'शरीयत के जरिए ही निपट सकते हैं तलाक और हलाला जैसे मसले'
देवबंद (सहारनपुर) : देश के 60 जनपदों में दारुल कजा (शरई अदालत) स्थापित किए जाने के ऑल इंडि
देवबंद (सहारनपुर) : देश के 60 जनपदों में दारुल कजा (शरई अदालत) स्थापित किए जाने के ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के फैसले का देवबंदी उलमा ने स्वागत किया है।
जमीयत उलमा-ए-¨हद के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मौलाना हसीब सिद्दीकी ने कहा कि जो लोग शरई अदालतों के संविधान से टकराव की बात कर रहे हैं, उन्हें इस्लामी उसूलों का इल्म नहीं। मुस्लिम समाज में तलाक, हलाला और विरासत जैसे मामलों को शरीयत की रोशनी में ही हल किया जा सकता है।
तंजीम उलेमा-ए-¨हद के प्रदेशाध्यक्ष मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा कि तमाम राज्यों में शरई अदालतों के कामकाज से मुस्लिम समाज को फायदा पहुंच रहा है। शरई अदालतों के सक्रिय होने से देश की अदालतों का बोझ भी कम होगा। उन्होंने कहा कि देश में भले ही शरई अदालतों की कानूनी हैसियत न हो लेकिन इनकी हैसियत शरीयत में कम नहीं है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्या आपा खुर्शीदा ने कहा कि संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म के अनुसार रहने का अधिकार दिया है। सरकार भले ही तलाक और हलाला पर कानून बना ले लेकिन चंद लोगों को छोड़कर पूरा समाज शरई कानून को ही तरजीह देता है।