चन्द्रशेखर उर्फ रावण देर रात 2.30 बजे जेल से रिहा, सैंकड़ो समर्थको ने किया स्वागत....
रावण ने कहा कि आर्मी की किसी जाती या वर्ग से कोई दुश्मनी नहीं है। आर्मी दलित पिछड़े और गरीबों पर जुल्म ज़ियादती करने वालों के खिलाफ है।
सहारनपुर (जेएनएन)। भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चन्द्रशेखर उर्फ रावण की प्रदेश सरकार के आदेशों के बाद रात 02:37 बजे जेल से आखिर रिहा कर ही दिया गया। जेल कब बाहर खड़े चंद्रशेखर रिहाई होने के बाद उनके चाहने वाले लोगो की भारी भीड़ पुलिस फोर्स के सभी प्रतिबंधो को तोड़ कर अपने नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण के स्वागत में जुट गये। इस मौके पर चन्द्रशेखर ने सभी से शांति बनाये रखने की अपील के साथ ही अपनी रिहाई को इंसाफ की जीत बताया। पुलिस ने चंद्रशेखर रावण को जेल के मुख्य द्वार से अपनी गाड़ी में बैठाया और लेकर वहां से निकल गई। भीम आर्मी के सैकड़ों समर्थक अपने अपने बाइकों पर सवार होकर पुलिस गाड़ी के पीछे नारेबाजी करते हुए चल रहे थे। चंद्रशेखर रावण के जेल में बंद दोनों साथी ग्राम प्रधान शिवकुमार व सोनू को पुलिस ने शुक्रवार सुबह 6:30 बजे जेल से निकालकर घर पहुंचा दिया। इन पर भी रासुका लगी थी।
जातीय हिंसा के मामले में करीब डेढ़ साल से जेल में बंद भीम आर्मी संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ़ रावण के जेल से रिहाई के बाद भी तेवर बेहद तलख है शुक्रवार सवेरे करीब साढ़े तीन बजे पुलिस सुरक्षा में घर पहुंचे रावण का जहाँ आर्मी के लोगों ने गगन भेदी नारों के बीच भव्य स्वागत किया वहीँ रावण ने जागरण संवाददाता के सवाल का जवाब देते हुए रासुका में समय से पूर्व उसकी रिहाई का आदेश जारी करने वाली भाजपा सरकार को सीधे निशाने पर रखा और कहा कि भीम आर्मी 2019 के लोकसभा चुनाव में केंद्र की दलित एवम् गरीब विरोधी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने का काम करेगी।
यदि इसके लिए जरुरत पड़ी तो साथियों से मंथन के बाद गठबंधन का सहयोग किया जायेगा। उन्होंने अपनी समयपूर्व रिहाई को कार्यकर्ताओं के संघर्ष का नतीजा और इंसाफ की जीत बताया। शासन प्रशासन पर सरकार के इशारे पर झूठा फ़साने का आरोप लगाते हुए कहा कि अब केंद्र व् प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा को सबक सिखाने का काम किया जायेगा। रावण ने कहा कि आर्मी की किसी जाती या वर्ग से कोई दुश्मनी नहीं है। आर्मी दलित पिछड़े और गरीबों पर जुल्म ज़ियादती करने वालों के खिलाफ है और दलितों गरीबों व् पिछड़ों को उनका हक तथा इंसाफ दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है
एससी/एसटी को लेकर राजनीतिक दलों के बीच चल रही खींचतान के बीच राज्य सरकार ने सहारनपुर जातीय हिंसा के आरोपित भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर उर्फ रावण की समयपूर्व रिहाई का फैसला किया था। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (रासुका) के तहत जेल में निरुद्ध रावण को छोड़े जाने के लिए डीएम सहारनपुर को निर्देश दिया गया था। इसे सियासी समीकरणों से जोड़कर देखा जा रहा है। चंद्रशेखर उर्फ रावण के अलावा इसी मामले में आरोपित सोनू व शिवकुमार को भी समयपूर्व रिहा किया जायेगा। इससे पूर्व तीन आरोपित सोनू उर्फ सोनपाल, सुधीर व विलास उर्फ राजू को सात सितंबर को रिहा किया जा चुका है।
दलितों को प्रभावित करने की रणनीति
यूपी शासन ने मामले में इन्हीं छह आरोपितों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई की थी। रावण की रिहाई के पीछे उनकी मां की ओर से दिये गए प्रत्यावेदन को आधार बताया जा रहा है। हालांकि इसे दलितों को प्रभावित करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले राज्य सरकार ने खासकर एससी/एसटी वोट बैंक को साधने और बसपा के खिलाफ एक बड़ा समीकरण खड़ा करने के इरादे से यह फैसला किया है।
छह आरोपितों पर रासुका के तहत कार्रवाई
उल्लेखनीय है कि मई 2017 में सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा के मामले में एसटीएफ ने आरोपित चंद्रशेखर को आठ जून 2017 को हिमांचल प्रदेश से गिरफ्तार किया था। इसके अलावा अन्य आरोपित भी गिरफ्तार किये गए थे। चंद्रशेखर को सभी मामलों में कोर्ट से जमानत मिलने के बाद रिहाई का आदेश आने से पहले ही जिला प्रशासन ने उनके खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई का नोटिस तामील कराया था। चंद्रशेखर सहित कुछ छह आरोपितों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी।
