प्राइवेट स्कूलों की मनमानी भी बने चुनावी मुद्दा
क्रान्ति शेखर सारंग रामपुर विद्यालयों का नया सत्र शुरू हो चुका है। स्कूलों में दाखिले और किताबों की खरीद जोरों पर है। इस सबके बीच शिक्षा का अधिकार कानून कहीं दूर खड़ा अपने हालात पर सिसकता नजर आ रहा है।
रामपुर : विद्यालयों का नया सत्र शुरू हो चुका है। स्कूलों में दाखिले और किताबों की खरीद जोरों पर है। इस सबके बीच शिक्षा का अधिकार कानून दूर खड़ा अपने हालात पर सिसकता नजर आ रहा है। कारण, निजी स्कूलों ने इस कानून को जैसे ताक पर उठा कर रख दिया है।
कानून को लागू हुए अरसा होने के बावजूद गरीबों के बच्चे अच्छे स्कूलों में नहीं पहुंच पा रहे हैं। वहीं स्कूल की फीस से लेकर बच्चों के कोर्स तक, हर जगह अभिभावक ठगे जा रहे हैं। उसके बावजूद प्रशासन हो या जन प्रतिनिधि कोई भी अभिभावकों की इस समस्या पर ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं करता। अभिभावकों से बातचीत के दौरान उनका एक स्वर में यह ही कहना है कि इस बार स्कूलों की इस मनमानी को भी चुनावी मुद्दा बनाया जाना चाहिए, जिससे शिक्षा का अधिकार कानून सही मायनों में लागू हो सके।
हालत यह है कि मोटी फीस वसूलने के बाद अभिभावकों को मजबूर किया जाता है कि स्कूल की बताई दुकान से ही पुस्तकें खरीदें। कमीशनखोरी की मार यहां भी अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ती है। वहीं निर्धन बच्चों के लिए 25 प्रतिशत कोटा होने के बाद भी वे इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे। मेंटिनेंस फीस, एडमिशन फीस, मासिक फीस सहित तमाम नामों से निजी स्कूल अभिभावकों की जेबें खाली करने में लगे हैं। हर स्कूल अपनी पसंद के पब्लिशर की पुस्तकें खरीदने को अभिभावकों को मजबूर करता है। इनके दामों की शुरूआत ही 250 रुपये से होती है, जबकि एनसीईआरटी की पुस्तकों का मूल्य काफी कम और आम आदमी की पहुंच के अंदर है। स्कूल संचालक अपनी पसंद के पब्लिशर्स की किताबों को विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं। साथ ही ये पुस्तकें उनके द्वारा पहले से फिक्स दुकानों पर ही मिलती हैं, जहां काफी ऊंचे दाम अभिभावकों से वसूले जाते हैं। अभिभावकों को विवश होकर स्कूल द्वारा बताई गई दुकान से ही मंहगी किताबें खरीदनी पड़ रही हैं। बोले अभिभावक
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी जोरों पर है। फीस में, कोर्स में, यहां तक कि यूनिफॉर्म में भी मनमानी की जा रही है। चुनाव में इस समस्या को मुद्दा बनाया जाना बहुत आवश्यक है। शिक्षा का अधिकार कानून को सही से लागू कराया जाए। -राधिका अग्रवाल, अभिभावक एनसीआरटी की पुस्तकों के अलावा दूसरी पुस्तकों की थोपाथापी बंद हो। कक्षाओं के हिसाब से फीस निर्धारित हो। इसके अलावा मनमानी दुकानों से किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने का चलन भी बंद किया जाए। चुनाव में राजनीतिक पार्टियां और प्रत्याशी इसे गंभीरता से लें। -संजय अग्रवाल, अभिभावक निजी स्कूलों की मोनोपॉली चल रही है। शिक्षा का अधिकार कानून बना, लेकिन स्कूलों द्वारा उसे माना नहीं जा रहा। 25 प्रतिशत कोटा होने के बावजूद गरीबों को यहां शिक्षा नहीं दी जाती। चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जाना बहुत जरूरी है। -गौरव अग्रवाल, अभिभावक स्कूलों की कमीशनखोरी हम लोगों की जेबों पर भारी पड़ रही है। प्राइवेट स्कूलों में फीस बहुत अधिक है। उसके बाद उनकी फिक्स की गई दुकान से ही किताबें और यूनिफॉर्म लेनी है। वहां पर हमें बुरी तरह लूटा जाता है। इसे बंद किया जाए। -अंजू अग्रवाल, अभिभावक किताबें तो किताबें यूनिफॉर्म भी फिक्स्ड दुकानों पर ही मिलती है। उस पर उसके कलर कॉम्बिनेशन आदि इस प्रकार के होते हैं कि वह डिजाइन किसी अन्य दुकानदार के पास नहीं मिलता है। इस कारण उन दुकानों से ही वो सब खरीदना पड़ता है। यह मनमानी बंद होनी चाहिए। -कोमल मित्तल