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पति-पत्नी के रिश्ते की डोर को मजबूत करता है करवाचौथ

हिदुस्तान अपनी विशेष संस्कृति और परंपराओं के लिए दुनिया भर में मिसाल है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 04 Nov 2020 12:00 AM (IST)Updated: Wed, 04 Nov 2020 12:00 AM (IST)
पति-पत्नी के रिश्ते की डोर को मजबूत करता है करवाचौथ
पति-पत्नी के रिश्ते की डोर को मजबूत करता है करवाचौथ

जागरण संवाददाता, रामपुर : हिदुस्तान अपनी विशेष संस्कृति और परंपराओं के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यहां के त्योहार हमें उत्साह और नई ऊर्जा से ओतप्रोत करते हैं। इसके साथ ही हमें कोई न कोई संदेश भी देते हैं। ऐसा ही एक पर्व है करवाचौथ। यह पर्व पति पत्नी के रिश्ते की डोर को मजबूत करता है। आजकल महिलाएं इसी त्योहार की तैयारियां करने में जुटी हैं।

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महिलाओं के लिए करवाचौथ का विशेष महत्व

करवाचौथ का पर्व महिलाओं के जीवन में अत्यंत महत्व रखता है। यह त्योहार रिश्तों को मजबूती प्रदान करने वाली वह डोर है, जो दो अलग-अलग लोगों को, एक-दो नहीं बल्कि सात जन्मों तक आपस में बांधे रखती है। साल-दर-साल गुजरने के साथ ही प्रेम और समर्पण का यह रिश्ता ऐसा हो जाता है कि बिना एक-दूजे से कुछ कहे भी दोनों एक दूजे के दिल के कोने में छिपी छोटी से छोटी बात को भी आसानी से समझ जाते हैं। यूं तो हर साल ही यह पर्व आता है लेकिन, हर बार इसका इंतजार कुछ अलग तरह का ही होता है। महिला कितनी भी पढ़ी-लिखी हो, आत्मनिर्भर हो, पति से बड़ी नहीं हो जाती। आखिर पति, पति ही होता है। इस बार हमारी करवाचौथ बहुत अनूठी से होने वाली है। मेरे बेटे-बहू बाहर एक कंपनी में काम करते हैं। इस बार वे यहां पर हैं। मेरी बहू इसको लेकर बहुत उत्साहित है। कह रही है कि मां जी इस बार आपके साथ करवाचौथ मनाने जा रही हूं, बहुत खुशी हो रही है। हम दोनों मिलकर इसकी तैयारियां कर रहे हैं। घर को खूब सजाएंगे। दिन भर उपवास रखेंगे। शाम को पूजन और चंद्र दर्शन कर अपने-अपने पतियों की आरती उतारेंगे, फिर उनके हाथ से ही उपवास खोलेंगे। -डा. रजनी रानी अग्रवाल, एसोशिएट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, राजकीय ग‌र्ल्स डिग्री कॉलेज आधुनिक हूं तो क्या, परंपराएं नहीं भूली

फोटो :

करवाचौथ, नाम सुनते ही मन अनूठी उमंग से भर उठता है। विवाहिताओं के लिए इस पर्व के क्या मायने हैं, ये वे ही जानती हैं और वे विवाहितायें, जिन्होंने अपनी पसंद से विवाह किया है, उनके मन में तो इसको लेकर हर साल नए-नए प्लांस बनते रहते हैं। कौन कहता है कि आधुनिक और पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए परम्परायें कोई मायने नहीं रखतीं। मैंने एमबीए किया है। पूना में एक बड़ी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर हूं। मेरे पति अमोल अग्रवाल भी कंसल्टिग मैनेजर हैं। हम दोनों ने घर वालों की मर्जी से प्रेम विवाह किया है। हम दोनों ही पढ़े-लिखे हैं, आत्मनिर्भर हैं, आधुनिक भी। उसके बाद भी अपनी परंपराओं को भूले नहीं हैं। इस बार करवाचौथ पर मैं ससुराल में हूं। अब तक अकेले इस त्योहार को मना रही थी। इस बार अपनी बहुत ही प्यारी सासू मां के साथ मनाऊंगी। मन यह सोचकर ही बहुत प्रफुल्लित है। घर से बाहर रहकर जब लंबे समय बाद आप अपनों के बीच लौटते हैं, विशेषकर त्योहारों पर तो एक अलग सा अहसास मन को खुशी से भर देता है। मैंने शापिग की है। सोच रही हूं घर को अच्छे से सजाऊंगी। पूरा दिन पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखूंगी। शाम को सासू मां की तरह ही जैसे वह करेंगी, वैसे-वैसे पूजा करूंगी। उसके बाद हम मिलकर चंद्रमा के दर्शन करेंगे, फिर जैसे सब महिलाएं करती हैं, वैसे ही हम भी अपने पतियों को अपने सामने खड़ा कर उनकी आरती उतारेंगे। मन कितना उत्साहित है, इसे शब्दों में वर्णन कर पाना असंभव है। - सोनम, मैनेजर, जीएस एसोशियेट्स


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