वास्तविकता के धरातल पर ऑनलाइन शिक्षा हुई धड़ाम
मोबाइल न होने के कारण वह उन तक पहुंच नहीं पा रहा है।
जागरण संवादददाता, रामपुर : कोरोना काल में शुरू की गई ऑनलाइन शिक्षा गांव-देहात के सरकारी स्कूलों में दम तोड़ चुकी है। शिक्षकों की भरपूर मेहनत के बाद भी अधिकतर बच्चे इससे नहीं जुड़ पाए हैं। ऐसे में उन्हें ऑनलाइन पढ़ाने के सारे प्रयास विफल साबित हो चुके हैं। परिणाम यह है कि अध्यापक बच्चों को होमवर्क तो भेज रहे हैं। लेकिन, मोबाइल न होने के कारण वह उन तक पहुंच नहीं पा रहा है।
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई करवाना शिक्षा विभाग के लिए चुनौती बन गया है। इन स्कूलों में गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं। उनके पास न तो स्मार्ट फोन हैं न ही लैपटॉप। कई जगहों पर तो मोबाइल नेटवर्क भी बड़ी मुश्किल से आते हैं। ऐसे में यहां पर ऑनलाइन एजुकेशन चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है। जब इस पद्धति की शुरुआत की गई थी तो अध्यापकों को बच्चों को वॉट्सएप के माध्यम से शिक्षा देने का कार्य सौंपा गया था। उन्हें वाट्सएप ग्रुप बना कर बच्चों को उससे जोड़ने के निर्देश दिए गए थे। अब गरीब अभिभावकों के पास मोबाइल तो थे नहीं। ऐसे में उस समय दबाव के चलते किसी ने पड़ोसी तो किसी ने रिश्तेदारों के नंबर एड करवा दिए। जिन पर बच्चों को गृह कार्य भेजा जाता तो कोई तो उसे रिसीव कर लेता तो कोई नहीं कर पाता। आज की तारीख में हाल यह है कि मात्र पांच से 10 प्रतिशत के बीच ही बच्चे इस इस प्रणाली को अपना पा रहे हैं। इस कारण बहुत से शिक्षकों ने भी ढिलाई बरतना शुरू कर दी है। ऐसे में उनके आगे संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
अध्यापकों ने बहुत मेहनत की बच्चों को इस प्रणाली से जोड़ने के लिए। प्रतिदिन उन्हें वॉट्सएप ग्रुप पर गृह कार्य भेजे गए। आज भी भेजे जा रहे हैं। लेकिन, हालत यह है कि मात्र पांच से 10 प्रतिशत बच्चों का ही रिस्पांस मिल पाता है।
-कैलाश बाबू, जिलाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ।
विभाग की ओर से पूरा प्रयास किया जा रहा है कि बच्चे इस प्रक्रिया से जुड़े रहें। अध्यापकों को कहा गया है कि अभिभावकों से संपर्क स्थापित कर इस विषय में जागरूक करें।
-ऐश्वर्या लक्ष्मी, जिला बेसिक शिक्षाधिकारी।