खुशी बांटने के लिए अपनों को तलाशती रहीं निगाहें
रायबरेली 29 साल पहले परिवार में ऐसी ही खुशी आई थी। तब अर्जित के पिता आलोक के बड़े भ
रायबरेली : 29 साल पहले परिवार में ऐसी ही खुशी आई थी। तब अर्जित के पिता आलोक के बड़े भाई अजीत श्रीवास्तव ने प्रदेश में 12वां स्थान हासिल किया था। एक हादसे में अजीत की मौत हो गई, जिससे पूरा परिवार गम में डूब गया। बड़े भाई की प्रतिभा से ही प्रेरित होकर उसका नाम अर्जित रखा गया। आज उसने आल इंडिया टॉप थ्री में शामिल होकर अपने घरवालों का सपना साकार कर दिया। पिता बड़े गर्व से कहते है कि बड़े भाईजी के नाम पर सिर्फ आर ही जोड़ा है। आज बेटे ने वह कर दिखाया, जो कभी भइया ने किया था।
बेटे के इस उपलब्ध पर पिता आलोक श्रीवास्तव खुशी से फूले नहीं समा रहे हैं। कहते है कि बेटे वह कर दिया, जिसे काफी अरसे से इंतजार था। इससे बड़ी खुशी और कुछ नहीं हो सकती है। यह कहते-कहते वह भावुक हो गए। बोले, आज बेटा कोटा में है। पत्नी मतदान करा रही है। घर पर मां आशा श्रीवास्तव और छोटी बेटी भाव्या ही है। इस दौरान मोबाइल पर एक के बाद एक घंटियां बजती रही। बधाई देने वालों का तांता लगा रहा, लेकिन आंखें अपनों को तलाशती रही। आलोक बताते है कि बेटे का रिजर्वेशन कल का करा दिया था। उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्द परिणाम आ जाएगा। खुशी कितनी मिली यह शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं।
परिवार का शिक्षा से है गहरा नाता
अर्जित के परिवार का शिक्षा से काफी गहरा नाता है। बाबा संत बहादुर श्रीवास्तव जीआइसी के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य थे। उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है। पिता आलोक श्रीवास्तव सहायक चकबंदी अधिकारी उन्नाव, जबकि मां मीना श्रीवास्तव प्राथमिक विद्यालय हरदासपुर में शिक्षिका हैं।
दादी को पोते पर गुमान
मुझे अपने पोते पर गुमान है। इतना कहते ही आशा श्रीवास्तव की आंखें चमक उठती हैं। वे बोलती हैं, अर्जित ने तो अपने बाबा का नाम रोशन कर दिया। फिर वह उन्हीं आंखों से राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त अपने पति संत बहादुर श्रीवास्तव की फोटो निहारते हुए कुछ पल के लिए खामोश हो जाती हैं। थोड़ी देर बाद बोलती हैं कि अर्जित पर हम सबको गुमान है।
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