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प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा को बढाता है रुद्राभिषेक

रामपुर: आर्ट आफ लि¨वग के कार्यक्रम में साधकों ने शिव जी की आराधना की। इस अवसर पर शिक्ष्

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 10:40 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 10:40 PM (IST)
प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा को बढाता है रुद्राभिषेक

रामपुर: आर्ट आफ लि¨वग के कार्यक्रम में साधकों ने शिव जी की आराधना की। इस अवसर पर शिक्षक संतोष कपूर ने सावन मास में रुद्राभिषेक के महत्व को बताते हुए कहा कि रुद्राभिषेक एक बहुत प्राचीन मंत्रोच्चारण विधि है। यह जीवात्मा और प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा को बढाता है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है।

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उन्होंने कहा कि शास्त्रों में भी बताया गया है कि जब रुद्राभिषेक होता है तब प्रकृति फलती-फूलती है, प्रसन्न होती है। इसके मंत्रों में असीम शक्ति विद्यमान है। रुद्राभिषेक में दो भाग हैं, पहला है जिसमें है नमो, नमो, नमो। नम का उल्टा है मन, जब मन अपने स्त्रोत की ओर जाता है तब उसे नम कहते हैं। जब मस्तिष्क बाहर की दुनिया की ओर जाता है तब उसे मन कहते है। तो नम अर्थात मन का अपने स्त्रोत की ओर जाना। वहां मिलता है कि सब कुछ एक ही आत्मा से बना है। वैज्ञानिक भी कहते हैं, ईश्वर तत्व- जिससे सब बना है। हजारों साल पूर्व ऋषियों ने भी यही कहा था कि सब कुछ एक से बना है जिसे ब्रह्म कहते हैं, ब्रह्म न तो स्त्री है न पुरुष, ये और कुछ नहीं बस एक तत्व है। तत्व यानी मूल तत्व, इसे ब्रह्म कहते हैं, जब यह ब्रह्म निजी हो जाता है तब इसे शिव तत्व - वह ही सब कुछ है, इसलिए ही हम नमो नमो कहते हैं।

जब यह सब उच्चारित किया जाता है तब ज्यादातर दूध एवं पानी को क्रिस्टल पर बूंद बूंद करके डालते हैं। यह एक पुरातन प्रथा है। शिक्षिका मीनाक्षी गुप्ता और चित्रा कपूर ने बताया कि पूजा में पांच तत्व उपयोग किये जाते हैं, पूजा का अर्थ है सभी तत्वों का सत्कार करना, उनके प्रति पूर्णता से उनका सम्मान करना। इसलिए अग्नि, जल, अगरबत्ती, फल, फूल, चावल, आदि जो भी प्रकृति ने हमें दिया है, उन सब का प्रयोग करते हुए पूजा की जाती है और मंत्रोच्चारण किया जाता है। वेद-मंत्रो का प्रभाव तब अधिक होता है जब लोग अन्दर से जागृत हों, तब इन मंत्रो का एक अलग अर्थ होता है, इसलिए ये आपको ध्यान में गहरा उतरने में मदद करते है। शिक्षिका वीणा मिश्रा ने बताया कि रुद्रपुजा में 6 शक्तियों को पूजते हैं शिव, विष्णु नारायण, गणपति, सूर्य देवता, महादेवी लक्ष्मी सरस्वती और शक्ति गुरुतत्व। यह चार दोषों को कम करती है पितृदोष, ग्रहदोष, वास्तुदोष, कर्मदोष और साथ ही तीनों दोषों वात, पित्त व कफ को संतुलित करती है। व्यक्ति और वातावरण में सत्व गुण और प्राण शक्ति बढ़ाती हैं। इस दौरान तमाम साधक उपस्थित रहे।


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