सीआरपीएफ हमले में किन धाराओं में मिली कितनी सजा
सीआरपीएफ हमले में किन धाराओं में मिली कितनी सजा
मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख को धारा 302, सपठित 149 आइपीसी, धारा 27 (3) आयुध अधिनियम के लिए मृत्युदंड और 50-50 हजार रुपये जुर्माना। जंग बहादुर को धारा 302 सपठित 149 आइपीसी की धारा में आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माना। मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को धारा 148 आइपीसी में तीन-तीन साल का सश्रम कारावास। मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को धारा 307, सपठित 149 आइपीसी में 10-10 वर्ष का सश्रम कारावास और 25-25 हजार रुपये जुर्माना। जुर्माना न देने पर तीन माह का अतिरिक्त कारावास। मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को धारा 333 सपठित 149 आइपीसी में सात-सात वर्ष का सश्रम कारावास। 20-20 हजार रुपये जुर्माना। जुर्माना न देने पर दो-दो माह का अतिरिक्त कारावास। मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को धारा - 4 लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम - 1984 के अंतर्गत पांच-पांच साल का सश्रम कारावास। 20-20 हजार रुपये का जुर्माना। जुर्माना न देने पर दो माह का अतिरिक्त कारावास। मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को धारा 121 सपठित 149 आइपीसी के अंतर्गत आजीवन कारावास और 25-25 हजार रुपये जुर्माना। जुर्माना न देने पर दो माह का अतिरिक्त कारावास। मोहम्मद शरीफ, सबाउद्दीन, इमरान शहजाद और मोहम्मद फारूख और जंग बहादुर को धारा - 16 विधि विरुद्ध क्रिया कलाप निवारण अधिनियम - 1967 के अंतर्गत आजीवन कारावास। 25-25 हजार रुपये जुर्माना। जुर्माना न देने पर दो-दो माह का अतिरिक्त कारावास। फहीम अंसारी को धारा 420, 467, 468, 471 आइपीसी, शस्त्र अधिनियम में 10 साल कैद की सजा। मृतकाश्रितों में बराबर बांटी जाए जुर्माने की आधी रकम
रामपुर : अदालत ने अपने फैसले में जुर्माने की जमा रकम की आधी धनराशि आतंकी हमले में मरने वाले परिवारों को दिए जाने का आदेश दिया है। इस हमले में आठ लोग मारे गए थे। इनमें सीआरपीएफ के सात जवान थे और एक रिक्शा चालक की भी मौत हुई थी। इसके अलावा धारा-366 आइपीसी के अनुपाल में समस्त अभिलेख हाईकोर्ट इलाहाबाद को मृत्युदंडादेश की पुष्टि हेतु प्रेषित किए जाएं तथा मृत्यु दंडादेश को तब तक निष्पादित न किया जाए, जब तक हाईकोर्ट इलाहाबाद द्वारा पुष्ट न कर दिया जाए।