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    'ये बच्चों के खेलने की चीज नहीं जानी, लग जाए तो खून निकल आता है' बालीवुड के थ्रिलर का रामपुरी चाकू, बना इतिहास

    By Abhishek SaxenaEdited By: Abhishek Saxena
    Updated: Sun, 09 Apr 2023 09:54 AM (IST)

    कभी बालीवुड में खलनायकों के हाथ में दिखने वाला रामपुरी चाकू अब दोबारा अपनी शान दिखा रहा है। रामपुर से नैनीताल जाते वक्त आपको ऐसा रामपुरी चाकू देखने को मिल जाएगा। नवाबी दौर में शुरू हुआ रामपुरी अपना वजूद खो चुका था लेकिन फिर से मशहूर हो रहा है।

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    History of Rampuri Knife: रामपुर में लगाया गया रामपुरी चाकू।

    रामपुर, डिजिटल टीम, (अभिषेक सक्सेना)। Rampuri Chaku ये बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं जानी, ये रामपुरी है, लग जाए तो खून निकल आता है...' जब फिल्मी पर्दे पर 'जानी' राज कुमार ने खलनायक मदन पुरी के हाथों से चाकू छीना और उन्हें इन शब्दों का इस्तेमाल किया। हिन्दी फिल्मों में एक ऐसा दौर था जब बंदूक, पिस्तौल नहीं चाकू से वार के सीन फिल्माए जाते थे। चाकू बटन से नहीं हाथों से खोलकर खलनायक मारने वाले के लिए इस्तेमाल करते थे। 1960-70 के दशक में रामपुरी चाकू पर कई डायलाग भी बने। चाकू से हमला करते वक्त खलनायक कोडवर्ड का इस्तेमाल करने के बाद वार करते थे। रामपुर चाकू को देशभर में अलग पहचान मिली है।

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    चाकू से जाना जाता था रामपुर

    रामपुरी चाकू से इस शहर को जाना जाता है। रामपुर में नवाबी दौर से ही चाकू बाजार है। कई फिल्मों में यहां के चाकू पर सीन फिल्माए गए। जिस तरह रिवाल्वर-पिस्टल और बंदूक के लिए लाइसेंस की जरूरत है, उसी तरह बड़ा चाकू रखने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है। यहां के दुकानदारों के पास चाकू बेचने के लिए लाइसेंस भी हैं, लेकिन दौर बदलने के साथ ही चाकू की मांग कम हो गई है। नए सिरे से रामपुरी चाकू को पहचान दिलाने की कवायद चल रही है। यहां तक कि यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ जब भी रामपुर आते हैं तो यहां के चाकू का जिक्र जरूर करते हैं। रामपुर में चौक के सुंदरीकरण पर 50.57 लाख रुपये खर्च हुए ताकि चाकू की पहचान और कारोबार बढ़ सके।

    बेहद खूबसूरत है रामपुरी चाकू

    चाकू तैयार करने वाले अफसान रजा खान ने बताया

    • रापुरी चाकू बनाने में करीब आठ माह का समय लगा है।
    • 20 फीट लंबा और तीन फीट चौड़े चाकू को मिक्स मेटल से तैयार किया गया है।
    • इसमें पीतल, स्टील और लोहा शामिल है।
    • इसका वजन साढ़े आठ क्विंटल है।
    • इसकी लागत करीब 29 लाख रुपये आई है।

    ऐसा होता है रामपुरी चाकू

    रामपुरी चाकू एक हिस्से में नहीं बनता। इसमें तीन हिस्से होते हैं। पहला, हत्था, कमर और ब्लेड। एक स्प्रिंग, बोल्ट और लॉक का भी इसमें इस्तेमाल होता है। रामपुरी चाकू पर लगे ब्लेड की लम्बाई आमतौर पर 9 से 12 इंच के बीच होती है। नौ इंच के चाकू को इस्तेमाल के लिए बेहतर माना जात था। ये चाकू खींच कर खोले जाते थे जो चट-चट- की आवाज के खुलते थे। रामपुरी चाकू के हत्थे पर रीढ़ लगी होती है, चाकू इसी पर टिकता है। हत्थे पर मछली की डिजायन का इस्तेमाल काफी होता था।

    रामपुरी पर लगे ताले

    वर्ष 1990 के दशक में तत्कालीन यूपी सरकार फैसला लिया था कि 4.5 इंच (11 सेमी) ब्लेड की लंबाई के से अधिक लंबे चाकू नहीं बनाए जाएंगे। इस फैसले से रामपुरी चाकू पर प्रतिबंध लग गया। जिससे चाकू की लोकप्रियता में गिरावट आ गई। रामपुरी चाकू नौ इंच के ब्लेड का था और समय से साथ-साथ कच्चे माल की बढ़ती कीमत ने इस व्यापार में लाभ कम कर दिया, जिससे रामपुरी चाकू का कारोबार घट गया।

    बेहद दिलचस्प है रामपुर का इतिहास

    आजादी से पहले रामपुर में कभी नवाबों ने राज किया था। रामपुर रजा लाइब्रेरी में देश की ही नहीं, बल्कि दक्षिण मध्य एशिया की प्रसिद्ध लाइब्रेरी का मुकाम हासिल है। यह लाइब्रेरी में इंडो-इस्लामिक विद्या के साथ प्राचीन दुर्लभ पांडुलिपियों के संग्रह के लिए जानी जाती है। यहां जैसा किताबों का संग्रह अन्य किसी पुस्तकालय में नहीं है। लाइब्रेरी से है पहचान इसे नवाब फैजुल्लाह खां द्वारा वर्ष 1774 में स्थापित किया गया था। वर्तमान में यह केंद्र सरकार के अधीन है।

    महात्मा गांधी की समाधि भी है पहचान

    महात्मा गांधी समाधि भी रामपुर की पहचान है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मौत के बाद 11 फरवरी 1948 को उनकी अस्थियां नवाब दिल्ली से यहां कलश में भरकर लाए थे। उनकी अस्थियों का कुछ हिस्सा कोसी नदी में विसर्जित कर दिया गया। शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर यहां दफन कर दिया गया था। दिल्ली के बाद सिर्फ रामपुर ही ऐसा शहर है, जहां गांधी समाधि है। इसके अलावा रामपुर का किला, इमामबाड़ा, जामा मस्जिद, कोठी खासबाग आदि यहां की ऐतिहासिक धरोहर हैं। इन प्राचीन इमारतों में मुगलकालीन वास्तुकला के दर्शन होते हैं।  

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