रामपुर है भारत का दूसरे नंबर का मछली हब
रामपुर मछली उत्पादन में कोलकाता के बाद अपना रामपुर भारत में दूसरे स्थान पर आता है।
रामपुर : मछली उत्पादन में कोलकाता के बाद रामपुर का देश में दूसरा स्थान है। यहां की मिलक तहसील के धनोरा एवं उससे सटे गांव में 36 फिश हैचरियां हैं, साल के मात्र छह महीने के सीजन में करीब दो सौ करोड़ मछली के बच्चे का उत्पादन करके देश भर के विभिन्न राज्यों में भेजा जाता है। इन हैचरियों पर कोलकाता के विशेषज्ञ काम करते हैं। बारिश अच्छी हो जाए तो इस काम से प्रत्येक हैचरी संचालक को इन छह महीनों में 15 से 20 लाख तक का मुनाफा हो जाता है।
मछली पालन मिलक तहसील के धनोरा गांव में 72 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 25 साल पहले, सरदार अली ने यह काम शुरू किया था। देखते ही देखते उनका कारोबार परवान चढ़ने लगा। उसके बाद बेगमाबाद गांव निवासी नरेंद्र सिंह ने इस कारोबार में कदम रखा। इन दोनों को धंधे में आगे बढ़ता देख अन्य लोग भी इसमें आते चले गए। देखते ही देखते आज धनोरा व निकटवर्ती बेगमाबाद व रहपुरा गांव में यह कारोबार अपने पैर तेजी से पसार रहा है। इन कारोबारियों की मेहनत का फल यह है कि आज इस कारोबार में कोलकाता के बाद रामपुर जनपद का नाम भारत में दूसरे नंबर पर आता है। वर्तमान में यहां कुल 36 हैचरियां है। युवाओं के लिए रोजगार का अच्छा विकल्प
बेरोजगार युवाओं के लिए यह कारोबार रोजगार का अच्छा विकल्प है। इसे अपना कर युवा अपना भविष्य बना सकते हैं। मछली के बच्चे उत्पादन का सीजन मार्च से अगस्त तक रहता है। सात से आठ एकड़ के फॉर्म में 40 से 50 करोड़ तक बच्चे एक सीजन में तैयार कर लिए जाते हैं। जिसे बेचकर हैचरी स्वामी सारे खर्च निकाल कर सात-आठ लाख रुपये बचा लेता है। इससे बड़े फॉर्म के मालिकों को 15 से 20 लाख रुपये का मुनाफा हो जाता है। लागत की बात की जाए तो पांच एकड़ के फॉर्म में 15 से 20 लाख रुपये तक की लागत आ जाती है। इस कारोबार को स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से चालीस प्रतिशत अनुदान भी दिया जाता है। अनुसूचित जाति के लोगों को तो सरकार 60 प्रतिशत का अनुदान देती है। वे मात्र 40 प्रतिशत खर्च करके कारोबार को स्थापित कर सकते हैं। ऐसे तैयार किया जाता है बच्चा
हैचरी स्वामी गुरुप्रीत सिंह बताते हैं कि मेल और फीमेल मछलियों को बड़े से तालाब में रखा जाता है। प्रतिदिन शाम को उन्हें उससे निकाला जाता है। बंगाल के विशेषज्ञ मादा मछली को एक इंजेक्शन लगाते हैं। उसके बाद लगभग पांच घंटों के अंतराल पर रात में नर और मादा दोनों को इंजेक्शन दिया जाता है। इसके बाद उन जोड़ों को सीमेंट के बड़े से टैंक में छोड़ दिया जाता है। वहां वे अंडों की प्रक्रिया को संपन्न करते हैं। उसके बाद टैंक से एक प्रॉसेस के तहत अंडों को निकट के छोटे टैंक में ट्रांसफर कर दिया जाता है। वहां से अंडों को निकाल कर शक्तिशाली अंडों को छांट कर अन्य टैंकों में छोड़ दिया जाता है। वहां अंडों से बच्चे बाहर आते हैं। उसके बाद बच्चों को मजदूर पैक करके बाहर भेजने की व्यवस्था करते हैं। एक मछली छह महीने में एक से डेढ़ लाख तक अंडे दे देती है। हमारे पिता सरदार अली ने सबसे पहले यहां इस कारोबार की नींव रखी थी। उसके बाद ही अन्य लोगों ने इसमें कदम बढ़ाया है। उनकी मृत्यु के बाद अब हम और हमारा भाई इर्तजा अली इस कारोबार को संभाल रहे हैं। बीस एकड़ में हमारा कारोबार है। एक सीजन में लगभग दस करोड़ बच्चे हम बना लेते हैं। इससे हमें बीस से पच्चीस लाख रुपये तक का मुनाफा हो जाता है। कंप्टीशन होने के कारण धंधा कुछ मंदा है, वरना मुनाफा इससे भी अधिक हो सकता है। युवाओं के लिए यह कारोबार रोजगार का अच्छा अवसर हो सकता है।
-मुस्तफा अली
यहां के लोग पूरी मेहनत से लगे हैं। इनकी मेहनत का ही परिणाम है कि मछली उत्पादन में आज रामपुर का कोलकाता के बाद भारत में दूसरा नंबर है। पहले इन्हें मत्स्य पालक विकास अभिकरण योजना के अंतर्गत सुविधाएं दी गईं थीं। 2016 में इसके बंद होने के बाद नीली क्रान्ति योजना के अंतर्गत चालीस प्रतिशत अनुदान इस कारोबार के लिए दिया जाता है। साठ प्रतिशत धनराशि व्यक्ति को स्वयं लगानी पड़ती है। तालाब सुधार में सरकारी तालाबों के सुधार के लिए भी साढ़े तीन लाख का प्रोजेक्ट है, जिस पर चालीस प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।
-सुषमा निषाद, मत्स्य निरीक्षक
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