हत्या कराने के बाद रोजाना अनुराग के घर जा रहा था छत्रपाल
शिव सेना के पूर्व जिला संयोजक अनुराग शर्मा की हत्या में उनके ही करीबी का हाथ निकला।
जागरण संवाददाता, रामपुर : शिव सेना के पूर्व जिला संयोजक अनुराग शर्मा की हत्या में उनके ही करीबी बजरंग दल के पूर्व जिला संयोजक छत्रपाल का नाम आने से हर कोई हैरत में है। दरअसल, वह अनुराग शर्मा का बहुत करीबी था। उसने हत्या की घटना को अंजाम दिलाने के बाद परिजनों और पुलिस को शक न हो, इसके लिए हर समय परिवार के साथ रहा। हत्या के बाद रोजाना उनके घर जाता और परिवार को सांत्वना देता। परिवार को भरोसा दिलाता कि वह उनके साथ है और कातिलों को सजा दिलाकर रहेगा। पुलिस को भी गुमराह करने के लिए उसने ही हत्या के मुकदमे में खुद को चश्मदीद गवाह दर्शाया। उसने पुलिस को बताया कि दो बाइक पर आए चार बदमाशों ने गोली मारकर हत्या की थी, जबकि हकीकत में उसके ही भेजे दो युवकों ने हत्या की घटना को अंजाम दिया था। उसकी यही नजदीकियां पुलिस को शुरू से खटकने लगी थीं और उस पर शक हो गया था। यह शक तब और गहरा हो गया, जब हत्या के चार दिन बाद उसने पुलिस को बताया कि अनुराग के हत्यारे उसे भी रास्ते से हटाना चाहते हैं। उसके घर आकर चार बदमाशों ने उस पर गोलियां चलाईं। उसके घर से कुछ दूरी पर दारोगा ओम शुक्ला फोर्स के साथ ड्यूटी कर रहे थे। वह तुरंत सूचना पर छत्रपाल के घर पहुंच गए। वहां उन्हें फायरिग के कोई निशान नहीं मिले थे। चार-पांच खोखे जमीन पर पास-पास पड़े थे, जिन्हें देखकर पुलिस को शक हुआ कि उन्हें वहां योजना के तहत रखा गया है। पूछताछ में उसने दो लोगों के नाम भी बताए, जिनसे उनकी दुश्मनी चल रही थी। इनमें एक मंसूरपुर गांव का फारूख था, जबकि दूसरा विकास नगर का दान सिंह था। पुलिस अधीक्षक शगुन गौतम ने बताया कि इस तरह छत्रपाल अपने आपको अनुराग हत्याकांड से बचाना चाहता था और अपने दुश्मनों को उनकी हत्या में फंसाना चाहता था। लेकिन, वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सका। वर्चस्व और बदले के लिए की थी अनुराग की हत्या
रामपुर : शिव सेना के पूर्व जिला संयोजक अनुराग शर्मा की हत्या वर्चस्व और बदले के लिए की गई थी। पुलिस ने जब हत्यारोपितों से पूछताछ की तो यही वजह सामने आई। पुलिस को दिए बयान में छत्रपाल ने बताया कि वह पहले एमएनसी नामक कंपनी चलाता था। इसमें लोगों का पैसा लगाता था। शुरुआत में उसका काम ठीक चला। उसने लोगों को मुनाफा भी कमाकर दिया, लेकिन बाद में कंपनी को घाटा होने लगा। वह लोगों के पैसे नहीं लौटा सका। इस मामले में कई लोगों ने उसके खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा भी कराया। उसे जेल भी जाना पड़ा था। जेल से आने के बाद उसकी माली हालत बहुत खराब हो गई। मकान तक गिरवी रखना पड़ा। तब उसने अनुराग शर्मा से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं। उसे पता था कि अनुराग के पास हर माह काफी पैसा आता है। अनुराग शर्मा उसे भाई की तरह मानते थे। उसके भांजे की शादी में उन्होंने पैसे की जरूरत पर पत्नी के जेवर तक दिए थे, लेकिन बाद में उसने जेवर नहीं लौटाए। अनुराग शर्मा के पास उसकी कंपनी में पैसा लगाने वाले लोग भी आने लगे और छत्रपाल से