किताबें करती हैं बातें, बीते जमाने की. तुम नहीं सुनोगे
रामपुर : किताबें करती हैं बातें बीते जमाने की, आज की, कल की, एक-एक पल की.. क्या तुम नह
रामपुर : किताबें करती हैं बातें बीते जमाने की, आज की, कल की, एक-एक पल की.. क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों की बातें? किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे पास रहना चाहती हैं। कवि की ये पंक्तियां हमारे जीवन में पुस्तकों की महत्ता को बयां करती हैं। सच में उस संसार की कल्पना करना ही बेमानी है, जिसमें किताबों के बिना जीना पड़े। राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह पर आज बात करते हैं, आज के इंटरनेट युग में भी पुस्तकों के प्रति प्रेम रखने वालों पर। ये पुस्तक-प्रेमी जैसे भी हो, अपना यह शौक आज भी पूरा कर ही रहे हैं।
आज के तेजी से बदलते संचार क्रांति के युग में बहुत लोग कहते हैं कि अब किताबें अप्रासंगिक हो जाएंगी। इसका कारण यह है कि किताबों का स्थान लेने के लिए बाजार में बहुत सी चीजें आज की तारीख में उपलब्ध हैं। सीडी, डीवीडी, ई-बुक, और इस प्रकार की ही जाने कितनी वस्तुओं से आधुनिक बाजार पटा पड़ा है। इन वस्तुओं ने किताबों का स्थान लेने का प्रयास किया है, लेकिन किताब के शौकीनों के लिए किताबों से बढ़ कर आज भी कुछ नहीं है। पुस्तक-प्रेमी लोगों के लिए आज भी पन्ने पलटकर, कहीं भी बैठकर, लेटकर, यात्रा करते हुए यानि किसी भी तरह किताब पढ़ने से बेहतर कुछ नहीं है। आधुनिक संसाधनों ने बढ़ाई किताबों की उम्र
संचार-क्रान्ति के युग में किताबी दुनिया का फायदा ही हुआ है। आधुनिक संसाधनों ने सबसे बडा काम यह किया है कि किताबों की आयु और पढ़ने का दायरा बढा दिया है। आज विश्व भर के तमाम पुस्तकालयों को डिजिटलाइज्ड किया जा रहा है। ये पुस्तकालय अब ऑनलाइन हो चुके हैं। हजारों ऐसी वेबसाइटें आज अस्तित्व में हैं जिन पर दुनिया भर की असंख्य किताबों के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इतना ही नहीं, इन पुस्तकों को डाउनलोड कर पढ़ा भी जा सकता है। हर व्यक्ति की पहुंच में आईं दुर्लभ किताबें
इस क्रान्ति का एक और लाभ यह है कि अभी तक दुर्लभ समझी जाने वाली अनेकों पुस्तकें आम आदमी की पहुंच से बाहर की बात थीं, जोकि आज इंटरनेट की दुनिया में या तो उपलब्ध हैं या ऐसा करने के प्रयास वैश्विक स्तर पर चल रहे हैं। इस तरह संचार क्रांति, किताबों की दुनिया के लिए वरदान सिद्ध हो रही है दुनिया के आगे बढ़ने में काफी रहा है पुस्तकों का योगदान
भारत में चल रहे 'सर्वशिक्षा अभियान' जैसे प्रयास दुनिया के तमाम निर्धन देशों में चल रहे हैं। इस दुनिया को आज हम जिस रूप में देख रहे हैं, उसके पीछे किताबों की बहुत बड़ी भूमिका है। दुनिया के तमाम धर्मों में एक या अधिक किताबों की आवश्यकता सदा ही रही है, जिनसे उनके अनुयायियों को धर्म की राह पर चलने के लिए एक रास्ता मिलता है। कई लोगों के लिए आज भी पवित्र वस्तु हैं पुस्तकें
