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ग्राहकों तक आते आते तीन गुना बढ़ जाते हैं सब्जियों के दाम

शहर में एरिया के हिसाब से बदलते रहते हैं सब्जी के रेटपॉश कालोनी व अन्य स्थानों की दुकानों के रेट अलग-अलग

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 11:29 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 06:09 AM (IST)
ग्राहकों तक आते आते तीन गुना बढ़ जाते हैं सब्जियों के दाम

जागरण संवाददाता, रामपुर : किसान से खरीदी गई सब्जी उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते तीन गुना महंगी हो जाती है। सब्जी के रेट शहर में एरिया के हिसाब से बदलते रहते हैं। मंडी में थोक के रेट, मंडी में रिटेल के रेट, पॉश कालोनी के रेट और मंडी से बाहर शहर में बनी दुकानों के रेट ये सब अलग-अलग हैं।

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सब्जियों के दामों को लेकर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। जिसपर दुकानदार अपनी मर्जी के हिसाब से इनके रेट तय करते हैं। सब्जी उत्पादकों से किस भाव पर सब्जी खरीदी जाएगी, यह आढ़ती ही तय करते हैं। रेट को लेकर कोई अंदाज नहीं लगाया जा सकता। सुबह तड़के से मंडी में कारोबार शुरू हो जाता है। ग्रामीण एरिया से किसान सब्जी लेकर मंडी पहुंचते हैं। यहां आढ़ती सब्जी मंडी में बोली लगाकर रेट तय करते हैं। किसान की जो सब्जी मंडी में थोक के व्यापारी 10 रुपये किलो के भाव से खरीदते हैं, वह उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते 30 से 40 रुपये प्रति किलो ग्राम तक हो जाती है। आढ़ती खुद निर्धारित करते हैं कि किसानों से किस रेट पर सब्जी खरीदनी है। उसके बाद सब्जी विक्रेताओं की मनमानी चलती है। वे कॉलोनी व मुहल्ले के हिसाब से ग्राहकों को देख कर रेट तय कर सब्जियां बेचते हैं। मंडी में किसानों से खरीद की बात करें तो तोरई 1200 रुपये पर मंडी में खरीदी जा रही है। लेकिन, बाजार में 20 रुपये किलो मिल रही है। मंडी में किसानों से 1300 रुपये क्विटल के हिसाब से खरीदा गया कटहल आम ग्राहक को 40 रुपये किलो पर उपलब्ध है। 1500 रुपये क्विटल पर खरीदी गई अरबी भी ग्राहकों को 40 रुपये में बेची जा रही है। वहीं टमाटर मंडी में 2500 रुपये प्रति क्विटल खरीदा जा रहा है। लेकिन, बाजार में इसकी कीमत 50 रुपये किलो तक है।

आढ़ती करते हैं रेट तट

सब्जी के दामों को लेकर मंडी में कोई बोर्ड नहीं लगाया जाता। क्योंकि इन्हें टैक्स मुक्त कर दिया गया है। सुबह में किसानों और आढ़तियों की आपसी सहमति से इनके रेट तय होते हैं। उसके बाद सब्जी विक्रेता बाजार में सब्जी ले जाते हैं। वहां पर वे अपने हिसाब से इनके रेट तय करते लेते हैं। आलू के दाम बाहर से आवक होने के कारण मंहगे रहते हैं।

संदीप कपूर, मंडी सचिव


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