

सहारनपुर जेएनएन। चलना ही जिदगी है.। इसके लिए पैर नहीं, हौसला और जुनून चाहिए। दो पैर तथा एक हाथ से दिव्यांग शाहआलम की कहानी यही प्रेरणा देती है। पोलियो के कारण दो पैर तथा एक हाथ से दिव्यांग होने के बाद भी शाह आलम ने हार नहीं मानी। जिदगी बेशक बेरंग हो गई हो, लेकिन रंगों को उन्होंने अपना हुनर बनाया, छोटी सी उम्र से कागज पर चित्र उकेरने का शौक बड़ी उम्र में परवान चढ़ा तो उन्होंने इन कलाकृतियों में कल्पना के रंग भरने शुरू कर दिए। यह रंग और चित्र लाचारी को शिकस्त देकर शाहआलम की पहचान बन गए हैं। इनकी पेंटिग की एक प्रदर्शनी मंगलवार को जनमंच आर्ट गैलरी में लगाई जा रही है।

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महानगर के मोहल्ला खानआलमपुरा निवासी 34 वर्षीय शाहआलम को 11 माह की अवस्था में पोलियो हो गया। उनके दोनों पैर व एक हाथ लाचार हो गए, इसके बावजूद उन्होंने चुनौतियों पर विजय पाने की ठानी। सात वर्ष की आयु से ही वह पेपर पर तोते, कबूतर, चिड़ियां, मोर आदि के चित्र को बड़ी सरलता से बनाने लगे। परिजनों द्वारा हौसला बढ़ाए जाने पर शाहआलम ने चित्रों में रंग भरने का अभ्यास शुरू किया। पहले उसे रंग भरने में परेशानी आई। धीरे-धीरे इस परेशानी पर भी विजय हासिल कर ली। विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने इंटर तक शिक्षा हासिल की। वर्ष-2007 में आइजीडी बॉबे से ड्राइंग का डिप्लोमा किया। उर्दृ में अदीब व कामिल की परीक्षाएं भी उसने उत्तीर्ण की। अभ्यास करने के बाद वह अब मुंह से ब्रश पकड़कर भी पेटिग बना लेते हैं।

मॉडल व चार्ट बने सहारा

शाहआलम की पेटिग के बारे में जैसे-जैसे लोगों को पता चला तो वह बच्चों को उनके पास पेटिग सीखने के लिए भेजने लगे। 10वीं और 12वीं में विज्ञान और क्राफ्ट के मॉडल बनवाने के लिए छात्र-छात्राएं पहुंचने लगे। थर्माकोल और वेस्ट मैटीरियल से तैयार इन मॉडलों को खूब सराहना मिली। दुकानदारों से मॉडल बनाने के लिए ऑर्डर मिलने लगे। मॉडल से हुई शुरुआती आमदनी से उन्होंने पेंटिग का सामान खरीदा। रंग, ब्रश, बोर्ड आदि को जब पहली बार घर लाए तो चेहरे पर वह संतोष था जिसे वह कभी भूल नहीं सकते।

चित्रों से सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार

अपनी पेंटिग के माध्यम से शाहआलम ने सामाजिक कुरीतियों पर करारी चोट की। ये आइडिया उन्हें समाचार पत्रों में छपी खबरों और घटनाओं से मिलते रहे। अब तक वह हजारों पेटिग बना चुके हैं। पेटिग में भ्रूण हत्या, देश की प्रगति, आतंकवाद पर चोट, सिगरेट व नशीले पदार्थो पर प्रतिबंध, आग की लपटों से घिरी महिला, पत्थर ढोती मां को निहारता बालक प्रमुख है।

आर्ट गैलरी में प्रदर्शनी आज

जनमंच आर्ट गैलरी में मंगलवार को होने वाली प्रदर्शनी में शाहआलम की 70 से अधिक पेटिग बिक्री के लगाई जाएंगी। उन्हें पूरी उम्मीद है कि सहारनपुर के लोग उनकी पेटिग को पसंद करेंगे और सभी का भरपूर प्यार भी मिलेगा। शाहआलम को बच्चों को पढ़ाने का बेहद शौक है, उनकी दिली इच्छा है कि सरकार की ओर से रोजगार का स्थाई साधन मिले जिससे उनकी आजीविका में वृद्धि हो सके।


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