भारत की बात करें तो यहां आज भी पुस्तकों को बहुत ही पवित्र वस्तु समझा जाता हैं। आज के समय में भी लोगों के लिए किताब अगर यदि एक पवित्र वस्तु है तो इसीलिए कि प्रारंभ में किताब का अर्थ धार्मिक किताब ही होता था। किताब के पैर से छू जाने या गिर जाने से अनर्थ की आशंका होती थी और धर्म का अपमान लगता था, इसलिए ऐसा होने पर अक्सर उन्हें चूम कर मस्तक से लगा लिया जाता था। यह परम्परा आज भी कई जगह देखने को मिलती है। धार्मिक पुस्तकें आज विश्व भर में सर्वाधिक बिकने वाली किताबें हैं और ऐसा लगता है कि सदा ही रहेंगी। कारण यह कि पढ़ना आये या ना आये अपने धर्म की पुस्तक, हर व्यक्ति घर में जरूर रखना चाहता है। सुख-दुख के अवसरों पर इनकी महत्ता रहती है, घर को ये एक किस्म की पवित्रता प्रदान करती हैं। घरों के पुस्तकालयों में पूरा करते हैं शौक
आज की भागदौड़ वाली ¨जदगी में बाहर पुस्तकालयों में जाकर पुस्तकें पढ़ने से अच्छा कई लोग अपने घर में इस शौक को पूरा करना बेहतर समझते हैं। अपने इस शौक को पूरा करने के लिए ऐसे लोगों ने अपने घरों में ही पुस्तकालय स्थापित कर रखे हैं, जहां बैठ कर ये लोग अपने इन मूक, लेकिन बहुत कुछ कह डालने वाले साथियों संग आज भी घंटों बिताते हैं। इंटरनेट पर भी पढ़ रहे पुस्तकें
आज के दौर में बहुत से युवा भी पुस्तकों के शौकीन हैं। इन युवाओं में घरों में कोई पुस्तकालय तक नहीं बनाया, बल्कि इनके हाथ में थमा इनका फोन ही इंका चलता-फिरता पुस्तकालय बना हुआ है। इन फोनों में डाउनलोड करके पुस्तकें पढना ऐसे युवाओं का शगल है। पुस्तक प्रेमियों के मन की बात
बचपन से पढ़ने का शौक रहा है मुझे। आज एक विद्यालय का पूरा कार्यभार संभालने के चलते वह शौक आज उस तरह से तो पूरा नहीं कर पाती, जैसे पहले होता था, फिर भी जब अवसर मिलता है, किताबों से जुड़ने का कोई मौका मैं नहीं छोड़ती। किताबें मेरी सखी की तरह हैं। हमेशा उनके साथ रहूं, इसके लिए मैंने अपने घर में ही एक छोटा सा पुस्तकालय भी बना रखा है।
-रीना दुबे, प्रधानाचार्य कौन कहता है कि आज किताबों का चलन बंद होने लगा है। पढ़ने वाला हो तो कहीं भी इस शौक को पूरा कर ही लेता है। एक वास्तविकता यह है कि जिसे पुस्तकों से प्यार है, वह एक पल को भी पुस्तकों के बिना नहीं रह सकता। अधिवक्ता हूं मैं, बिना पुस्तकों के तो मेरा गुजारा ही नहीं, इसलिए मेरे घर में भी एक पुस्तकालय है।
- योगेश कुमार बंसल, अधिवक्ता बहुत छोटे थे हम, जब धार्मिक पुस्तकों से प्रेम हो गया था। बड़े हुए तो देश-प्रेम से जुड़े साहित्य की ओर भी रुझान हुआ। युवावस्था आते-आते विद्वानों और दार्शनिकों के विचारों को पढ़ने-समझने का शौक मन में पलने लगा। अधिकतर समय पुस्तकालयों में पुस्तकों के संग गुजरने लगा। अब सेवा निवृत्ति के बाद बस घर में संग्रह कर रखी गई पुस्तकें ही अपनी साथी हैं। सच कहें तो पुस्तकें कभी आपको बोर नहीं होने देतीं।
-दयालु शरण शर्मा, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य