सहारनपुर की हरिजन कालोनी निवासी चंद्रशेखर की रासुका के तहत निरुद्ध रहने की अवधि एक नवंबर, 2018 तक थी, जबकि अन्य आरोपित सोनू व शिवकुमार को 14 अक्टूबर, 2018 तक निरुद्ध रहना था। ध्यान रहे, पूर्व में शासन ने चंद्रशेखर की रासुका अवधि तीन माह के लिए बढ़ा दी थी। इस पर भीम आर्मी ने रावण की रिहाई को लेकर आंदोलन की चेतावनी दी थी। भीम आर्मी में इसे लेकर काफी आक्रोश था।
दलित एजेंडे को धार देने में जुटी भाजपा सरकार
केंद्र से लेकर सूबे की भाजपा सरकार दलित एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ रही है। गुरुवार को रासुका में निरुद्ध भीम आर्मी के चंद्रशेखर उर्फ रावण की रिहाई को इसकी एक कड़ी माना जा रहा है। एक तरफ बसपा के लिए चुनौती बन रहे चंद्रशेखर को सरकार ने रिहा करने का फैसला किया तो दूसरी तरफ बसपा से विद्रोह कर पार्टी में आने वाले पूर्व सांसद जुगुल किशोर को भाजपा का प्रदेश प्रवक्ता बनाकर मायावती के खिलाफ आवाज बुलंद करने की रणनीति अपनाई गई है। भाजपा संगठन ने दलितों के सम्मेलन की भी तैयारी शुरू कर दी है। इतना ही नहीं दलित अफसरों को भी महत्वपूर्ण तैनाती दी जा रही है।
भाजपा की चुनौती बढ़ी
उल्लेखनीय है कि आरक्षण और संविधान के मसले को लेकर दलितों के भारत बंद ने भाजपा की चुनौती बढ़ा दी थी। हद यह हो गई कि भाजपा के आधा दर्जन से अधिक दलित सांसदों ने विद्रोही तेवर अपना कर नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर दिया। बाद में कुछ दलित सांसदों ने अपने तीखे तेवर जरूर कम कर दिए लेकिन, बहराइच की भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले अभी भी भाजपा नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोले हैं। भाजपा सरकार और संगठन ने ऐसे आक्रोश पर पानी डालने और दलितों को लुभाने के लिए मुहिम शुरू कर दी है। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन इसके लिए पार्टी का सबसे बड़ा हथियार बना है। इधर, दलितों को खुश करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाएं भी चल रही हैं। भाजपा अनुसूचित मोर्चा की जिला इकाइयों द्वारा केंद्रीय मंत्री, सांसद, प्रदेश सरकार के मंत्री और आयोगों के अध्यक्षों का सम्मान समारोह भी आयोजित किया जा रहा है।
भाजपा बड़ा कदम उठा चुकी
एससी-एसटी में संशोधन के बाद से ही भाजपा दलितों को प्रभावित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। उत्तर प्रदेश में पूर्व डीजीपी बृजलाल को अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष और लालजी निर्मल को अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम का अध्यक्ष बनाकर पहले ही भाजपा बड़ा कदम उठा चुकी है। अभी हाल ही में दलितों के साथ नाइंसाफी का आरोप लगाकर वीआरएस मांगने वाले अपर पुलिस अधीक्षक वीपी अशोक को मेरठ में महत्वपूर्ण तैनाती देकर सरकार ने दलित अफसरों के प्रति अपना प्रेम जाहिर किया है। आने वाले समय में अगर मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो एक-दो दलित विधायकों को मंत्री बनाकर महत्वपूर्ण विभाग भी दिया जा सकता है।
भीम आर्मी और चंद्रशेखर
सहारनपुर हिंसा की आग में जलने से पूरा उत्तर प्रदेश सहम गया था। राजपूत और दलित समुदाय के लोग एक-दूसरे के सामने थे। पूरे बवाल में एक संगठन भीम आर्मी का नाम सबसे आगे आ रहा है। इसकी स्थापना दलित समुदाय के सम्मान और अधिकार को लेकर एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद ने जुलाई 2015 की गई थी ।संगठन का पूरा नाम भीम आर्मी भारत एकता मिशन है।
भीम आर्मी पहली बार अप्रैल 2016 में हुई जातीय हिंसा के बाद सुर्खियों में आई थी। दलितों के लिए लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले चंद्रशेखर की भीम आर्मी से आसपास के कई दलित युवा जुड़ गए हैं। चंद्रशेखर का कहना है कि भीम आर्मी का मकसद दलितों की सुरक्षा और उनका हक दिलवाना है लेकिन इसके लिए वह हर तरीके को आजमाने का दावा भी करते थे जो कानून के खिलाफ भी है।