रुपये दिलाने के लिए कहने लगे। अनुराग उस पर लोगों के रुपये लौटाने को कहने लगा और अपनी पत्नी के जेवर भी वापस मांगने लगा। तब छत्रपाल ने अनुराग को रास्ते से हटाकर क्षेत्र में अपना वर्चस्त कायम करने और उसकी कमाई खुद हथियाने की योजना बनाई। इसके लिए उसने बाबू और राजकिशोर को उकसाना शुरू कर दिया। बाबू ने पुलिस को बताया कि वर्ष 2011 में उसके पिता हेमंत की हत्या बरेली के थाना बारादरी अंतर्गत काली बाड़ी निवासी सुनील यादव ने की थी। सुनील को बचाने के लिए अनुराग ने मुकदमे में पैरवी की थी। मेरी मां पर भी समझौते का दबाव बनाया था। तब तय हुआ था कि सुनील जेल से आने के बाद यहां नहीं रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं नहीं हुआ। अनुराग ने उसे अपने पास काम पर रख लिया। सुनील उनके घर में ही रहने लगा था। तब से ही मैं अनुराग से रंजिश मानने लगा था। अनुराग के घर मेरा आना जाना भी था। उनके जरिए ही मैं छत्रपाल से भी मिला। छत्रपाल ने मुझे मेरे पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उकसाया। कहा कि अनुराग शर्मा यहां का दबंग है। उसकी हर माह काफी कमाई होती है। उसे रास्ते से हटाने के बाद यह कमाई हमारी होगी। इस हत्या के लिए मुझे हथियार और एक साथी भी देने का लालच दिया। मुझे जेल जाने से बचाने का भी भरोसा दिलाया। उसकी बात मानकर मैंने राज किशोर की मदद से अनुराग की हत्या कर दी। पहली गोली राज किशोर ने मारी थी। बाद में हम छत्रपाल के घर पहुंचे। बाइक और असलहा उसे देकर अपने-अपने घर जाकर सो गए। उधर, पुलिस को बाबू के साथी राज किशोर ने बताया कि वर्ष 2008 में अनुराग ने मेरे भाई जैसे दोस्त चौखे की हत्या कराई थी। तब से मैं उससे बदला लेना चाहता था। वर्ष 2009 में मैंने अपने साथी तरनजीत सिंह मनी की मदद से रमा सिघल के पास अनुराग पर गोली चलाई थी। गोली उसके सिर में लगी, लेकिन इलाज के बाद वह बच गया। यह मुकदमा कोर्ट में चल रहा है। इस मुकदमे में छत्रपाल ने हमारा समझौता भी कराया था। फैसला होने के बाद अब छत्रपाल ने मुझे डराया कि अनुराग ने फैसला तो कर लिया है, लेकिन वह तुझे रास्ते से हटा देगा। अब बचने का एक ही रास्ता है कि तुम अनुराग को ही मार दो। इसके लिए मैं तुम्हें हथियार दूंगा। उसके कहने पर मैंने और बाबू ने अनुराग की गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या से पहले हम दोनों बाइक से छत्रपाल के घर गए। वहां छत्रपाल के भाई पवन ने एक थैला दिया, जिसमें दो तमंचे और कारतूस थे। एक बाइक भी दी। घटना को अंजाम देकर हम छत्रपाल के घर वापस जाकर उसके भाई को असलहा व बाइक लौटकर अपने घर चले गए थे। विधायक बनना चाहता था छत्रपाल
रामपुर: छत्रपाल यादव भाजपा के टिकट पर विधायक बनना चाहता था। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उसके नाम की खूब चर्चा रही। शहर विधान सभा क्षेत्र से उसे प्रत्याशी बनाने की खबर एक टीवी चैनल पर भी चली थी, लेकिन भाजपा ने उसे प्रत्याशी घोषित नहीं किया। इससे नाराज होकर वह सपा में चला गया और तब सपा प्रत्याशी रहे आजम खां ने उसे अपने साथ ले लिया। लेकिन बाद में प्रदेश में बाजपा की सरकार बनी तो उसने सपा से किनारा कर लिया। लोकसभीा चुनाव में भाजपा के साथ रहा।