दौड़कर चढ़ा तो कोई गिरते-गिरते बचा
जागरण संवाददाता, रायबरेली : इंतजार करते-करते आधे घंटे बीत चुके थे। सबकी नजरें राहों
जागरण संवाददाता, रायबरेली : इंतजार करते-करते आधे घंटे बीत चुके थे। सबकी नजरें राहों पर लगी थीं। तभी एकाएक दौड़भाग मच गई। दौड़ते-भागते चढ़े तो किसी को धक्कामुक्की तक करनी पड़ी। कई तो गिरते-गिरते बचे। शहर के सिविल लाइंस में सोमवार को कुछ ऐसा ही नजारा दिखा। कहने के लिए तो यह चौराहा है। मगर, यहां तस्वीर किसी छोटे-मोटे बस स्टेशन ही झलक रही थी।
रोडवेज की बसों का हाल सोमवार को ऐसा ही दिखा। कुछ बसों में सीटें भरी हुई थीं। तो कुछ में पैर रखने की भी जगह नहीं थी। सुबह से लेकर शाम तक बसों में यह स्थिति रही। मगर, ज्यों-ज्यों दिन ढलता गया, बसों में भीड़ भी बढ़ती गई। दरअसल, परिवहन विभाग ने रायबरेली से प्रयागराज के लिए कोई विशेष बस नहीं चलाई है। लखनऊ से आने वाली बसों से ही लोगों को आना-जाना है। यह बसें त्रिपुला से रतापुर, गोल चौराहा, सिविल लाइंस होकर जाती है। प्रयागराज जाने वाले लोग पहले भी सिविल लाइंस, गोल चौराहा में बसें पकड़ते थे। सामान्य दिनों में इनकी संख्या कम होती थी। लेकिन, कुंभ मेले के चलते यात्रियों की तादात बढ़ गई है। इससे और भी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
जान हथेली पर रखकर किया इंतजार
इलाहाबाद जाने वाली बसें यहां के बस स्टेशन नहीं आएंगी। यह पहले से निश्चित था। इसके बाद भी प्रशासन या परिवहन विभाग ने बसों के जाने वाले रूटों पर अस्थायी बस स्टेशन नहीं बनवाए। जबकि कुछ ऐसे स्थान हैं, जहां लोग पहले से इन बसों पर चढ़ते और उतरते हैं। इन्हें अस्थायी बस स्टेशन बनाया जा सकता था। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। नतीजा, लोगों ने सड़क पर खड़े होकर बसों का इंतजार किया।
कहां रुकेगी बस, ऊहापोह की स्थिति
कुछ यात्री चौराहों के इस पार तो कुछ उस पार बस का इंतजार कर रहे थे। बस आती तो ऊहापोह की स्थिति बन जाती। क्योंकि लोगों का पता नहीं था कि बस कहां रुकेगी। इस पार या उस पार। कई बार तो सवारियां फुल होने पर बसें निकल भी गईं। जबकि लोग खड़े होकर उसका इंतजार ही करते रहे। इनकी भी सुनें
शहर में कोई अस्थायी बस स्टेशन नहीं बनाया गया है। कुंभ के दौरान पहले भी इसी तरह व्यवस्था होती रही है। इसलिए इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। जहां भी यात्री मिलते हैं बसें वहां रुक कर उन्हें बैठाती हैं।
कैलाश राम, एआरएम, रायबरेली डिपो