तो झोपड़ी में ही गुजर जाएगा मोहनलाल का जीवन
डलमऊ (रायबरेली): गरीबी का मानक ग्रामीण आंचल में अजब-गजब है। जो दो दशकों से छप्पर में रह
डलमऊ (रायबरेली): गरीबी का मानक ग्रामीण आंचल में अजब-गजब है। जो दो दशकों से छप्पर में रह रहे हैं, उनका नाम गरीबों की सूची में नहीं है। जिनके पास पक्की छत है, उन्हें आवास दे दिए गए। ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है।
डलमऊ विकास खंड के ग्राम पंचायत कंधरपुर मजरे सराय लखनी में मोहनलाल पुत्र दुखी के परिवार में पांच सदस्य हैं। वह पूरे परिवार के साथ गांव में छप्पर के नीचे जीवन यापन करता है। भरे मन से मोहनलाल ने कहा कि हम सब गरीब हैं। हमारि कोऊ नहीं सुनत। बढ़कैन की सब कोऊ पहिले सुनत है। कहैक है कि सरकारी योजनाएं गरीबन की खातिन, लेकिन लाभ तो गरीबन का मिलतै नहीं। उसकी ये बातें अधिकारियों को आईना दिखाने वाली हैं। गांव निवासी संदारा पत्नी मैकू, अशोक कुमार पुत्र द्वारिका ने बताया कि वह बीते 20 वर्षों से झुग्गी झोपड़ी में रह रहे हैं। आवास का लाभ मिले, इसके लिए ब्लाक, तहसील और तहसील दिवस में कई बार प्रार्थना पत्र दिए, मगर अब तक आवास नसीब नहीं हुआ। गांव में आधा दर्जन ऐसे लोगों को आवास दे दिए गए हैं, जिनके पास पक्के मकान हैं। अधिकारी उन्हीं पर मेहरबान हैं। गांव में गरीब तो हैं लेकिन पात्रता सूची में नाम नहीं है, इसलिए अधिकारी उन्हें गरीब नहीं मानते हैं।
कोट
पात्रता सूची के अनुसार ही आवास या अन्य योजनाओं का लाभ दिया जाता है। पीएम आवास वर्ष 2011 में बनी सूची के बेस पर ही आवंटित किए गए हैं। अगर किसी को गलत तरीके से लाभार्थी बनाया गया है तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी। साथ ही गरीबों को आवास दिलाने का प्रयास करेंगे।
-नीरज श्रीवास्तव, खंड विकास अधिकारी